
शिक्षा डेस्क।2008 में चंद्रयान-1 ने पहली बार चांद पर तिरंगा पहुंचाया था। इसके पे-लोड (लैंडर) की लॉन्चिंग स्पीड ज्यादा होने से ये मून के सरफेस तक तो पहुंच गया, लेकिन इसके बाद फंक्शन नहीं कर सका। चंद्रयान-2 के तहत लैंडर की स्पीड कंट्रोल कर चांद पर सॉफ्ट लॉन्चिंग करवाई जाएगी। इस अचीवमेंट से यूथ को सीखना चाहिए कि सफलता के लिए मेहनत जरूरी है।
ये कहना है इसरो के पूर्व एसोसिएट डायरेक्टर और आउट स्टैंडिंग साइंटिस्ट डॉ. राम रतन का। उन्हें इस बात की खुशी है कि वे इस ऐतिहासिक यात्रा का हिस्सा रहा हूं। चंद्रयान प्रोजेक्ट आज हमारे यूथ के लिए इंस्पीरेशन है। यूथ को इसरो के साइंटिस्ट की टीम से सीखने की जरूरत है कि पेशेंस के साथ निरंतर मेहनत करते रहे, एक दिन सफलता जरूर मिलेगी। आइए जानते है चंद्रयान की सफलता की कहानी डॉ. राम रतन की ही जुबानी…
कलाम ने दिया आइडिया
डॉ. रतन का कहना है कि चंद्रयान मिशन की नींव कई वर्ष पहले रखी गई थी। वर्ष 2005 के करीब की बात है, जब पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम चंद्रयान-1 प्रोजेक्ट के रिव्यू के लिए आए थे। उन्होंने मिशन पर चर्चा कर कहा कि सेटेलाइट के साथ एक पे-लोड भी अटैच होना चाहिए, जिस पर भारतीय तिरंगा हो। ये गर्व की बात होगी। इस पर वैज्ञानिकों ने पे-लोड पर तीन टाइप के कैमरे लगाए, जो वहां की फोटोज भेज सके। सैटेलाइट से चांद की सतह तक पहुंचने से पहले करीब 100 फोटोग्राफ क्लिक हुए, जिससे चांद पर पानी होने की बात सामने आई।
सोच ने बदली तस्वीर
डॉ. रतन ने वर्ष 2011 तक इसरो में अपनी सेवाएं दीं। चंद्रयान-1 प्रोजेक्ट में प्रोजेक्ट वे शामिल थे और चंद्रयान-2 की इनिशियल प्लानिंग का हिस्सा भी रहे। डॉ. कलाम के विजन का चन्द्रयान की सफलता में अहम रोल है। साल 2011 में वे इसरो के एसोसिएट डायरेक्टर पद से रिटायर्ड है। फिलहाल वे शहर की जेईसीआरसी कॉलेज से जुड़े हुए हैं।सोर्स ऑफ पत्रिका।
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