#सवाल यह कि पीएमजीवाई का करीब 40% कार्य RES के पास है और मोती सिंह RES के मंत्री भी रहे तब क्या कुछ उनके द्वारा कोई कार्रवाई की गई ?
#आखिर क्या है इस सक्रियता के मायने ?
क्या पीएमजीवाई व अम्बेडकर ग्राम विकास जैसी अन्य योजनाओं की योगी सरकार में कोई समीक्षा हुई?
#जब रिवर फ्रंट,जेपीएनआईसी,खनन आदि की जांच पूरी सक्रियता से हुई तो पीएमजीवाई व अम्बेडकर ग्राम विकास जैसे चर्चित प्रकरण क्यों छूटे ?
लखनऊ ।: योगी सरकार का भ्रष्टाचार पर वार जारी है, सरकार अपनी घोषित जीरो टोलरेंस की नीति पर अमल भी कर रही है लेकिन तमाम ऐसे तथ्य हैं जो या तो दरकिनार किये जा रहे हैं या फिर उनको मुख्यमंत्री के संज्ञान में ही नहीं लाया जा रहा है. ताजा प्रकरण में प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना में भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने लोक निर्माण विभाग के प्रमुख अभियंता एवं विभागाध्यक्ष आरसी वर्णवाल, ग्रामीण अभियंत्रण विभाग के निदेशक एवं मुख्य अभियंता रविंद्र सिंह गंगवार तथा उत्तर प्रदेश ग्रामीण सड़क विकास अभिकरण के मुख्य अभियंता सुधांशु कुमार के खिलाफ आर्थिक अपराध अनुसंधान शाखा से जांच कराने के आदेश दिए हैं।
सीएम योगी द्वारा EOW से जांच कराने के आदेश भले ही दे दिए गए हैं लेकिन तमाम वह सवाल भी हैं जो अभी तक अनुत्तरित हैं, इस पर भी सरकार को फोकस करना चाहिए. अब यदि केवल RES जैसे महकमे को ही लिया जाय जहाँ पर पिछले 4 साल से तैनात वित्त सेवा के एक अधिकारी जोकि अतिरिक्त कार्यभार के रूप में यूपीआरआरडीए में कुछ दिन तक चार्ज में भी रहे थे और वे खुद को मंत्री महोदय का रिश्तेदार भी बताते हैं, की इस प्रकरण में दिलचस्पी को लेकर भी तरह तरह किस्सों को चटखारे लेकर सुना जा रहा है. सवाल तो कई हैं जिनका जवाब भी ढूंढना सरकार को जरूरी है इनमें RES एक उदाहरण मात्र है।
सवाल यह है कि जब मोती सिंह खुद आरईएस के मंत्री थे तब इस प्रकरण में उनके द्वारा क्या कार्रवाई की गई, क्योंकि पीएमजीवाई के लगभग 40% कार्य आरईएस द्वारा ही कराये जाते हैं. जबकि इस तरह का मामला पूर्व में भी चर्चित भी रहा था. आरईएस के चर्चित डायरेक्टर रहे उमाशंकर के कार्यकाल में पीएमजीवाई, अम्बेडकर ग्राम विकास सहित अन्य परियोजनाओं में करीब 1400 करोड़ रुपए के घोटाले के पर्दाफाश होने के बाद भी उनपर कार्यवाही क्यों नहीं की गयी. जबकि प्रकरण भी उसी समय का है जब योगी सरकार में मोती सिंह ग्रामीण अभियंत्रण के और महेंद्र सिंह ग्राम्य विकास के मंत्री थे. तब यूपीआरआरडीए की एक बैठक के दौरान पीएमजीएसवाई के कार्यों की गुणवत्ता पर नाराजगी जताते हुए तब आरईएस और पीडब्ल्यूडी के मुखिया पर कार्यवाही के आदेश दिए गए थे लेकिन बात आई गई हो गई. यह संयोग ही रहा कि तब के RES विभाग के मंत्री मोती सिंह को मंत्रिमंडल में फेरबदल के बाद ग्राम्य विकास विभाग आवंटित किया गया. सूत्रों की मानें तो विभागों में हुए फेरबदल के बाद वर्तमान विभागीय मंत्री मोती सिंह ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर पूरे मामले से अवगत कराया उसके बाद मुख्यमंत्री के निर्देश पर पूरे मामले की जांच कराई गई और जांच में मामला सही पाने पर यह फैसला किया गया।
बताते चलें कि इस मामले की शुरूआत तब हुई जब 14 अगस्त 2019 को योजना भवन में आहूत यूपीआरआरडीए की साधारण सभा में महेंद्र प्रताप सिंह, तत्कालीन ग्राम विकास राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) ने पिछली बैठक के कार्यवृत्त पर पर्याप्त कार्यवाही न किये जाने से नाराज होकर पीडब्लूडी और आरईएस के चीफ इंजीनियरों के खिलाफ कार्यवाही करने के आदेश दे दिए. उस समय पीडब्लूडी के प्रमुख अभियंता बी के सिंह और आरईएस के विभागाध्यक्ष आर एस गंगवार थे. मंत्रियों में उपमुख्यमंत्री केशव मौर्य के पास पीडब्लूडी और मोती सिंह के पास ग्रामीण अभियंत्रण का महकमा हुआ करता था और आज जब घपला सुर्खियों में है तो आरईएस और ग्राम्य विकास के मंत्री और पीडब्लूडी के चीफ इंजीनियर बदल चुके हैं।
जानकारों का कहना है कि RES विभाग के पूर्व मंत्री मोती सिंह इंजीनियर सेवा वाले विभागों की रग-रग से वाकिफ थे, इसलिए उन्होंने मामले की गहराई को समझते हुए सीएम को पत्र भेजा और मुख्यमंत्री ने इस पत्र का संज्ञान लेकर ईओडब्ल्यू जांच का आदेश दे दिया. जबकि इसके पहले ग्रामीण अभियंत्रण के चर्चित इंजीनियर उमाशंकर इन्हीं के कार्यकाल में बेदाग़ रिटायर हो चुके हैं जिनके कार्यकाल में पीएमजीवाई, अम्बेडकर ग्राम विकास सहित अन्य परियोजनाओं में लगभग 1400 करोड़ रुपए के घोटाले का मामला तूल पकड़ा था और तब इसको लेकर के RES मुख्यालय की दीवारों पर पोस्टर भी चस्पा कर दिए गए थे. लेकिन यह उमाशंकर की जादूगरी थी कि वह अपना कार्यकाल पूरा कर रिटायर भी हो गया और उसका बाल भी बांका नहीं हो सका।
विदित है कि उत्तरप्रदेश में वर्ष 2007 से 2012 के दौरान बहुजन समाज पार्टी की सरकार में भारत सरकार द्वारा वित्त पोषित प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना (पीएमजीएसवाय) तथा अन्य निर्माण योजनाओं की परफारमेंस ऑडिट में भी 1401.37 करोड़ रुपए का घोटाला प्रकाश में आया था. इस सम्बन्ध में समाजिक कार्यकर्ता डा. नूतन ठाकुर ने वर्ष 2007-12 की अवधि में सभी स्थापित मापकों, मानकों, नियमों का मनमर्जी से खुला उल्लंघन करने, ज्यादातर मामलों में टेंडर (निविदा) की स्थापित प्रक्रियाओं तथा नियमों का खुला उल्लंघन होने और भौतिक सत्यापन में कैग द्वारा कई सारी कमियां, खामियां और अनियमितताएं दिखने के बारे में थाना गोमतीनगर में एफआईआर दर्ज कराने की अर्जी दी थी. यदि वास्तव में ऑडिट टीमें पूरे प्रदेश में भेजकर शत-प्रतिशत जांच करा ली जाती तो घोटाला बढ़कर कई गुना हो सकता था जोकि प्रदेश में हुए एनआरएचएम घोटाले से भी बड़ा घोटाला साबित होता. लेकिन बसपा के बाद उमाशंकर का जलवा सपा सरकार से लेकर योगी सरकार तक में भी कमोबेश बरकरार रहा, जिसके प्रभाव से विभाग के प्रमुख सचिव तक को हटना पड़ा था लेकिन प्रकरण की गहराई तक पहुंचने की कार्यवाही मुमकिन न हो सकी।
इस प्रकार यह ऐसे सवाल हैं जिनकी तह तक गये बगैर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की जीरो टोलरेंस की नीति को अमलीजामा नहीं पहुंचाया जा सकता. फिलहाल जांच के बाद ही तथ्य सामने आयेंगे कि क्या यह जांच निष्पक्ष की गयी या फिर खानापूर्ति मात्र बनकर रह गयी. फिलहाल प्रकरण में जांच आदेश दिए जाने के बाद भी अभी तक सभी जिम्मेदार अपने पदों पर बरकरार हैं जोकि नियम ही नहीं न्याय के सिद्धांत के विपरीत है. अब देखना होगा कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की नजर अपने करीब बैठे लोगों पर कब पड़ती है सफाई का काम बाहर के साथ ही जड़ से कब शुरू होगा।