अप्लास्टिक एनीमिया बीमारी के काफ़ी मरीज डॉ ए के द्विवेदी की होम्योपैथी चिकित्सा से ठीक होकर अब सामान्य जीवन जी रहें
रिपोर्टर पुरूषोतम चर्तुवेदी वाराणसी
वाराणसी : अप्लास्टिक एनीमिया कोई आम बीमारी नहीं है ये कैंसर से भी ज्यादा खतरनाक घातक और खर्चीली बोन मैरो की समस्या है, जिसमे मरीज को बार बार ब्लड रक्त और प्लेटलेट्स लगाने चढाने पड़ते हैं। आज पराड़कर स्मृति भवन में अयोजित पत्रकार वार्ता में सुप्रसिध्द होम्योपैथिक चिकित्सक डॉ. ए. के. दिवेदी ने पत्रकारों को बताया की वो पिछले 27 सालों से इस बीमारी को लेकर न सिर्फ़ मरीज़ों का इलाज कर रहे हैं, बल्कि सरकार और समाज को भी इसके प्रति जागरूक करने की लगातार कोशिश में लगे हुए हैं। डॉ. दिवेदी ने बताया कि जब लोग “एनीमिया” सुनते हैं, तो अक्सर यही मान लेते हैं कि यह सिर्फ आयरन अथवा विटामिन की कमी से जुड़ी समस्या है। लेकिन अप्लास्टिक एनीमिया बिलकुल अलग और अत्यधिक ज़्यादा गंभीर बीमारी है, जिसमें शरीर के बोन मैरो खून बनाना बंद कर देते है साथ ही उनका बोन मैरो रक्त कड़िकाओं को मार भी डालता है जिसके कारण यह स्थिति इतनी गंभीर होती है कि समय पर इलाज न हो तो मरीज़ की जान तक जा सकती है। इसकी दवाएँ महंगी होती हैं, इलाज लंबा चलता है और कई बार तो बोन मैरो ट्रांसप्लांट की ज़रूरत पड़ती है। डॉ दिवेदी ने जब मरीजों की यह पीड़ा सुनी तो उन्होंने मुख्यमंत्री, राज्यपाल और प्रधानमंत्री जी को भी पत्र लिखे – ताकि सरकार इस बीमारी को गंभीरता से ले और मरीज़ों की मदद के लिए आगे आए।

उनकी इस पहल का असर दिखा। उन्होंने एक पत्र पढ़ा जो प्रधानमंत्री ने एक अप्लास्टिक एनीमिया के मरीज़ को भेजा है और उन्हें प्रधानमंत्री राहत कोष योजना के तहत 3,00,000 की सहायता राशि प्राप्त हुई है | यह पत्र उनके लिए प्रेरणा बना और अब वो चाहते हैं कि और भी लोग जागरूक हों और इस योजना का लाभ उठाएँ। उनका साफ कहना है अगर सरकार कैंसर, किडनी सहित हार्ट जैसे रोगिंयों को विशेष ध्यान देती है, और इलाज हेतु रूपये की सहायता करती है तो अप्लास्टिक एनीमिया को भी उसी श्रेणी में लाना चाहिए। यह बीमारी भी उतनी ही जानलेवा है, और खतरनाक है तथा इसका इलाज भी उतना ही अधिक खर्चीला है।”
बीमारी की जड़ और अनजानी बातें
यह जानकर हैरानी होती है कि ज़्यादातर अप्लास्टिक एनीमिया के मामलों में यह पता ही नहीं चलता कि उन्हें यह बीमारी क्यों हुई । कुछ लोगों में यह डेंगू या अन्य वायरस, जैसे हेपेटाइटिस या एपस्टीन-बार वायरस, कुछ दवाइयों या ज़हरीले केमिकल्स की वजह से हो सकता है। लेकिन ज़्यादातर मरीजों के लिए यह बीमारी अचानक और बिना किसी चेतावनी के सामने आती है| बहुत कम लोग जानते हैं कि यह बीमारी कैंसर से भी अधिक गंभीर होती है, पर इसका नाम ज़्यादातर लोगों को पता नहीं होता। इसके इलाज में भी लगभग वही दवाइयाँ दी जाती हैं जो कैंसर के मरीज़ों को मिलती हैं, जैसे ऐटीजी और सायक्लोस्पोरीन। कई लोग इसे नॉर्मल खून की कमी समझकर आयरन की गोलियाँ या घर के तरीके अपनाते हैं, लेकिन यह इस बीमारी में बिल्कुल काम नहीं करते और कभी-कभी नुकसान भी कर सकते हैं। अप्लास्टिक एनीमिया का हमेशा के लिए इलाज बोन मैरो ट्रांसप्लांट ही हो सकता है, लेकिन इसके लिए HLA (ह्यूमन ल्यूकोसाईट एंटीजन) का मिलना बहुत मुश्किल होता है, खासकर भारत जैसे देश में जहाँ बोन मैरो डोनेशन के बारे में जानकारी बहुत कम है।
डॉ. दिवेदी का मानना है कि अब वक्त आ गया है जब समाज को अप्लास्टिक एनीमिया के खिलाफ एकजुट होकर खड़ा होना होगा – न सिर्फ़ मरीज़ों के लिए, बल्कि नीति-निर्माताओं तक आवाज़ पहुँचाने के लिए भी। मरीज़ों को चाहिए कि वे प्रधानमंत्री राहत कोष जैसी सरकारी योजनाओं के बारे में पूरी जानकारी प्राप्त करें और समय रहते आवेदन करें, ताकि उन्हें आर्थिक सहायता मिल सके। वहीं सरकार को भी इस बीमारी की गंभीरता को समझते हुए इसे विशेष सहायता योग्य रोगों की सूची में शामिल करने के लिए धन्यवाद ज्ञापित किया प्रधानमंत्री जी के इस प्रयास से और अधिक मरीजों को लाभ मिल सकेगा । आम जनता के बीच यह बात पहुचनी आयवश्क है ताकि जिन्हे जिन्हे बोन मैरो ट्रांसप्लांट कराना है उन्हें स्वस्थ जीवन बिताने की संभावनाएँ बढ़ सकती हैं। डॉ एके दिवेदी के अनुसार होम्योपैथी दवा, अप्लास्टिक एनीमिया के इलाज में काफी कारगर साबित हो रही है जिन्हे एटीजी जैसे इलाज से राहत नहीं मिली ऐसे भी कई मरीज होम्योपैथी इलाज लेकर पूरी तरह से स्वस्थ जीवन ब्यतीत कर रहें हैं।