सोनभद्र(सर्वेश श्रीवास्तव)- विश्व हिंदी दिवस के पावन अवसर पर 10 जनवरी रविवार को रिहंद साहित्य मंच द्वारा आन लाइन विचार गोष्ठी के साथ काव्य गोष्ठी आयोजित की गई। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे मंच के संरक्षक, कवि एवं प्रख्यात साहित्यकार डॉ दिनेश दिनकर ने हिंदी की विश्व चेतना के परिपेक्ष्य में कहा कि हिंदी को राजाश्रय कभी नहीं मिला, किंतु अपनी उदार मानवीय चेतना और मानवीय गरिमा का संवहन करते हुए उसने न केवल अपने राष्ट्र भारत को बल्कि संपूर्ण विश्व को मनुष्य बनने का, मानवता के पक्षधर होने का, मानवीय स्वतंत्रता और उसकी गरिमा की रक्षा करने का, संदेश देने का कार्य किया है। हिंदी के बिना विश्व शांति की बात पहले भी अधूरी थी और आगे भी अधूरी रहेगी; क्योंकि यह मनुष्यता की भाषा है। भारत की सम्पूर्ण पहचान से हिन्दी को संदर्भित करते हुए उन्होंने अपनी कविता कुछ इस प्रकार सुनाई-
“होरी – हमीद हिन्द का सम्मान है हिन्दी।
भारत की एकता का, राष्ट्रगान है हिन्दी।।”
हिन्दी की युग चेतना के संदर्भ में उन्होंने भटकी हुई राजनीति और जनतंत्र से यक्ष प्रश्न पूछा कि-
“मेरा कवि बस संविधान से एक प्रश्न करता है,
भूख मिटाता जो किसान वह क्यों भूखा मरता है ?”
मंच के महासचिव मिथिलेश कुमार श्रीवास्तव ‘शिखर’ ने हिंदी के वैश्विक चेतना के संदर्भ में कहा कि अपनी सदाशयी परंपरा का निर्वहन करते हुई हिंदी ने समस्त दुनियां को एकता और भाईचारा का संदेश दिया है। यह संसार की इकलौती भाषा है जिसकी यात्रा हृदय से हृदय तक होती है। शायद हिंदी की इसी गरिमा ने दुनियां को यह दृष्टि दी कि सारी दुनियां मनुष्यता की इस भाषा हिंदी का विश्व हिंदी दिवस मनाए। उन्होंने अपना काव्य पाठ ” भावनाएं हैं हिंदी मेरी, हिंदी ही राष्ट्रभाषा हो” सुनाया तथा हिंदी को चमत्कारिक भाषा बताते हुए मात्र 200 शब्दों की स्वरचित एक लघु कहानी सुनाई जिसमें 18 मुहावरे समाहित हैं।
मंच के संयुक्त सचिव नरसिंह यादव ने अपनी रचना कुछ इस प्रकार प्रस्तुत की “बिक जाती हैं लाशें बाजार में भेज तूं, फायदा ले जाते पैसे वाले ही जान तूं।” मंच के साहित्यिक सचिव अरुण अचूक ने हिंदी की महिमा कुछ इस प्रकार प्रस्तुत की- “हिंदी हमें अमरत्व का वरदान दे रही, दुर्लभ है जो जहान में वह ज्ञान दे रही।।”
लक्ष्मीनारायण पन्ना ने हिंदी की पहचान कुछ इस प्रकार बतलाई-“हिंदी के माथे पर बिंदी शान है मेरे भारत की, निज भाषा में उन्नति ही पहचान है मेरे भारत की।।” डी एस त्रिपाठी ने हिंदी के सफर को जिंदगी के सफ़र से जोड़कर कुछ निम्न पंक्तियों में अपनी प्रस्तुति दी-“चलता रहा यह सफर जिंदगी का, मुड़कर कभी मैंने पीछे न देखा।” सांस्कृतिक सचिव मुकेश कुमार ने अपनी प्रस्तुति देते हुए सुनाया कि-“हिंदी हमारी, हम हिंदी के।”
राजेश्वरी सिंह ने अपनी कविता के माध्यम से हिंदी की महानता बताते हुए सुनाया- “राष्ट्रीयता की पहचान है हिंदी, सब भाषाओं में महान है हिंदी।” आर डी दूबे की रचना कुछ इस प्रकार गीत के रुप में रही “हिंदी मनहर सब की भाषा, सरल सुहावनी सुंदर है।”
कार्यक्रम का संचालन नरसिंह यादव ने तथा धन्यवाद ज्ञापन अरुण अचूक ने की। कार्यक्रम में रिहंदनगर, बीना, वाराणसी तथा इलाहाबाद से रचनाकार जुड़े।