दिल्ली।कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की 75वीं जयंती पर केंद्र की मोदी सरकार को आईना दिखाते हुए कहा कि- राजीव गांधी को पूर्ण बहुमत मिला था लेकिन उन्होंने इसका इस्तेमाल डर का माहौल बनाने में नहीं किया! यह सही है कि जैसा बहुमत राजीव गांधी को 1984 में मिला था, वैसा बहुमत पाना पीएम मोदी के लिए आसान नहीं है, लेकिन बावजूद इसके राजीव गांधी ने कभी अभिमान का प्रदर्शन नहीं किया. सच्चाई तो यह है कि जिस आधुनिक तकनीक का उपयोग करके पीएम मोदी ने कामयाबी पाई है, देश में उस तकनीक को आगे बढ़ाने में राजीव गांधी का बहुत बड़ा योगदान था।
जिन्होंने राजीव गांधी का समय देखा है वे सोनिया गांधी के इन विचारों से सहमत होंगे कि- राजीव गांधी भारत को मजबूत, सुरक्षित और आत्मनिर्भर बनाने की बात करते थे. वे एक ऐसे प्रधानमंत्री थे जिन्होंने थोड़े से समय में भारत की एकता की बात की और देश की बुनियादी सूरत बदलने का काम करके दिखाया. यह उन्हीं का फैसला था कि 18 साल के युवाओं को मतदान का अधिकार मिले. पंचायतों और नगरपालिकाओं को वैधानिक दर्जा मिले. उन्होंने दूरसंचार क्रांति करने का संकल्प किया और छोटे से समय में इसे कर दिखाया।
उन्होंने तकनीक की ताकत का इस्तेमाल न केवल परमाणु उर्जा, अंतरिक्ष और मिसाइल के जरिए किया, बल्कि उन्होंने समाजिक बदलाव की रफ्तार को तेज करने के लिए साइंस और टेक्नॉलोजी का उपयोग पेयजल और कृषि के क्षेत्र में किया. सोनिया गांधी का यह भी कहना था कि 1984 में राजीव गांधी विशाल बहुमत से जीतकर आए थे, लेकिन उन्होंने उस जीत का इस्तेमाल भय का माहौल बनाने और डराने या धमकाने के लिए नहीं किया. संस्थाओं की स्वतंत्रता को नष्ट करने के लिए नहीं किया. असहमति और विरोधी नजरियों को कुचलने के लिए नहीं किया, लोकतांत्रिक परंपरा और जीवनशैली के लिए खतरा पैदा करने के लिए नहीं किया।
वर्ष 1989 में कांग्रेस दोबारा पूरे बहुमत से जीतकर नहीं आ सकी. राजीव ने इस हार को स्वीकार किया था. सबसे बड़े राजनीतिक दल होने के बाद भी राजीव ने सरकार बनाने का दावा पेश नहीं किया था. यह उन्हें उनके नैतिक बल, उनकी उदारता और ईमानदारी ने उन्हें ऐसा करने नहीं दिया. यकीनन्, आप किसी के विचारों से असहमत हो सकते हैं, राजनीतिक रूप से विरोधी भी हो सकते हैं, लेकिन अपना सियासी कद बढ़ाने के लिए किसी दूसरे की छवि खराब करने की कोशिश अमर्यादित राजनीति है, खासकर तब जब वह दिवंगत हो और भारत रत्न से सम्मानित हो, क्योंकि यह देश के सर्वोच्च सम्मान का भी अपमान है?
नजरिया. कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की 75वीं जयंती पर केंद्र की मोदी सरकार को आईना दिखाते हुए कहा कि- राजीव गांधी को पूर्ण बहुमत मिला था लेकिन उन्होंने इसका इस्तेमाल डर का माहौल बनाने में नहीं किया! यह सही है कि जैसा बहुमत राजीव गांधी को 1984 में मिला था, वैसा बहुमत पाना पीएम मोदी के लिए आसान नहीं है, लेकिन बावजूद इसके राजीव गांधी ने कभी अभिमान का प्रदर्शन नहीं किया. सच्चाई तो यह है कि जिस आधुनिक तकनीक का उपयोग करके पीएम मोदी ने कामयाबी पाई है, देश में उस तकनीक को आगे बढ़ाने में राजीव गांधी का बहुत बड़ा योगदान था।
जिन्होंने राजीव गांधी का समय देखा है वे सोनिया गांधी के इन विचारों से सहमत होंगे कि- राजीव गांधी भारत को मजबूत, सुरक्षित और आत्मनिर्भर बनाने की बात करते थे. वे एक ऐसे प्रधानमंत्री थे जिन्होंने थोड़े से समय में भारत की एकता की बात की और देश की बुनियादी सूरत बदलने का काम करके दिखाया. यह उन्हीं का फैसला था कि 18 साल के युवाओं को मतदान का अधिकार मिले. पंचायतों और नगरपालिकाओं को वैधानिक दर्जा मिले. उन्होंने दूरसंचार क्रांति करने का संकल्प किया और छोटे से समय में इसे कर दिखाया।
उन्होंने तकनीक की ताकत का इस्तेमाल न केवल परमाणु उर्जा, अंतरिक्ष और मिसाइल के जरिए किया, बल्कि उन्होंने समाजिक बदलाव की रफ्तार को तेज करने के लिए साइंस और टेक्नॉलोजी का उपयोग पेयजल और कृषि के क्षेत्र में किया. सोनिया गांधी का यह भी कहना था कि 1984 में राजीव गांधी विशाल बहुमत से जीतकर आए थे, लेकिन उन्होंने उस जीत का इस्तेमाल भय का माहौल बनाने और डराने या धमकाने के लिए नहीं किया. संस्थाओं की स्वतंत्रता को नष्ट करने के लिए नहीं किया. असहमति और विरोधी नजरियों को कुचलने के लिए नहीं किया, लोकतांत्रिक परंपरा और जीवनशैली के लिए खतरा पैदा करने के लिए नहीं किया।
वर्ष 1989 में कांग्रेस दोबारा पूरे बहुमत से जीतकर नहीं आ सकी. राजीव ने इस हार को स्वीकार किया था. सबसे बड़े राजनीतिक दल होने के बाद भी राजीव ने सरकार बनाने का दावा पेश नहीं किया था. यह उन्हें उनके नैतिक बल, उनकी उदारता और ईमानदारी ने उन्हें ऐसा करने नहीं दिया. यकीनन्, आप किसी के विचारों से असहमत हो सकते हैं, राजनीतिक रूप से विरोधी भी हो सकते हैं, लेकिन अपना सियासी कद बढ़ाने के लिए किसी दूसरे की छवि खराब करने की कोशिश अमर्यादित राजनीति है, खासकर तब जब वह दिवंगत हो और भारत रत्न से सम्मानित हो, क्योंकि यह देश के सर्वोच्च सम्मान का भी अपमान है?सौजन्य से पल पल इंडिया।