साल में खुलता है सिर्फ एक बार, सर्प शय्या पर विराजमान है भोलेनाथ

धर्म डेस्क।हमारे भारत में बहुत से त्योहारों और पर्वों को मनाया जाता है जिनका अपना-अपना खास महत्व होता है। सभी त्योहारों को धूम-धाम से मनाया जाता है। जिनमें एक है नागपंचमी, जो हर साल मनाई जाती है। बता दें इस साल नागपंचमी 5 अगस्त को मनाई जाएगी। नगपंचमी के दिन सभी नागों की पूजा करते हैं। सभी जानते हैं कि नाग भगवान शिव के गले में विराजमान होते हैं। नागदेवता के अनेकों मंदिर हैं जिनके बारे में आपने सुना होगा लेकिन आज हम आपको नागदेवता के ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जो साल में सिर्फ एक बार खोला जाता है। आइए जानते हैं इस मंदिर के बारे में-

यह मंदिर है नागचंद्रेश्वर मंदिर। इस मंदिर की खास बात यह है कि यह मंदिर साल में सिर्फ एक दिन नागपंचमी पर ही दर्शन के लिए खोला जाता है। ऐसी मान्यता है कि नागराज तक्षक स्वयं मंदिर में रहते हैं। नागचंद्रेश्वर मंदिर में 11वीं शताब्दी की एक अद्भुत प्रतिमा है, इसमें फन फैलाए नाग के आसन पर शिव-पार्वती बैठे हैं। कहते हैं यह प्रतिमा नेपाल से यहां लाई गई थी। उज्जैन के अलावा दुनिया में कहीं भी ऐसी प्रतिमा नहीं है।

पूरी दुनिया में यह एकमात्र ऐसा मंदिर है, जिसमें विष्णु भगवान की जगह भगवान भोलेनाथ सर्प शय्या पर विराजमान हैं। मंदिर में स्थापित प्राचीन मूर्ति में शिवजी, गणेशजी और मां पार्वती के साथ दशमुखी सर्प शय्या पर विराजित हैं। शिवशंभु के गले और भुजाओं में भुजंग लिपटे हुए हैं।

क्या है पौराणिक मान्यता-
सर्प राज तक्षक ने शिवशंकर को मनाने के लिए घोर तपस्या की थी। तपस्या से भोलेनाथ प्रसन्न हुए और उन्होंने सर्पों के राजा तक्षक नाग को अमरत्व का वरदान दिया। मान्यता है कि उसके बाद से तक्षक राजा ने प्रभु के सान्निध्य में ही वास करना शुरू कर दिया। लेकिन महाकाल वन में वास करने से पूर्व उनकी यही मंशा थी कि उनके एकांत में विघ्न ना हो अत: वर्षों से यही प्रथा है कि मात्र नागपंचमी के दिन ही वे दर्शन को उपलब्ध होते हैं। शेष समय उनके सम्मान में परंपरा के अनुसार मंदिर बंद रहता है।

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