भोलानाथ मिश्र/सर्वेश श्रीवास्तव
सोनभद्र। आजादी के अमृत काल में जब हमारे साहित्यकार सरोकारों के दायरे में पिछले एक दशक से अपनी भूमिका तलाश रहे हों, ऐसे में साहित्यकार अजय शेखर का कद इतना बड़ा है कि उनके सामने बाकी के साहित्यकार स्वयं उनकी बराबरी करने के बारे में सोचना भी ठीक नही समझते। 86 वर्षीय मानवतावादी काव्य के शिल्पी अजय शेखर एक निराले अंदाज के यथार्थवादी और जनवादी रचनाकार हैं। मधुरिमा संगोष्ठी के बैनर तले 60 से अधिक
अखिल भारतीय कवि सम्मेलन करा चुके अजय शेखर हिंदी जगत के काव्य विधा का एक जाना पहचाना चेहरा है जो कवियों के ह्रदय में सदैव समाया रहता है। 1974 में प्रकाशित कविता संग्रह ‘आकाश बंद है’ के प्रथम संस्करण में विभिन्न तिथियों-परिस्थितियों में लिखी उनकी कुल 63 रचनाएं संग्रहित हैं जो साहित्य के लिए धरोहर साबित हो रही हैं। सार्थक रचना वही है जो चेतन प्राणी को प्रभावित कर ले। ऐसी ही रचनाएं अजय शेखर को अजय शेखर बनाती हैं। इनकी कविताओं में जीवन का सच्चा प्रतिबिंब है।
आध्यात्मिक चेतना, सौंदर्यबोध, व्यंग, कटाक्ष उत्साह की उनकी ऐसी तमाम रचनाओं से जहा पाठक प्रभावित होते है, वहीं राजनीतिक विमर्श वाली उनकी रचनाएं काया प्रवेशी हैं। राजनीतिक चेतना को समेटे हुए उनका विराट कृतित्व व्यक्तित्व सोनभद्र के साहित्य की पहचान बन चुका है। पर्यावरण के प्रति उनका दृष्टिकोण वास्तविक विकास की नई परिभाषा गढ़ता है। डा राम मनोहर लोहिया के विचारो के साथ जीवन की यात्रा कर रहे अजय शेखर जनपद के ऐसे पहले कवि है जो अटल बिहारी वाजपेई और गीत गंधर्व गोपाल दास नीरज के साथ कविता पाठ कर चुके हैं। कुल 95 पृष्ठ का कविता संग्रह गागर में सागर की तरह है। रचनाओं की गहराइयों को समेटे हुए आज की युवा पीढ़ी को पथ प्रदर्शित करने में सक्षम है।