सोनभद्र(सीके मिश्रा)सहायक निदेशक मत्स्य,सोनभद्र ने जानकारी देते हुए बताया कि थाई मांगुर- जिसका वैज्ञानिक नाम क्लोरियस गायरोपिनियस है। यह मछली पूर्णतः मांस पक्षी है। इसकी पैदावार अधिक होने के कारण किसान इसका पालन करते हैं। उ0प्र0 शासन ने इस मछली पर पूर्ण प्रतिबंध लगा रखाहै। यह मछली जहॉ भी पाई जाय नष्ट कर दिया। बंगाल से गरीब तत्स्य पालक इस मछली का बीज लाकर बेचते हैं। वर्तमान में इस जनपद के हिन्दुवारी, वाराणसी एवं मीरजापुर मार्ग के तिराहे के पास काफी मात्रा में बंगाल से आए मत्स्य पालक जनपद या आस-पास के मत्स्य पालकों को ठगने का कार्य किया जा रहा है। थाई मांगुर मछली की स्वादग्रन्धि अविकसित होने के कारण इसके सामने जो भी आहार दिखाई देता है। उसे वह खा जाती है। यह अधिकतम वर्ष में 10 कि0ग्रा0 तक हो जाती है। इस मछली में अविकसित फेफड़ा होने के कारण एक तालाब से दूसरी तालाब में चलकर पहुंच जाती है। साथ ही साथ कम पानी में भी सर्वाइव हो जाती है। जिस तालाब में यह मछली पहुंच जाती है। सभी जलीय जीवों को भच्छड़ कर लेने से पूरे जलीय वातावरण का इकोसिस्टम प्रभावित होता है। अन्य भारतीय मेजर कार्प मछलियों को संरक्षित रखने के लिये इस मछली का प्रतिबन्धित होना जरूरी समझा गया।
उन्होंने बताया कि विगहेड- यह मछली भारतीय मेजर कार्प कतला के सर्फेस फीडर की भॉति जीवन यापन करती है। अधिक पैदावार के कारण लोग पालते हैं। इसका सिर सरीर के अपेक्षा कई गुना भारी हो जाता है। इस मछली का मॉस जल्दी खराब होता है। बाजार भाव भी कम रहता है। यह मछली जहॉ पायी जाती है। कतला मछली की बाढ़ नहीं होती है। इसलिये यह भी मछली पूर्णतः प्रतिबन्धित है।
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