सर्वेश श्रीवास्तव
पत्रकारों को कोरोना वारियर्स घोषित किया जाए :- कृपाशंकर सिंह
लखनऊ- महाराष्ट्र के पूर्व गृह राज्य मंत्री कृपाशंकर सिंह ने कहा कि पत्रकारों को कोरोना वारियर्स घोषित किया जाये। किसी भी इमर्जेन्सी की स्थिति में जान की परवाह किये बिना चौथे स्तम्भ के ये पत्रकार हर जगह सबसे पहले पहुंचते हैं। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि किसी भी समस्या का समाधान सम्भव है, लेकिन शर्त यह है कि गुटों में बंटकर काम करने की जगह पत्रकारों की एक समन्वय समिति बनाकर अपनी बात को सरकार के सामने उठायें। आगे कहा गुट बनाना मनुष्य का स्वभाव है, लेकिन जब बात बड़ी हो तो एक मंच पर आकर मांग उठायें ताकि समस्या का समाधान निश्चित रूप से निकल सके।
श्री सिंह बुधवार को राजधानी लखनऊ स्थित यूपी प्रेस क्लब में लखनऊ वर्किंग जर्नलिस्ट्स यूनियन द्वारा आयोजित ‘पत्रकार सुरक्षा कानून’ आज के परिदृश्य में क्यों अनिवार्य, विषय पर आयोजित गोष्ठी में बतौर मुख्य अतिथि पत्रकारों को समबोधित कर रहे थे। इसके पूर्व श्री सिंह को बुके, माला व शाॅल ओढ़ाकर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर उन्हें पत्रकार सुरक्षा कानून बनवाने लिए प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश को सम्बोधित दो ज्ञापन भी सौंपे गये। इसके अतिरिक्त यूपीडब्ल्यूजेयू के अध्यक्ष हसीब सिद्दीकी, वरिष्ठ पत्रकार सुरेश बहादुर सिंह, गोविन्द पंत राजू, नवल कान्त सिन्हा, परवेज अहमद, भाजपा प्रवक्ता ओम प्रकाश सिंह, शिव शरण सिंह, विश्व देव राव आदि ने अपने विचार रखे। गोष्ठी का संचालन प्रेमकान्त तिवारी ने किया।
मुख्य अतिथि ने कहा कि मान्यता और ग़ैरमान्यता पत्रकारिता का मानक नहीं है। पत्रकार की मान्यता उसकी लेखनी के जोर से ही मानी जाती है। उसी से पत्रकार को लोक और समाज मे प्रतिष्ठा और नैतिक मान्यता प्राप्त होती है। उन्होंने कहा पत्रकारिता की असली आवाज है कि- मुझे सूली पर चढ़ाने की जरूरत क्या है, कलम छीन लो मर जाऊंगा, लेकिन आज विभिन्न कारणों से इसमे काफी फर्क आया है। साथ ही जो फर्क पत्रकारिता के इस सिद्धांत में आया है उतना ही फर्क पत्रकारिता के सम्मान और महत्व में भी आया है। ऐसे में यदि पत्रकारिता जैसे पेशे को लोभ और लालच का जरिया बनाया जाएगा तो फिर पत्रकारिता का अहित ही होना है।
यूपी वर्किग जर्नलिस्ट यूनियन के अध्यक्ष हसीब सिद्दीकी ने कहा कि पत्रकार सुरक्षा कानून की आज बहुत बड़ी जरूरत है। इस कानून में उन सभी विषयों पर प्राविधान बनाये जाने चाहिए जो पत्रकारिता की शुचिता और पत्रकारों की जानमाल की सुरक्षा के साथ उसके रोजगार को भी संरक्षण प्रदान कर सकें। पत्रकार गोविन्द पंत राजू ने कहा कि आज की पत्रकारिता में संवाददाताओं के लिए खतरा बढ़ा है। इसका मुख्य कारण सामाजिक व्यवस्था में आया बदलाव है। अब माफिया-भ्रष्टाचारी, पत्रकार को अपना व्यक्तिगत दुश्मन मान लेते हैं। इस कारण से भी पत्रकार सुरक्षा कानून और पत्रकारिता की परिभाषा को पुनः परिभाषित किये जाने की जरूरत है। उन्होंने पत्रकारों की मान्यता के नियमो में भी बदलाव की आवश्यकता पर बल दिया। इसलिए पत्रकार सुरक्षा कानून में यह भी तय किये जाने की जरूरत है कि पत्रकारिता सरकारी मान्यता की मोहताज नहीं है।
पत्रकार नवलकान्त सिन्हा ने कहा कि 1990 से अब तक ही लगभग डेढ़ हजार पत्रकारों की हत्या हुई है। जिनमें से अनेक मामलों में कुछ भी नहीं हो सका। इस प्रकार से पत्रकारिता में आज तमाम तरह की चुनौतियां है। पत्रकारों को सुरक्षा देने वाले एक कानून की बड़ी आवश्यकता है।
वरिष्ठ पत्रकार परवेज अहमद ने कहा कि कभी एक शायर ने कहा था कि
जब तोप मुकाबिल हो तो अखबार निकालो-
परन्तु आज सच्ची खबर लिखे जाने पर तलवारों का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में चीजों को पूरे तौर पर समझे जाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि एक बड़ी आवश्यकता पत्रकारों को अपने में एक और अनुशासित होने की भी है।
वरिष्ठ पत्रकार सुरेश बहादुर सिंह ने कहा कि आज बात जब पत्रकार सुरक्षा कानून की हो रही है, तो यह कहना भी जरूरी होगा कि यह कानून बने परन्तु सुरक्षा सिर्फ पत्रकारों-खबर लिखने वालों की होनी चाहिए। सम्मान पाने के लिए, सम्मान देना होगा। हमें पत्रकारिता की सुरक्षा के साथ-साथ शुचिता की भी निहायत जरूरत है।
लखनऊ वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन के अध्यक्ष शिवशरण सिंह ने कहा कि वर्तमान सरकार की इस बात के लिए तारीफ की जा सकती है कि उसने कोरोना काल मे दिवंगत पत्रकारों के परिजनों को मान्यता-ग़ैरमान्यता का भेदभाव किये बिना आर्थिक मदद की है। उन्होंने कहा कि हमारी मांग है कि 60 वर्ष से ऊपर के पत्रकारों को पेंशन दी जाये।
भाजपा यूपी के प्रवक्ता ओमप्रकाश सिंह ने कहा कि इस गोष्ठी में तीन मुख्य बातें निकल कर आई हैं। पत्रकारो में शुचिता की बात, उनकी सुरक्षा की आवश्यकता और उनके रोजगार की सुरक्षा। यहां पर मैने एक बात समझी है कि आज पत्रकारो को जन विश्वसनीयता एवं एकजुटता की बड़ी आवश्यकता है। गुटों में भले बंटे रहें परन्तु आम पत्रकार के हित में पत्रकारों को एक साथ रहना जरूरी ही नहीं अनिवार्य है।
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