मिर्ज़ापुर के साहित्यकारों ने हिन्दी को प्रत्येक दृष्टि से समृद्ध किया : उदय प्रताप सिंह
विशेष रिपोर्ट- सर्वेश श्रीवास्तव
मिर्ज़ापुर- विन्ध्याचल मण्डलायुक्त के सभागार में हिन्दुस्तानी एकेडेमी प्रयागराज एवं प्रभा श्री ग्रामोदय सेवा आश्रम देवगढ़ के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित ‘आचार्य रामचन्द्र शुक्ल और मिर्ज़ापुर के साहित्यकार’ विषयक द्विदिवसीय राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी के दूसरे दिन ‘हिन्दी साहित्य में मिर्ज़ापुर के साहित्यकारों का अवदान’ विषय पर तीन सत्रों में विचार-विमर्श हुआ। सर्वप्रथम इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिन्दी प्राध्यापक डॉ. सुजीत कुमार सिंह ने कबीर के भजन से संगोष्ठी शुभारम्भ किया। मण्डलायुक्त योगेश्वरराम मिश्र ने परम विद्वान मुख्य वक्ता डॉ. अनुज प्रताप सिंह एवं डॉ. सभापति मिश्र को पुष्पगुच्छ, अंगवस्त्र और प्रतीक चिह्न भेंट कर सम्मानित किया। मिर्ज़ापुर के प्रख्यात नवगीतकार गणेश गम्भीर ने सत्रहवीं शताब्दी के बाबा झामदास कृत ‘रामर्णव’, बाबा कृष्णदास कृत ‘मधुर्यलहरी’, पण्डित रामग़ुलाम द्विवेदी आदि से प्रारम्भ करके चौधरी बदरीनारायण उपाध्याय ‘प्रेमघन’, वामनाचार्य, राजेन्द्रबाला घोष ‘बंगमहिला’, केदारनाथ पाठक, पाण्डेय बेचन शर्मा ‘उग्र’, प्रताप विद्यालंकार, ब्रह्मदेव त्रिपाठी ‘ब्रह्मा’, सत्यदेव मिश्र ‘उपेन्द्र’, डॉ. भवदेव पाण्डेय, डॉ. क्षमाशंकर पाण्डेय, पण्डित उमाशंकर मिश्र ‘रसेन्दु’, गुलाब सिंह आदि तक का विस्तार से उल्लेख किया। वाराणसी से पधारे विश्रुत साहित्यकार ओम धीरज ने मिर्ज़ापुर के साहित्यकारों की चर्चा करते हुए चौधरी बदरी नारायण उपाध्याय प्रेमघन के साहित्यावदान पर प्रकाश डाला। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफ़ेसर डॉ. अमरेन्द्र त्रिपाठी ने हिन्दी की प्रारम्भिक आलोचना के सन्दर्भ में प्रेमघन की आलोचना-दृष्टि पर विस्तारपूर्वक प्रकाश डालते हुए कहा कि आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की आलोचना-दृष्टि और उनकी निर्भीकता का बीजांकुरण प्रेमघन की पत्रिका आनन्द कादम्बिनी के द्वारा ही हो गया था। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के असिस्टेंट प्रोफ़ेसर डॉ. लक्ष्मणप्रसाद गुप्त ने ‘अपनी ख़बर’ के बेबाक लेखक पाण्डेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ के समग्र साहित्य को विवेचित करते हुए कहा कि उग्र जैसा शैलीकार और डॉयनेमिक लेखक पूरे हिन्दी जगत् में कोई दूसरा नहीं हुआ।
परम विद्वान मुख्य वक्ता डॉ. अनुज प्रताप सिंह ने कहा कि मिर्ज़ापुर के साहित्यकारों में प्रेमघन, आचार्य शुक्ल, बंगमहिला और उग्र का साहित्यावदान अविस्मरणीय है। डॉ. सभापति मिश्र ने मिर्ज़ापुर के साहित्यिक सन्दर्भ के साथ साथ यहाँ की पत्रकारिता के गौरवशाली इतिहास का भी उल्लेख किया।
अध्यक्ष मण्डल के वरिष्ठ सदस्य और प्रख्यात विद्वान ब्रजदेव पाण्डेय ने मिर्ज़ापुर के साहित्यकारों के सन्दर्भ में इतिहासकार डॉ. काशी प्रसाद जायसवाल की उन पुस्तकों को विस्तारपूर्वक विश्लेषित किया, जिनसे भारतीय इतिहास-लेखन की दशा और दिशा निर्धारित होती है। हिन्दुस्तानी एकेडेमी प्रयागराज के अध्यक्ष प्रो. उदयप्रताप सिंह ने कहा कि जिस तरह गंगा का पानी पहले मिर्ज़ापुर आता है फिर काशी पहुँचता है, उसी तरह हिन्दी साहित्य की नूतन प्रवृत्तियों का उद्भव सर्वप्रथम मिर्ज़ापुर में हुआ फिर काशी और प्रयाग पहुँचा। मिर्ज़ापुर के साहित्यकारों का अद्वितीय योगदान है। जब हिन्दी शैशवावस्था में थी, तब मिर्ज़ापुर के साहित्यकारों ने उसे समृद्ध किया और आज हिन्दी न केवल साहित्य की, अपितु विश्व बाज़ार की बृहत्तर भाषा है। डॉ. उदयप्रताप सिंह ने इस अवसर पर हिन्दुस्तानी एकेडेमी प्रयागराज के द्वारा ‘मिर्ज़ापुर के इतिहास और साहित्य’ को केन्द्र में रखकर एक बृहदाकर सन्दर्भ ग्रन्थ के प्रकाशन की घोषणा की। उन्होंने कहा कि मैं मिर्ज़ापुर के साहित्यकारों से आग्रह करता हूँ कि आप लोग अपना शोधपूर्ण आलेख डॉ. जितेन्द्रकुमार सिंह ‘संजय’ को प्रदान करें, जिससे यथाशीघ्र पुस्तक प्रकाशित हो सके। कार्यक्रम का संयोजन एवं संचालन प्रभाश्री ग्रामोदय सेवा आश्रम देवगढ़ के सचिव डॉ. जितेन्द्रकुमार सिंह ‘संजय’ ने किया। इस अवसर पर कविराज पण्डित रमाशंकर पाण्डेय ‘विकल’, राष्ट्रकवि डॉ. बृजेश सिंह, डॉ. प्रमोदकुमार मिश्र, पाण्डुलिपि-विशेषज्ञ पण्डित उदयशंकर दुबे, उपायुक्त सुरेशचन्द्र मिश्र, श्रीमती अजिता श्रीवास्तव, राजेश कुमार श्रीवास्तव, अंकेश श्रीवास्तव, रत्नेश पाण्डेय, नाजिर मनोज कुमार शर्मा आदि की गरिमापूर्ण उपस्थित रही।