सोनभद्र।सलखन फासिल्स ईको टूरिज्म सर्किट तीन दिवसीय कार्यक़म का शुभारंभ।
वाराणसी से आये टूरिस्ट गाइड बी एच्यू के छात्र छात्राओं फारेस्ट एवं अन्य अतिथियों का आदिवासीयों ने अपने सांस्कृतिक बरसिंहा गर्द नृत्य से स्वागत किया ।वहीं गुरमा वन रेंज के अधिकारियों ने स्वागत नृत्य के पश्चात आदिवासी परम्परागत पत्तल में भोजन कराया। तत्पश्चात वाराणसी से आये अतिथियों को वन विभाग के लोगों ने ऐतिहासिक फासिल्स पार्क भ्रमण के दौरान उसके सम्बन्ध में जानकारी भी दिया।
उक्त मौके पर अमरेश मौर्या टूरिज्म ,अमीत सिंह गाईड गनेश गाईड जयनैद्र राय गाईड, के साथ बी एच्यू के छात्र छात्राओं समेत वन विभाग के अजय प्रकाश बनदरोगा फ़राज़ नदीन वनदरोगा रामदास आदिवासी के साथ आदिवासी बनबन्धु महिला पुरुष उपस्थित रहे।इसी क्रम में सलखन फासिल्स के सम्बन्ध में ऐतिहासिक जानकारी भी दिया गया।
चोपन थाना क्षेत्र के अंतर्गत सलखन का फासिल अमेरिका के येलो स्टोन नेशनल पार्क से भी बड़ा, 1933 मे जियोलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया ने की थी खोज यह भी बताया कि जल्द ही यहा के पर्यटन स्थलो का विकास होगा। यह दुनिया का सबसे बड़ा प्राचीन फासिल्स पार्क है।
दरअसल सलखन का फासिल्स पार्क अमेरिका के येलो स्टोन नेशनल पार्क से भी बड़ा है सरकार ध्यान दे तो धरती के रहस्य को समेटे किस कुदरत के नायाब तोहफे की पहचान भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हो जाएगी।इससे जहा मे पर्यटन को बढावा मिलेगा वही इससे सरकार को राजस्व भी मिलेगा। जिसे 140 सौ करोड वर्ष से अधिक पुराने जीवाश्म को सरकार अंतरराष्ट्रीय धरोहर धोषित कराने की पहल कर रही है।उसके बारे मे हर कोई जानने की इच्छा जाहिर करता है ।
बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ, और मध्य प्रदेश की सीमाओ से सटे आदिवासी बाहुल्य जनपद सोनभद्र जिला मुख्यालय से करीब 16 कि मी दूर सलखन मे स्थित यह जीवाश्म यानी फासिल्स करीब 26 हेक्टेयर मे फैला है। करोड़ो साल पुराने इस जीवाश्म की खोज जिले मे सबसे पहले 1933 मे जियोलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया ने की थी। कैमूर वन्य जीव अभ्यारण के स्थिति इस अनमोल धरोहर के इतिहास को दुनियाभर के कई वैज्ञानिक प्रमाणित कर चुके है।
कई वैज्ञानिक कर चुके हैं रिसर्च।
करीब 85 साल पहले यानी 1933 मे इस जीवाश्म की खोज हुई थी। उस समय विज्ञानी आडेन ने इस पर रिसर्च भी किया। प्रख्यात भू- वैज्ञानिक एचजे हाफमैन सलखन के इस पार्क को देखकर काफी प्रभावित हुए थे। इसके बाद 1958 व 1965 मे अथर ने भी इस पर रिसर्च वर्क किया है। 1980 व1981 मे प्रो, एस कुमार ने भी यहा के फासिल्स पर रिसर्च वर्क किया।वर्ष 2004 को जिले के तत्कालीन जिलाधिकारी भगवान शंकर ने किया।
औषधीय वानस्पतियो का है भंडार ।
सलखन जीवाश्म पार्क कैमूर वन्य जीव क्षेत्र मे लगभग 25 हेक्टेयर क्षेत्रफल मे फैला हुआ है। यह राज्य वन विभाग के अधिकार क्षेत्र मे आता है।पार्क का परिधि क्षेत्र 3,5 कि मी है। यहा के वनो मे कुटी,सलई,पलास,तंदू,झिगन सिद्धा,खैर, धावला, जंगली बास,आवला, धवयी, तथा हरसिंगार जैसी कास्टीय वानस्पतियो की प्रजातियो का बाहुल्य है।हालाकि कई पौधे तो शिकारीयो के हाथ लग गए है। पार्क मे जीवाश्म आमतौर से चट्टानो पर छल्ले के आकार में प्रगट होते दिखाई देते हैं।