
बिजली का निजीकरण किसान विरोधी
किसानों के राष्ट्रीय विरोध में दूसरे दिन भी मजदूर किसान मंच ने किया प्रतिवाद
लखनऊ। कोरोना महामारी को रोकने और अर्थव्यवस्था को सम्हालने पर बुरी तरह विफल हुई मोदी सरकार को अब भी सबक लेते हुए कारपोरेट घरानों पर सम्पत्ति कर लगाकर संसाधन जुटाना चाहिए और तत्काल न्यूनतम पांच हजार रूपए नकद किसानों और मजदूरों को छः माह तक देना चाहिए ताकि भुखमरी से लोगों को बचाया जा सके। यह मांग आज देशभर के दो सौ से ज्यादा किसान संगठनों की अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के राष्ट्रीय विरोध के अंतिम दिन मजदूर किसान मंच ने पुरजोर तरीके से उठाई। आज मजदूर किसान मंच और वर्कर्स फ्रंट ने सीतापुर, लखीमपुर, बहराइच, गोण्ड़ा, आगरा, चंदौली के नौगढ़, चकिया, राबर्ट्सगंज व अन्य जिलों में प्रधानमंत्री को पत्र भेजा। यह जानकारी प्रेस को जारी बयान में मजदूर किसान मंच के अध्यक्ष व पूर्व आईजी एस. आर. दारापुरी और महासचिव डा. बृजबिहारी ने दी।
उन्होंने बताया कि प्रधानमंत्री को भेजे मांग पत्र में कोरोना महामारी के इस संकटकालीन समय में किसान, आम जन विरोधी और कारपोरेट घरानों के लाभ के लिए केन्द्र सरकार द्वारा लाए जा रहे विद्युत संशोधन अधिनियम 2020 को वापस लेने की मांग भी उठाई गयी। इस बिल के पास होने से बिजली इतनी महंगी हो जायेगी कि उसका उपभोग किसान और गरीब नहीं कर पायेंगे। यह सरकार का राष्ट्रद्रोही कदम है जिसे वापस लिया जाना चाहिए।
उन्होंने बताया कि प्रधानमंत्री को भेजे मांग पत्र में लाकडाउन के कारण रास्ते में दम तोड़ने वाले और घायल हर व्यक्ति को समुचित मुआवजा देने, कोरोना से बीमार व्यक्ति को मुफ्त सरकारी इलाज, सरकारी स्वास्थ्य सेवाएं बहाल करने, सहकारी खेती को मजबूत करने, किसानों व बुनकरों समेत छोटे मझोले उद्यमियों के सभी कर्ज माफ करने, ब्याज मुक्त कर्ज देने, किसानों सस्ती लागत सामग्री व मुफ्त कृषि उपकरण उपलब्ध कराने, कृषि आधारित उद्योग लगाने, पचास गुना ज्यादा दाम पर सरकारी खरीद की गारंटी, मनरेगा में सालभर काम और 6 सौ रूपया मजदूरी, आलू किसानों को राहत पैकेज देने, प्राकृतिक आपदा तूफान, ओलावृष्टि आदि से प्रभावित किसानों को मुआवजा, गन्ना किसानों के बकाए के तत्काल भुगतान और वनाधिकार कानून में पट्टा देने जैसी मांगें शामिल रही।
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