पेइचिंग।अमेरिका के सौ से अधिक लोगों ने संयुक्त रूप से एक खुले पत्र पर हस्ताक्षर किये और चीन की आलोचना की कि चीन ने मौजूदा अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था के सिद्धांत व नियम पर हमला किया है। उन्होंने चीन के साथ प्रतिरोध करने के लिए प्रेरित किया। अमेरिकी पक्ष की ये दलील बिलकुल निराधार है, जो अहंकार और जातीय पूर्वाग्रह से भरी हुई है। तथ्यों से साबित हो चुका है एकतरफ़ावाद और संरक्षणवाद की विशेषता वाला अमेरिकी प्रभुत्व अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को बर्बाद करने वाला है।
हालिया अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था दूसरे विश्व युद्ध के बाद स्थापित की गयी है, जिसने आम तौर पर सक्रिय भूमिका अदा की है। संयुक्त राष्ट्र संघ के केंद्र वाली सामूहिक सुरक्षा व्यवस्था ने कारगर रूप से विश्व शांति व विकास की कारगर रक्षा की है। लेकिन अमेरिका हमेशा यह मानता है कि अमेरिका को अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था के केंद्र होना चाहिए और अमेरिका के नेतृत्व में एकतरफावादी प्रभुत्व की रक्षा की जानी चाहिए। ट्रम्प के सत्ता पर आने के बाद अमेरिका द्वारा अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था की बर्बादी अंतर्राष्ट्रीय समाज के कल्पना से बाहर है।
एक तरफ़ अमेरिका ने टैरिफ की लाठी उठाकर चीन, मैक्सिको, कनाडा, यूरोपीय संघ और भारत आदि अनेक आर्थिक इकाइयों के खिलाफ़ व्यापारिक विवाद छेड़ा और खुलेआम विश्व व्यापार संगठन के अंतर्राष्ट्रीय कर्तव्य का उल्लंघन किया। दूसरी ओर, अमेरिका क्रमशः संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद, संयुक्त राष्ट्र यूनेस्को, पेरिस जलवायु परिवर्तन समझौते और ईरानी नाभिकीय समझौते आदि अनेक अंतर्राष्ट्रीय संगठनों व संधियों से हट गया। वहीं अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के प्रचालन को तोड़ा और विश्व व्यापार संगठन की सुधार प्रक्रिया को रोका।
संयुक्त राष्ट्र संघ स्थित पूर्व अमेरिकी दूत बोल्टन ने खुलेआम कहा था कि अमेरिका और विश्व का संबंध हथौड़ा और कील का संबंध है। अमेरिका जिस किसी को मारना चाहता है उसे मारेगा। अमेरिकन फर्स्ट की प्रभुत्ववादी और अति स्वार्थी की विचारधारा वास्तव में अंतर्राष्ट्रीय कानून और अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था की जानबूझकर बर्बादी है।
अमेरिका के कुछ राजनयिक मनमाने ढंग से वैश्विक व्यवस्था को तोड़ते हैं और उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय कर्तव्यों का पालन करने से इंकार कर दिया है। इस का मूल कारण है कि चीन द्वारा संयुक्त राष्ट्र संघ के कंद्र वाले और संयुक्त राष्ट्र चार्टर के बुनियादी वाली अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था की रक्षा करना अमेरिका के कुछ लोगों को चाहने वाली प्रभुत्ववादी व्यवस्था नहीं है। इसलिए वे क्रोधित हो चुके हैं। अमेरिका द्वारा अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को बर्बाद करने की कार्यवाई के प्रति उस के परम्परागत गठबंधन ने भी जबरदस्त विरोध किया।
चीन मौजूदा अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था के संस्थापकों में से एक है, साथ ही चीन रक्षक भी है। अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था पर चुनौती देना चीन के खुद के हितों से मेल नहीं खाता है। एक जिम्मेदार देश होने के नाते चीन को अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था के सुधार और वैश्विक प्रशासन को आगे बढ़ाने में अपनी भूमिका अदा करनी चाहिए। मानव साझे भाग्य समुदाय की विचारधारा को पेश करने से बेल्ट एंड रोड पहल की प्रस्तुति तक, संयुक्त राष्ट्र प्रतिष्ठा की रक्षा से सक्रिय रूप से अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था में हिस्सा लेने तक और आर्थिक भूमंडलीकरण को आगे बढ़ाने में चीन हमेशा ही मौजूदा अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था का रक्षक है, भागीदार है और सुधारकर्ता है।
हाल में विश्व में भारी परिवर्तन आया है। विभिन्न देशों को किस तरह की अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था और वैश्विक प्रशासनिक व्यवस्था चाहिए, सब लोगों द्वारा सलाह मश्विरे के बाद तय की जाएगी। अमेरिकी प्रभुत्व अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था के लिए गंभीर धमकी व चुनौती है। विभिन्न देशों को इससे सतर्क रहना चाहिए और यथार्थ कार्यवाई से संयुक्त राष्ट्र चार्टर और सिद्धांत के केंद्र वाली अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था की रक्षा करनी चाहिए।
(साभार—चाइना रेडियो इंटरनेशनल ,पेइचिंग)