सन्तान के दीर्घायु के लिये सर्वोत्तम है जीवित्पुत्रिका व्रत

— मातायें रखती हैं निर्जला व्रत, मनाती है खर जितिया

दुद्धी-सोनभद्र, भक्ति एवम उपासना का एक रूप उपवास हैं ,जो मनुष्य में संयम, त्याग, प्रेम एवं श्रध्दा की भावना को बढ़ाता हैं। उन्ही में से एक हैं जीवित्पुत्रिका व्रत। यह व्रत संतान की मंगल कामना के लिए किया जाता हैं।यह व्रत मातायें रखती हैं। जीवित्पुत्रिका व्रत निर्जला किया जाता हैं, जिसमे पूरा दिन एवं रात पानी नही लिया जाता। इसे तीन दिन तक मनाया जाता हैं। संतान की सुरक्षा के लिए इस व्रत को सबसे अधिक महत्व दिया जाता हैं। पौराणिक समय से इसकी प्रथा चली आ रही है।
हिन्दू पंचाग के अनुसार यह व्रत आश्विन माह कृष्ण पक्ष की सप्तमी से नवमी तक मनाया जाता हैं। इस निर्जला व्रत को मातायें अपनी संतान की सुरक्षा व दीर्घायु के लिए करती हैं।
यह व्रत तीन दिन किया जाता है, तीनो दिन व्रत की विधि अलग-अलग होती हैं। नहाय खाय का दिन जीवित्पुत्रिका व्रत का पहला दिन कहलाता है और इस दिन से व्रत शुरू होता हैं। इस दिन महिलायें नहाने के बाद एक बार भोजन लेती हैं। फिर दिन भर कुछ नहीं खाती। खर जितिया का दिन यह जीवित्पुत्रिका व्रत का दूसरा दिन होता हैं, इस दिन महिलायें निर्जला व्रत करती हैं। यह दिन विशेष होता हैं। पारण का दिन यह जीवित्पुत्रिका व्रत का अंतिम दिन होता हैं।
यह कथा महाभारत काल से जुड़ी हुई हैं. महा भारत युद्ध के बाद अपने पिता की मृत्यु के बाद अश्वथामा बहुत ही नाराज था और उसके अन्दर बदले की आग तीव्र थी, जिस कारण उसने पांडवो के शिविर में घुस कर सोते हुए पांच लोगो को पांडव समझकर मार डाला था, लेकिन वे सभी द्रोपदी की पांच संताने थी। उसके इस अपराध के कारण उसे अर्जुन ने बंदी बना लिया। और उसकी दिव्य मणि छीन ली, जिसके फलस्वरूप अश्वथामा ने उत्तरा की अजन्मी संतान को गर्भ में मारने के लिए ब्रह्मास्त्र का उपयोग किया, जिसे निष्फल करना नामुमकिन था। उत्तरा की संतान का जन्म लेना आवश्यक थी, जिस कारण भगवान श्री कृष्ण ने अपने सभी पुण्यों का फल उत्तरा की अजन्मी संतान को देकर उसको गर्भ में ही पुनः जीवित किया।गर्भ में मरकर जीवित होने के कारण उसका नाम जीवित्पुत्रिका पड़ा और आगे जाकर यही बालक राजा परीक्षित बना।तब ही से इस व्रत को किया जाता हैं।
अन्य कथाओं में जीमूतवाहन की भी कथा तथा चील्ह सियारिन की कथा भी प्रासंगिक है।
कथायें चाहे जो भी हों लेकिन माताओं के द्वारा अपनी संतान की सुरक्षा व उनके दीर्घायु होने के लिए किया जाने वाला यह बहुत ही कठिन व्रत है।

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