सोन साहित्य संगम का मनाया गया चतुर्थ स्थापना दिवस

शाहगंज-सोनभद्र(सर्वेश श्रीवास्तव)- आत्मा के सौंदर्य का शब्द रूप है काव्य ,मानव होना भाग्य है , कवि होना सौभाग्य ‘। इसी भाव को व्यक्त करते हुए मुख्य अतिथि वरिष्ठ कवि पारस नाथ मिश्र ने गुरुवार को अपने विचारों को छायावादी कवि जयशंकर प्रसाद के ‘आँसू’ में कवि की विरह वेदना की अभिव्यक्ति को रेखाँकित करते हुए इन पंक्तियों को उधृत किया।’इस करुणा कलित हृदय में,अब विकल रागिनी बजती।क्यों हाहाकार स्वरों में,वेदना असीम गरजती ? उन्होंने कहा, ‘आँसू’ एक स्मृति- काव्य है,जिसमें कवि ने अपने अतीत की स्मृतियों को वर्तमान अनुभूतियों से जोड़कर वेदना और दर्द को प्रकट किया है। मीडिया फोरम ऑफ इण्डिया (न्यास) के कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष मिथिलेश द्विवेदी के रॉबर्ट्सगंज स्थित अखाढा मोहाल में अवस्थित उनके निज आवास से सोनसाहित्य संगम के चौथे स्थापना दिवस पर आयोजित ऑनलाइन गोष्ठी का संचालन हो
रहा था । श्री द्विवेदी ने अध्यक्षता करते हुए संस्था के निदेशक के नाते संयोजक राकेश शरण मिश्र
के लिए कहा ,’ इस बैनर तले नए उभरते हुए कवियों को अवसर और मंच प्रदान कर सँयुक्त बार एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष के दायित्व का निर्वहन करते हुए जिस तरह से वकील साहब ने साहित्यकारों के लिए आयोजन करते रहते है वह काबिले तारीफ़
हैं। क्योकि इस अभिनव पहल का ही परिणाम है कि अनगिनत कवि आज शब्द की उँगली पकड़
कर केवल न चल पड़े है बल्कि अपनी रचनाओं से अपनी पहचान भी बना चुके हैं । विषय प्रवर्तन करते हुए संयोजक राकेश शरण मिश्र ने विस्तार से संस्था की उपलब्धियों पर प्रकाश डाला कहा कि खुशी होती है जब कोई युवा कवि मंच और अवसर पाकर अपनी प्रतिभा को निखारता है और समाज में अपनी पहचान बना लेता है । किसी कवि के खिले हुए चेहरे और मुश्कान को देख के आत्म संतोष के भाव उदय होते है तो जो सुख मिलता है उसे व्यक्त करने के लिए मेरे पास शब्द नही हैं। उपनिदेशक कवि सुशील राही ने कहा सृष्टि के आरम्भ से लेकर आज 16 जुलाई 2020 गुरुवार के दिन तक का इतिहास साक्षी है जब जब जरूरत हुई साहित्य मार्गदर्शन करता आया है । यहीं काम युवाओं को समाज के सामने पेश करने का काम राकेश शरण जी कर रहे हैं ।संरक्षक राष्ट्रपति पुरस्कार से पुरस्कृत पूर्व प्रधानाध्यापक साहित्यकार कवि पर्यावरणविद ओमप्रकाश त्रिपाठी ने महर्षि बाल्मीकि का उल्लेख किया। कहा रामायण काल समेत सवा पाँच हज़ार पूर्व ही महाभारत जैसे महाकाव्य ही समाज को राह दिखाए। इन्ही महाकवियों ने धृतराष्ट्र , दुर्योधन आदि से सावधान रहने के लिए नसीहतें प्रदान की। संरक्षक मण्डल में शामिल प्रसिद्ध कवि जगदीश पंथी ने कहा जब जब राजनीति लड़खड़ाती है तब तब साहित्य ही सहारा देता आया है। इसलिए संस्था का यह प्रयास सराहनीय है। कवि ईश्वर विरागी ने कहा सुर , तुलसी , रहीम , रसखान आदि से समाज को नई दिशा दी। परमेश्वर प्रसाद श्रीवास्तव ‘पुष्कर’ने कहा साहित्य समाज दर्पण होता है। दिवाकर द्विवेदी मेघ विजयगढ़ी ने कहा यह संसार ही काव्य मय है । मीडिया फोरम के जिला अध्यक्ष राजेश गोस्वामी ने साहित्य को जीवन का अनिवार्य अंग बताया । स्वीकृत के प्रधान इकबाल अहमद ने कहा साहित्य लोगों के दिलों को जोड़ता है ।प्रभात सिंह चंदेल का कहना था कि समता , ममता , समरसता का सृजन साहित्य की कोख़ से ही संभव है। संचालन पत्रकार और शिक्षक भोलानाथ मिश्र ने और आभार प्रदर्शन सोनसाहित्य संगम के संयोजक राकेश शरण मिश्र ने किया । इस अवसर पर पत्रकार विनय सिंह चंदेल , पवन गुप्ता समेत अन्य साहित्यकार,पत्रकार शामिल रहे । समापन समीक्षा उदबोधन में निदेशक मिथिलेश द्विवेदी ने कहा कि कोरोना वायरस के रॉबर्ट्सगंज में बढ़ रहे संक्रमण को देखते हुए सुरक्षा के कारण सोनसाहित्य संगम का यह चौथा स्थापना दिवस इस तरह से आयोजित करना पड़ा है। एनटीपीसी के प्रबंधक और साहित्यकार मिथिलेश श्रीवास्तव ने कहा ,’ नई कविता में वर्तमान जीवन की कटुताओं और कुंठाओं के प्रति व्यंगात्मक भावनाओ की अभिव्यंजना मिलती है ।वाराणसी से जुड़े कवि रामनरेश पाल ने कहा नव स्वछंदतवादी प्रवित्ति के कारण प्रकृति के प्रति नए कवियों में विशेष संवेदनशीलता परिलक्षित होती है। विन्ध्य सँस्कृति शोध समिति के निदेशक इतिहासकार पत्रकार दीपक कुमार केसरवानी ने कहा कि नई कविता का आग्रह जिस विशेष तत्व पर है ,वह उसे मानव व्यक्तित्व की स्थापना और उसकी उपयोगिता से विकसित होता है ।

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