नक्सली मुठभेड़ में कितनी बार गोलियों की तड़तड़ाहट गूंजी होगीसोनभद्र के दामन में बहुत खून विखरे हैचंद्रकांता और लोरिक मंजरी के प्रेम के किस्सों से गूंजती वादियाखदान की आड़ में मौत के कुएं खोद रहे हैं।सोनभद्र।यूपी के पर्यटन विभाग द्वारा जारी पोस्टरों में भले ही सोनभद्र की एक मनमोहक छवि दिखती हो लेकिन इसके दामन में बहुत खून बिखरे पड़े हैं।
आदिवासियों के सामूहिक नरसंहार की घटना ने भले ही पूरे देश का ध्यान अपनी ओर खींचा हो लेकिन गोलीकांड यहां कोई पहली घटना नहीं है। डाला में बना हुआ शहीद स्थल उस काले दिन की याद दिलाता है जब सीमेंट फैक्ट्री के निजीकरण का विरोध कर रहे 8 कर्मचारियों को पुलिस की गोली का शिकार होना पड़ा था, इस घटना में एक किशोर की भी मौत हो गयी थी जो उस समय मात्र दसवीं का छात्र था, उसी डाला में सुरसती नामक आदिवासी महिला सीआरपीएफ की गोली का शिकार हो गयी थी ।देवकीनंदन खत्री की उपन्यास चंद्रकांता और लोरिक मंजरी के प्रेम के किस्सों से गूंजती इन वादियों में पुलिस नक्सली मुठभेड़ में कितनी बार गोलियों की तड़तड़ाहट गूंजी होगी।इस तरह के कई प्रकरण दर्ज हैं।
अवैध खनन का खामियाजा आधा दर्जन आदिवासियों ने पत्थरों के नीचे दबकर चुकाया, वे आये दिन मानक से ज्यादा खोदी गयी खदानों में गिरकर अपनी जानें गवांते हैं।बालू गिट्टी और कोयले के भारी भरकम ने इतनी जानें लीं कि मेन हाईवे को किलर रोड के नाम से जाना जाने लगा, सुप्रीम कोर्ट से लेकर एनजीटी तक ने इसपर आपत्ति उठाई ।
इस धब्बों को मिटाने के लिए न सिर्फ प्रशासनिक संवेदनशीलता की आवश्यकता है बल्कि उन व्यवसाईयों को भी सतर्कता बरतने की आवश्यकता है जो खदान की आड़ में मौत के कुएं खोद रहे हैं। सामाजिक व्यक्तियों को भी आगे आना पड़ेगा।