उत्पादन निगम के कार्मिक निदेशक के पद पर तैनात संजय तिवारी के कारनामे बोलते है,  ओबरा अग्निकांड में दुबारा चार्जशीट

यूपी सरकार की नियंत्रण खोती अफसरशाही, ऊर्जा विभाग फिर चर्चा में, लोकसेवक ने चार्जशीट लेने से किया मना

#एक लोकसेवक की तानाशाही निदेशक कार्मिक द्वारा चार्जशीट लेने से मना किया गया अंत में हुआ स्पीड पोस्ट.

#ऊर्जा विभाग में सजा में VIP कल्चर, अंशुल को किया रिमूव पर संजय तिवारी को बैठाया सर आँखों पर

#अलोक कुमार ने ED के सामने बोला झूठ, जीपीएफ घोटाले में हुई पूछताछ.

#अलोक कुमार जिस धनराशि को वापस लाने की बात कह रहे हैं दरअसल वह एफडी मेच्योर हो गई थी इसलिए धनराशि वापस आई

लखनऊ । बिजली विभाग जीपीएफ घोटाले में हुए जग हँसाई के बाद अपने बेलगाम अफ़सरों के कारनामों की वजह से एक बार फिर से सुर्ख़ियाँ बटोर रहा है यूपी सरकार में लोकसेवक की तानाशाही का आलम यह है कि चार्जशीट लेने-देने के प्रकरण में कार्मिक निदेशक के पद पर संजय तिवारी के नियम विरुद्ध कार्यों की जाँच के लिए कमेटी गठित कर आरोप पत्र तामील कराये जाने में शीर्षस्थ अधिकारियों के पसीने छूट गए। 17 दिसम्बर 2019 को तैयार की गयी चार्जशीट को अंततः 21 दिसम्बर को करना पड़ा स्पीड पोस्ट. VIP कल्चर की विरोधी योगी सरकार के ऊर्जा विभाग में सजा में भी VIP कल्चर अपनाया जा रहा है, एक तरफ पूर्वांचल वितरण निगम के निदेशक तकनीकी को मामले में दोषी पाए जाने पर पद से रिमूव कर दिया जाता है तो नियम विरुद्ध तैनाती और चार्जशीट मिलने के बाद भी संजय तिवारी जैसे अधिकारी पर कार्यवाही के नाम से बचता नजर आ रहा है प्रबंधन. संजय तिवारी को रिमूव करना तो दूर सस्पेंड तक नहीं किया जा सका है।

प्रकरण यह है कि ईमानदार मुख्यमंत्री की सरकार में दागी अधिकारियों में शुमार ऊर्जा विभाग के उत्पादन निगम के ओबरा अग्निकांड में आरोपी निदेशक कार्मिक संजय तिवारी को दुबारा चार्जशीट दी गयी. ओबरा अग्निकांड में दुबारा चार्जशीट मिलने के बाद भी कुर्सी से चिपके आरोपी संजय तिवारी को आखिर कौन बचा रहा है और क्यों इस सवाल का जवाब भी मिलना जरूरी है।

एक तरफ़ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भ्रष्ट, अनुशासनहीन व दाग़ी अफ़सरों को बाहर का रास्ता दिखाने में लगे हैं वहीं दूसरी तरफ़ संजय तिवारी जैसे आरोपी इससे भी ऊपर हो अपना मनमाना रवैया अपनाए हुए हैं. इसे योगी की नियंत्रण खोती अफ़सरशाही ही कहा जा सकता है जब एक लोकसेवक द्वारा ख़ुद की चार्जशीट लेने से एक दो नहीं तीन कार्य दिवस में लगातार मना किया जाता है, जिसको बाद में स्पीड पोस्ट के माध्यम से भेजा जाता है. यह वही उत्तर प्रदेश का ऊर्जा विभाग है जोकि अपने अफ़सरों के मनमानेपन की वजह से सुर्ख़ियो में रहा है और जीपीएफ जैसे बड़े घोटाले ने सरकार की खूब किरकिरी करायी और सरकार विपक्ष के हमले के बाद बैकफ़ुट पर रही

बताते चलें कि उत्पादन निगम का निदेशक कार्मिक संजय तिवारी जिसको कि 14 अक्टूबर 2018 को हुए ओबरा अग्निकांड का दोषी पाया गया और चार्जशीट दी गयी. लेकिन संजय तिवारी द्वारा उक्त चार्जशीट को माननीय हाईकोर्ट में चेलेंज किया गया और हाईकोर्ट ने चार्जशीट देने की प्रक्रिया पर टिप्पणी करते हुए चार्जशीट को ख़ारिज कर नियम संगत कार्यवाही करने का आदेश निगम को दिया. उत्पादन निगम द्वारा फिर से संजय तिवारी को चार्जशीट देने की प्रक्रिया की गयी जिसको कि संजय तिवारी द्वारा लगातार तीन अलग अलग कार्य दिवस में लेने से मना कर दिया गया

इस पूरे प्रकरण में महत्वपूर्ण यह भी है कि संजय तिवारी द्वारा जो क़ागज़ उच्च न्यायालय में लगाए गये उनमें से कई पर गोपनीयता की मुहर लगी है. अब सवाल यह है कि आख़िर किसकी अनुमति से संजय तिवारी ने इन गोपनीय दस्तावेज़ों को अदालत में पेश किया. दूसरी बात यह कि जब तक दोषी को जाँच पूर्ण कर व सजा निर्धारित कर आरोपी को निर्धारित सज़ा का पत्र नहीं दे दिया जाता तब तक न जाँच पूर्ण मानी जाती है और न ही उक्त पेपर को सार्वजनिक किया जा सकता है. संजय तिवारी को चार्जशीट देने के बाद मिले जवाब के बाद सजा की नोटिस देकर उससे जवाब माँगा था लेकिन संजय तिवारी जवाब देने से पहले कोर्ट चला गया जबकि तब तक जांच की प्रक्रिया पूर्ण नहीं हुई थी. संजय तिवारी द्वारा जवाब नहीं देना और जांच की पूरी प्रक्रिया के विचाराधीन होने के दौरान मामले को एक लोकसेवक द्वारा कोर्ट ले जाना क्या अनुशासन हीनता के दायरे में नहीं आता. इस पर सरकार संज्ञान क्यों नहीं ले रही है.

जीपीएफ घोटाला— अलोक कुमार ने ED के सामने बोला झूठ, जीपीएफ घोटाले में हुई पूछताछ

जीपीएफ घोटाले में डीएचएफएल में निवेश को लेकर प्रवर्तन निदेशालय द्वारा पूर्व चेयरमैन पावर कारपोरेशन इम्प्लायज ट्रस्ट के चेयरमैन रहे अलोक कुमार से की गयी पूछताछ में जो जानकारी बाहर आयी है उसमें अलोक कुमार द्वारा या तो एजेंसियों को गुमराह किया गया है या फिर पूछताछ के नाम पर सिर्फ उनसे औपचारिकता मात्र की गयी. खबरों के मुताबिक़ गलत तरीके से एक निजी कंपनी में निवेश का निर्णय लिया गया और वह डेढ़ साल तक चलता रहा इस पर कोई रोक क्यों नहीं लगाई गयी के जवाब में अलोक कुमार का जावाब बेहद ही बचकाना रहा. उनका जवाब था कि ट्रस्ट के पैसों के निवेश के लिये पहले से चली आ रही व्यवस्था काम कर रही थी जिसमें वित्त नियंत्रक और सचिव स्तर से निर्णय लिया जाता रहा था लेकिन जब उन्हें जानकारी हुई तब तक निजी कंपनी में 2631.20 करोड़ रूपये का निवेश किया जा चुका था. इसके बाद उनके द्वारा निवेश पर रोक लगाई गयी और साथ ही DHFL से 1185.50 करोड़ रूपये वापस ट्रस्ट को दिलाये गए

जबकि आलोक कुमार का यह बयान पूरी तरह से गलत है. जब पता चल गया था कि घोटाला हो रहा है तो सारी धनराशि वापस ली जानी चाहिए थी. अलोक कुमार जिस धनराशि को वापस लाने की बात कह रहे हैं दरअसल वह एफडी मेच्योर हो गई थी इसलिए धनराशि वापस आई. इसके अलावा अलोक कुमार द्वारा इस प्रकरण की जांच हेतु क्या कोई कमेटी बनाई या फिर इसके लिए जिम्मेदार अधिकारियों व कर्मचारियों पर किसी तरह की कार्यवाही अलोक कुमार द्वारा की गयी. इन सवालों का जवाब अभी तक नहीं सामने आ पाया है. इस तरह मुख्यमंत्री योगी के सीबीआई की जांच वाले बयान की तरह अलोक कुमार का यह बयान भी पूरी तरह गुमराह करने वाला व झूठा है।साभार अफ़सरनामा।

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