कारगिल विजय दिवस-शरीर पर लगी थी आठ गोलियां, फिर भी आलिम अली ने लहराया जुबार हिल पर तिरंगा

वाराणसी के इस जवान ने साथियों के साथ जीता था युद्ध का मैदान, वीरता की कहानी दूसरों के लिए नजीर बनी

वाराणसी. कारगिल की लड़ाई में भारतीय सेना ने एक बार फिर अपना शौर्य व पराक्रम दिखाया था। भारतीय सेना की दिलेरी के देख कर पाकिस्तानी सेना को मैदान छोड़ कर भागना पड़ा था। बनारस के आलिम अली भी उन्हीं जबाज सैनिकों में एक थे, जिन्होंने इस लड़ाई में देश को विजय दिलायी थी। आठ गोलियां लगने के बाद भी आलिम अली ने दुश्मनों के छक्के छुड़ाये थे और अपने साथियों के साथ मिल कर 21 हजार फिट ऊंचे जबार हिल पर तिरंगा फहराया था।

वाराणसी के चौबेपुर के सरसौल गांव के निवासी आलिम अली 1990 में सेना में शामिल हुए थे। 22 ग्रेनेडियर के नायक रहे आलिम अली भी अपने देश के लिए कुछ करना चाहते थे इसलिए सेना में जाकर देश सेवा में जुट गये थे। कई लड़ाई में मुंह की खाने के बाद भी पाकिस्तान ने एक बार फिर भारत की जमीन पर कब्जा करने का दुस्साहस किया था। पाकिस्तान सेना ने धोखे से कारगिर की पहाड़ी पर कब्जा कर भारतीय सेना पर हमला बोल दिया था। 7 जून 1999 में बनारस के आलिम अली को भी कारगिल की लड़ाई में अपना पराक्रम दिखाने के लिए भेजा गया था। आलिम अली अपने 25 साथियों के साथ जुबार हिल पर तिरंगा फहराने के लिए गये थे। पाकिस्तानी सेना ऊंचाई पर थी इसलिए भारतीय सेना को आगे बढऩे में दिक्कत हो रही थी। पाकिस्तानी सेना की फायरिंग में आलिम अली को आठ गोलियां लग गयी थी। उनके सीने, कमर, घुटने आदि हिस्सो में लगी गोली के बाद भी आलिम अली के उत्साह में कमी नहीं आयी थी। घायल होने के बाद भी उन्होंने अपने साथियों के साथ पाकिस्तानी सेना को मुंहतोड़ जवाब दिया था और जुबार हिल पर तिरंगा फहरा कर ही वापस लौटे थे। आलिम अली आज भी छाती चौड़ी करके शौर्यगाथा सुनाते हैं।

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