सिंगरौली परिक्षेत्र में प्रदूषण में सुधार के संकेत,लेकिन हालात चिंता जनक

प्रदेश के प्रमुख 13 अधौगिक क्षेत्रो के आंकड़े हुए सार्वजनिक

म्योरपुर सोनभद्र (विकास अग्रहरी/पंकज)

सिंघरौली परिक्षेत्र सहित प्रदेश के 13 प्रमुख औद्योगिक इलाकों में अभी भी औद्योगिक प्रदूषण की खराब स्थिति बनी हुई है। राज्य प्रदूषण नियंत्रण ने जारी 2018 के आंकड़े इस क्षेत्र के लिए अफले की अपेक्षा सुधार की ओर अग्रसर है लेकिन हवा, पानी, मिट्टी तीनों में प्रदूषण होने के कारण परियोजनाओं और उससे उत्सर्जित होने वाले प्रदूषण पर लगातार निगरानी बनाए रखने के निर्देश दिए गए हैं। प्रदूषण नियंत्रण महकमे की तरफ से इसको लेकर निगरानी तेज कर दी गई है।
राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की तरफ से पिछले महीने 2018 के जारी किए गए आंकड़े और इसको लेकर दिए गए निर्देश में बताया गया है कि सिंगरौली मथुरा, कानपुर, मुरादाबाद, वाराणसी-मिर्जापुर, बुलंदशहर- फिरोजाबाद, गजरौला,खुर्जा एरिया, आगरा, गाजियाबाद, नोएडा, मेरठ, अलीगढ़ और उत्तर प्रदेश के सोनभद्र, में हवा, पानी, मिट्टी तीनों में प्रदूषण की स्थिति चिंताजनक बनी हुई है। इस सूची में मथुरा को पहले नंबर पर, कानपुर को दूसरे नंबर पर, वाराणसी-मिर्जापुर को चौथे नंबर पर और सोनभद्र-सिंगरौली को तेरहवें नंबर पर रखा गया है। सोनभद्र में 2028 के वार्षिक औसत के आधार पर निकाले गए आंकड़ों पर नजर डालें तो एनजीटी की सख्ती, पर्यावरण कार्यकर्ताओं, इससे जुड़ी संस्थाओं की सक्रियता और प्रदूषण नियंत्रण विभाग के दबाव से सोनभद्र की हालत में कुछ सुधार हुआ है। प्रदूषण नियंत्रण महकमे के लोगों का दावा है कि इससे पूर्व के वर्षों में सिंघरौली का वार्षिक सीइपीआई स्कोर (प्रदूषण का मानक आंकड़ा) ७० से उपर बना हुआ था। पिछले दस वर्षों में पहली बार यह आंकड़ा 70 से नीचे आया है। २०१८ में इसे ६२.८९ दर्ज किया गया है। हालांकि सड़क से कोल परिवहन जारी रहने, पाबंदी के बावजूद जलाशयों में औद्योगिक अवशिष्टों का बहाव बनाए रखने से हालात अभी भी चिंताजनक बने हुए हैं। हालात को देखते हुए वायु, जल और मृदा तीनों प्रदूषण को लेकर लगातार सख्ती बनाए रखने की जरूरत है। मामले को लेकर , क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण अधिकारी राधेश्याम त्रिपाठी का कहना है कि सोनभद्र का आंकड़ा 70 से नीचे आने की बात स्वीकारते हैं। बताते हैं कि कई वर्ष बाद जाकर प्रभावी नियंत्रण की स्थिति देखने को मिली है। स्थिति मानक के अनुरूप हो इसके लिए कोयले का सड़क मार्ग से हो रहा परिवहन सुरक्षित तरीके से कराने, एनजीटी के निर्देशों, तय किए गए मानकों का प्रभावी पालन हो, इसके लिए प्रयास जारी हैं।

इनसेट

अध्ययन के बाद ही आकड़ो पर विश्वास

जब तक एक स्वतंत्र एजेंसी से सिंघरौली परिक्षेत्र के स्वास्थ्य,हवा पानी मिट्टी की जांच नही हो जाती तब तक कुछ कहना गलत होगा।यूपी बोर्ड सरकार के दबाव में रहती है ऐसे में यह देखना होगा कि जांच किसने की और क्या तरीके अपनाए गए।और सच मे सुधार आया है तो अच्छी बात है।
डॉ अनिल गौतम,वैज्ञानिक पी एस आई देहरादून

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