महत्वकांक्षी योजनाओं को पलीता, न किया खर्च, न किया समर्पण, सांसद के पत्र से हुआ खुलासा

संजय द्विवेदी की खास रिपोर्ट

लखनऊ । उत्तर प्रदेश की सरकारें समय समय पर गरीबों खासकर दलित व पिछडे वर्ग के जीवन स्तर को सुधारने और सामाजिक समानता लाने के लिए भारी भरकम योजनाओं की घोषणा करती रही हैं. लेकिन सरकारों की ये योजनायें अफसरशाही की चारागाह साबित हुई हैं जिसपर काबू पाने में सरकारें अभी तक कोई कारगर फार्मूला नहीं ला सकीं हैं. जिसका ताजा उदाहरण मायावती शासनकाल में चलाई गयी अम्बेडकर ग्राम विकास योजना की अवशेष धनराशि के बंदरबांट के प्रकरण के सामने आने से समझा जा सकता है। बसपा सरकार की इस महत्वाकांशी योजना में चयनित अम्बेडकर ग्रामों में “सीसी रोड और के०सी० ड्रेन” को बनाने के लिए सूबे के ग्रामीण अभियंत्रण विभाग को वर्ष 2007 से 2012 तक की अवधि में कई हजार करोड़ की धनराशि दी गयी थी। जिससे इन गाँवों में सडक और नाली निर्माण कराया जाना था. लेकिन निर्माण कार्यों में खेल करने वाले अफसर पूरी धनराशि खर्च करने में नाकामयाब रहे और अवशेष धनराशि को सरकार को वापस भी नहीं किये.

संत कबीरनगर से भाजपा सांसद प्रवीन निषाद के पत्रके बाद उठ रहे सवाल

उत्तर प्रदेश के संत कबीरनगर से सांसद प्रवीन निषाद का हवाला देते हुए प्रमुख सचिव ग्रामीण अभियंत्रण विभाग इफ्त्खारुद्दीन के दिनांक 25 नवम्बर 2019 को पत्रांक संख्या 2003/अ०मु०स०खेल-ग्रा०अभि०/2019 द्वारा लिखे गए पत्र के अनुसार प्रमुख सचिव ने निदेशक ग्रामीण अभियंत्रण से जवाब माँगा है। पत्र के अनुसार जनपद संतकबीर नगर में अम्बेडकर ग्राम योजना के अंतर्गत अवमुक्त हुई धनराशि जोकि अभी तक अवशेष पड़ी हुई है वह कितनी है और क्यों पड़ी है ? इस अवशेष धनराशि को सासद महोदय द्वारा दिए गये प्रस्तावानुसार अब तक उपयोग में क्यों नहीं लायी गयी ? जैसे सवालों को उठाया गया है।

पत्र के आधार पर सवाल यह उठता है कि जब ग्रामीण अभियंत्रण विभाग के एक डिवीजन संतकबीर नगर में विभाग के एक जनपद में मौजूदा समय में यह धनराशि पाँच करोड़ से ज्यादा धनराशि अभी तक मौजूद है, तो वर्ष 2012 में योजना के बंद होने पर कितनी अवमुक्त धनराशि अन्य समस्त विभागों में अवशेष पड़ी थी। और उनकी आज की स्थिति क्या है ? जबकि ऐसे अवशेष धन को समय-समय पर अफसरों द्वारा फर्जी बिलों आदि के माध्यम से खपाने की खबरें सुर्खियों में रही हैं. यदि ग्रामीण अभियंत्रण विभाग में मौजूदा समय में यह धनराशि पांच हजार करोड़ से ज्यादा की है तो योजना के बंद होने के समय यह कुछ और ही रही होगी।

बताते चलें कि मुख्यमंत्री मायावती ने गाँवों में विकास की तस्वीर बदलने के लिए डॉ. अम्बेडकर ग्रामीण समग्र विकास योजना की संरचना और स्वरूप में व्यापक बदलाव के लिए इस योजना की शुरुआत की थी. इस योजना के तहत चयनित ग्राम सभाओं के विकास के लिए तय किये गये 18 बिन्दुओं में पाँच बिन्दु स्वच्छ शौचालय, विद्युतीकरण, सम्पर्क मार्ग, गलियों एवं नालियों का निर्माण, पेयजल और गरीबों के आवास व कृषि योग्य भूमि के आवंटन पर विशेष जोर दिया गया था।

सर्वसमाज के गरीब लोगों को आवासीय भूमि की व्यवस्था कराए जाने के निर्देश के साथ पहले चरण में अनुसूचित जाति-जनजाति के परिवारों को पहली वरीयता देने के लिए कहा गया था. सभी गरीब परिवारों को शासन द्वारा तय वरीयता के हिसाब से इन्दिरा आवास एवं महामाया योजना के तहत आवास उपलब्ध कराए जाने की बात कही गयी थी. सर्वसमाज के जिन गरीब लोगों के पास कृषि योग्य भूमि नहीं है उन भूमिहीनों को राजस्व विभाग द्वारा कृषि योग्य भूमि पट्टे पर उपलब्ध कराने तथा प्रति परिवार अधिकतम तीन एकड़ की सीमा तक कृषि योग्य भूमि का पट्टा देने में पहली वरीयता अनुसूचित जाति-जनजाति के भूमिहीन परिवारों को दिए जाने की व्यवस्था की गयी थी।

इस कार्य में लगे अनुसूचित जाति के लोगों के जीवन में बुनियादी सुधार लाने के लिए तत्कालीन मायावती सरकार ने प्रत्येक घर में स्वच्छ शौचालय की स्थापना को प्रथम वरीयता का कार्यक्रम बनाया था और पंचायती राज विभाग को तेजी से इस कार्यक्रम को घर-घर में पहुँचाने के निर्देश दिए गए थे. ग्रामीण क्षेत्रों में सम्पर्क मार्ग, सीसी रोड, के.सी. ड्रन व अण्डरग्राउण्ड ड्रन के निर्माण कार्य को दूसर स्थान पर रखते हुए इसकी जिम्मेदारी पंचायती राज विभाग को दी गई थी. ग्रामीण विद्युतीकरण को तीसरी और पेयजल को चौथी प्राथमिकता पर रखते हुए संबंधित विभागों ऊर्जा और ग्राम्य विकास विभाग को इसे सुनिश्चित कराने का निर्देश दिया गया था।

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