श्रीराम जन्मभूमि पर शुरू हो रहे रामलला मंदिर निर्माण में कुछ ईंटें इस्लाम की भी लगेगी।
आजमगढ़।भजन गाने कभी मंदिर में जब रसखान आते हैं, मंजर देखने ऐसा वहां भगवान आते हैं। फिरकापरस्ती उस मुल्क को छू नहीं सकती, बनाने राम की मूरत जहां रहमान आते हैं। जीहां उत्तर प्रदेश के अयोध्या में ऐसा मंजर जल्द ही देखने को मिलेगा। श्रीराम जन्मभूमि पर शुरू हो रहे रामलला मंदिर निर्माण में कुछ ईंटें इस्लाम की भी लगेगी। भरोसा है कि इस्लाम की यही ईंट यूपी में ही नहीं पूरे देश में अमनोअमान का पैगाम देगी। मंदिर और मस्जिद के नाम पर लड़ने वालों के लिए यह एक बड़ा सबक होगा कि यहां हर दिल में राम और रहीम बसते है।
यह पैगाम जाएगा यूपी के आजमगढ़ से जो पिछले कई दशक से कभी माफियागिरी तो कभी आतंकवाद के कलंक से झुलस रहा है। इस जिले के निजामाबाद तहसील क्षेत्र के मजभीटा गांव निवासी मुंशी सैयद मोहम्मद इस्लाम खुद अयोध्या जाकर मंदिर निर्माण ट्रस्ट के अध्यक्ष महंत नृत्य गोपाल दास को लाखों रुपए कीमत के प्राचीन सिक्के भेंट करेंगे और निवेदन करेंगे कि उसे बेचकर मिलने वाले धन का उपयोग मंदिर निर्माण में किया जाए। कारण कि उनका मानना है कि राम और अल्लाह एक है। बस उन्हें देखने का लोगों का नजरिया अलग है।
मजभीटा गांव निवासी मुंशी सैयद मोहम्मद इस्लाम पुत्र स्व. मोहम्मद नूर पेशे से उर्दू अनुवादक है। वर्ष तीन दशक से परिवार के साथ शहर के सीताराम मोहल्ले में हैं। परिवार बढ़ा तो उन्होंने अपने पैतृक गांव मजभीटा में पुराने मकान को गिरवाकर नया मकान बनवाने का फैसला किया। 30 नवंबर 2019 को उन्होंने पुराने भवन को ढहाकर नींव खोदवाना शुरू किया तो उन्हें चार ईस्वी करीब 1500 साल पुराना दो एंटिक का बना सिक्का मिला। जिस पर एक तरफ राम और सीता तथा दूसरी तरफ राम सीता और हनुमान का चित्र बना हुआ है। इस्लाम ने इस सिक्के को संभालकर रख लिया।
फिर उन्होंने फैसला किया कि अयोध्या में राम जन्मभूमि पर भगवान श्रीराम के मंदिर का निर्माण हो रहा है और इस सिक्के पर भगवान का चित्र भी बना है क्यों ने इसे खुद के बजाय राम के काम में ही इस्तेमाल किया जाए। अभी वह इस उधेड़बुन में थे कि एक दुर्घटना हुई। इस्लाम की पत्नी इस सिक्के की अहमियत को समझ नहीं पाई और एक सिक्का लेकर सराफा की दुकान पर चली गयी। स्वर्णकार की पारखी नजर ने सिक्के को पहचान लिया कि वह काफी कीमती है और उसने सिक्के के बदले इस्लाम की पत्नी को तीन लाख की कीमत का आभूषण दे दिया।
चूंकि इस्लाम शहर के आवास और उनकी पत्नी और बच्चे गांव के आवास पर रहते थे इसलिए इस्लाम को यह बात काफी दिन बाद पता चली। यह जानने के बाद इस्लाम काफी दुखी हुए और दूसरा सिक्का अपने पास रख लिया और फैसला कर लिया कि कम से कम यह एक सिक्का मंदिर के काम में ही उपयोग हो। इस्लाम के मुताबिक उन्होंने इस संबंध में कई लोगों से बात की लेकिन सिक्का लेकर दान करने डीएम कार्यालय गए लेकिन डीएम से मुलाकात नहीं हुई। वहां जो लोग मिले वे ठोस आश्वासन नहीं दे सके कि सिक्का मंदिर तक पहुंचा देंगे। यहां तक कि एलआईयू के लोगों ने भी इस्लाम से सिक्का मांगा लेेकिन उन्होंने नहीं दिया।
अब इस्लाम ने फैसला किया है कि अगले बुधवार को वे स्वयं आसनसोल गोंडा एक्सप्रेस से अयोध्या जाएंगे तथा महंत नृत्य गोपाल दास से मुलाकात कर उन्हेें सिक्का सौंपकर रसीद प्राप्त करेंगे। साथ ही उनसे अनुरोध करेंगे कि इस सिक्के को बेचकर जो धनराशि आती है उससे एक ही पत्थर सही लेकिन मंदिर में जरूर लगवाए। इस दौरान वे रामलला का दर्शन भी करेंगे। बकौल इस्लाम वर्ष 1996 से पहले जब वे डाबर कंपनी में सेल्समैन का काम करते थे तो कई बार अयोध्या जा चुके है लेकिन कड़ी सुरक्षा के कारण मंदिर परिसर में प्रवेश नहीं कर सके थे। जिसका मलाल उन्हेें आज भी है।