जल संकट, नक्सली समस्या से बड़ी समस्या बन गई है

▪पानी में जले जिन्दगी..
रायपुर।जल,जमीन और जंगल की लड़ाई छत्तीसगढ़ में सिर्फ आदिवासी लड़ रहे हैं। सरकार तीनों पर अपना अधिपत्य मानती है। उद्योगपति सरकार में बैठे लोगों को रेड कारपोरेट पर चला कर, सब तरीके का ठेका पा जाते है। साढ़े तीन दशक से नक्सली और आदिवासी इसका विरोध कर रहे हैं। अब स्थिति यह हो गई है कि जल संकट, नक्सली समस्या से बड़ी समस्या बन गई है। इसलिए कि नदियों का पानी उद्योगों ने निचोड़ लिया। तालाबों की जान बिल्डरों ने ले ली। नतीजा पानी का हाहाकार। राजधानी रायपुर से लेकर गांवों तक है। पानी की प्राथमिकता अब रोटी,कपड़ा और मकान से अधिक है। क्यों कि एक तरफ धरती प्यासी है, तो दूसरी ओर लोग प्यासे हैं।

धरती के पेट में पानी नहीं है। जो पानी है बिजली वालों को मुफ्त रमन सरकार दे दी। करोड़ों का पानी पी गये उद्योगपति। आंकड़े बोलते हैं। मेसर्स जायसवाल निको लि. पर 59.44 लाख,मेसर्स मोनेट इस्पात एंड एनर्जी लि. पर 8 करोड़ 45 लाख,सी.एस आई डी सीपर 8 करोड़ 61 लाख,एस के एस इस्पात एंड पॅावर लिं. पर 8 करोड़ 72 लाख,मेसर्स सारडा एनर्जी एंड मिनरल लिं. पर 1 करोड़ 8 लाख बकाया है। रायगढ़ जिले के पांच उद्योगों पर पचास करोड़ रुपए का जलकर बकाया है। इनमें इंड सिनर्जी लिमिटेड कोटमार पर 43 करोड़ 37 लाख, एमएसटी पावर पर 15 लाख 73 हजार, रुक्मणी पावर पर तीन लाख 55 हजार, जिंदल पावर तमनार पर एक करोड़ 41 लाख रुपए और अंजनी स्टील पर पांच करोड़ 51 लाख रुपए की राशि बकाया है। कोरबा के बाल्को नगर में स्थित वेदांता कंपनी लिमिटेड के 540 मेगावाट पावर प्लांट में करीब 6 करोड़ का पानी मुफ्त पी गया।

बस्तर में विकास का सच यह है कि हर साल सैकड़ों आदिवासी जहरीले पानी के कारण मरते हैं। बस्तर में 92, कोंडागांव में 40 कांकेर में 57, बीजापुर में 6 बस्तियों के लोग आज भी फ्लोराइड युक्त पानी पी रहे है। बीजापुर में 31 कस्बों के हजारों ग्रामीण फ्लोरोसिस से पीड़ित हैं। भोपालपटनम के गेर्रागुड़ा गांव में फ्लोराईड युक्त पानी पीकर बच्चों के दांत खराब हो गए हैं। गरियाबंद, देवभोग का सुपेबड़ा गांव में बीते पांच साल में 54 मौतें किडनी फेल होने से हो चुकी। ये सरकारी आंकड़ा है। 231 ग्रामीण किडनी रोग पीड़ित हैं। नए केस भी आ रहे हैं। लेकिन अब तक ग्रामीणों को साफ पानी मुहैया नहीं कराया जा सका। जबकि ये प्रमाणित हो चुका है कि गांव के पानी में फ्लोराइड की मात्रा ज्यादा होने से ग्रामीण किडनी रोगी हो रहे हैं।

कांकेर जिले के अनेक गांवों में ग्रामीण नदियों में बालू को हटाकर गड्ढा कर घंटों इंतजार करते हैं पानी का। पानी रिस रिस कर जब गड्ढे में भर जाता है तो कटोरे से बाल्टी में भरते हैं। कई गांवों में खेतों में गड्ढा कर पानी के लिए ऐसी ही प्रक्रिया अपना रखे हैं।जल के लिए जिंदगी जल रही है। जंगल है तो पानी है। पानी है तो दुनिया है। जंगल कटेंगे तो पानी कहां से मिलेगा। यह तो सरकार में बैठे लोगों को सोचना चाहिए। उन्हें तो उद्योगपति बिसलरी भेज देंगे। लेकिन आदिवासी की किस्मत में तो आर्सेनिक जल या फिर गंदा पानी है। रिपु”

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