उपेक्षा से कांग्रेस मठाधीशों में नाराजगी
यूपी टीम के बाद अब कइयों को जिला व महानगर कमेटी आने का इंतजार
वाराणसी।लंबी कवायद के बाद प्रियंका गांधी ने यूपी की अपनी नई टीम तैयार तो कर ली, लेकिन इस टीम के आने के बाद ही पार्टी के मठाधीशों ने बागी तेवर दिखाने शुरू कर दिए हैं। कहा जा रहा है कि भाजपा की नकल करना पार्टी के लिए भारी पड़ सकता है। खास तौर पर 2022 के चुनाव को लेकर।
बता दें कि कांग्रेस ने भी ठीक उसी तरह से संगठन में फेरबदल कर नई कमेटी घोषित की है जिस तरह से 2014 लोकसभा और 2017 विधानसभा चुनाव के बीच भाजपा ने किया था। स्मरण हो कि तब भाजपा ने भी दिग्गजों को किनारे करते हुए केशवचंद्र मौर्य के हाथों में प्रदेश की कमान सौंप दी थी। तब भाजपा भी सोशल इंजीनियरिंग के ही फार्मूले के तहत काम किया था। इतना ही नहीं उसी दौरान भाजपा ने वरिष्ठों को परामर्श समिति में डाला था। उस वक्त भाजपा में भी बड़े पैमाने पर विरोध के स्वर उभरे थे। कुछ ने बागी तेवर दिखाए थे। यह दीगर है कि तब भाजाप के पास नरेंद्र मोदी रहे जिनके करिश्माई व्यक्तित्व के चलते पार्टी को नुकासन की बजाया फायदा ही हुआ। वजह एक ये भी रही कि तब केंद्र में भाजपा की ही सरकार थी।
अब कांग्रेस ने भी वही रास्ता अख्तियार किया है। यूपी की कमान सौंप दी है अजय कुमार लल्लू को जो पिछड़ा वर्ग से आते हैं। इसके साथ ही यूपी के सारे दिग्गजों को प्रियंका गांधी के सलाहकार परिषद में डाल दिया गया है। इस घोषणा के बाद से ही पार्टी के दिग्गजों या यूं कहें कि मठाधीशओं ने मोर्चा खोल दिया है। कुछ गंभीर हो गए हैं तो कुछ ने सलाहकार परिषद में जाने से साफ तौर पर इंकार कर दिया है। इसमें एक नाम यूपी के पूर्व वरिष्ठ उपाध्यक्ष व वाराणसी के पूर्व सांसद डॉ राजेश मिश्रा का भी नाम लिया जा रहा है।
पार्टी के दिग्गज नेता अभी खुल कर सामने नहीं आ रहे हैं, पर अंदर ही अंदर घमासान मच गया है। कम से कम बनारस कांग्रेस को यह पार्टी नेतृत्व का यह फैसला कतई रास नहीं आ रहा है। बताया जा रहा है कि यह घमासान जिला और महानगर कमेटी आने के बाद और तेज होगा। कहने वाले तो अभी से नवनियुक्ति प्रदेश अध्यक्ष पर खेमेंबंदी का आरोप लगाने लगे हैं। उनका कहना है कि नए अध्यक्ष व्यक्तिगत तौर पर चाहे जैसे हों, उनका राजनीतिक कैरियर चाहे जो हो पर उन्होंने प्रियंका गांधी को जो फीडबैक दिया है वह पार्टी के लिए नुकासनदायक हो सकता है।
ऐसे लोगों को आशंका है कि जिस तरह से प्रदेश कमेटी गठित की गई है उसी तर्ज पर जल्द ही जिला व महानगर कमेटियां भी थोपी जाने वाली हैं। ऐसे में लोगों को इंतजार है नगर व जिला कमेटियों के आने का। उन्हें यह भी भय सता रहा है कि नई कमेटियां आने के बाद वो जड़ से उखाड़ दिए जाएंगे। उनका वर्चस्व समाप्त हो जाएगा।
हालांकि प्रियंका के इस फैसले से युवा वर्ग में उत्साह है, वजह साफ है कि नई कमेटी में युवाओं को ही ज्यादा तरजीह दी गई है। लेकिन इसे लेकर वरिष्ठों का तर्क है कि युवा जोश के साथ अनुभव का भी मेल होना चाहिए। जो कार्यकर्ता अपने इलाकों में पार्टी का चेहरा थे उन्हें दरकिनार करने से पार्टी का नुकासन होगा। संगठन में मनमुटाव तय है। वो तर्क दे रहे है कि जिस तरह से डॉ मिश्रा ने बागी तेवर दिखाया और सिराज मेहंदी ने सोनिया गांधी को अपना इस्तीफा भेजा है यह सिलसिला और तेज हो सकता है।
मठाधीश यह भी कह रहे हैं कि पुराने दिग्गज जो कांग्रेस के प्रति समर्पित हैं वो कहीं जाएंगे नहीं लेकिन सक्रिय भी नहीं रहेंगे। ऐसा होना भी कांग्रेस के लिए घातक साबित हो सकता है। वरिष्ठ कार्यकर्ता 50 प्लस वालों को नकारे जाने के फार्मूले को पूरी तरह से खारिज कर रहे हैं।