(विकास शर्मा)
झांसी 13 जुलाई। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच गत वर्ष वुहान में हुई अनौपचारिक शिखर वार्ता का अगला चरण भारत में उत्तर प्रदेश एवं मध्यप्रदेश की सीमा पर बसे और 1857 के प्रथम स्वाधीनता संग्राम के केन्द्र रहे झांसी में आयोजित किये जाने की मांग की गयी है।
इस तरह की मांग उठने के पीछे झांसी का चीन से विशेष रिश्ता होना है जिसके बारे में कम ही लोगों को पता है। दरअसल 1857 के स्वाधीनता संग्राम की महानायिका झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के चरित्र, उनकी बहादुरी और देश के लिए उनके सर्वोच्च बलिदान से चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के नेता माओ त्से तुंग और चाऊ एन लाई बहुत प्रभावित थे।
पं. जवाहर लाल नेहरू के कुटुम्ब के श्रीमती राजन नेहरू ने अपनी पुस्तक ‘बीती यादें’ में चीनी नेताओं पर महारानी लक्ष्मीबाई के प्रभाव के बारे में लिखा है। श्रीमती नेहरू के पति आर. के. नेहरू काफी समय तक चीन में भारत के राजदूत रहे। यह घटना 1954 -55 की है। श्री आर के नेहरू ने बीजिंग स्थित भारतीय दूतावास में चीन के सर्वाेच्च नेता माओ को रात्रिभोज पर आमंत्रित किया। चेयरमैन माओ ने निमंत्रण स्वीकार कर लिया और उन्होंने 1953 में रिलीज़ हुई हिन्दी फिल्म ‘झांसी की रानी’ देखने की इच्छा व्यक्त की।
श्रीमती राजन नेहरू लिखतीं हैं कि माओ की इच्छा के बारे में तत्काल नई दिल्ली सूचना भेजी गयी। दिल्ली से विमान में प्रोजेक्टर, रील आदि भेजीं गयीं और दूतावास में उसे दिखाने का इंतजाम किया गया। चेयरमैन माओ देर शाम भारतीय दूतावास पहुंचे और कुछ देर बाद फिल्म का प्रसारण शुरू हुआ। माओ एक आरामकुर्सी पर बैठे और पैरों को एक स्टूल पर रख कर इत्मिनान से फिल्म देखने लगे। रात में डेढ़ बजे तक जब फिल्म खत्म नहीं हुई तो सुरक्षाकर्मियों एवं चीनी अधिकारियों ने चेयरमैन के इतनी देर तक रुकने पर चिंता व्यक्त की। इसे देख कर श्री आर के नेहरू ने फिल्म में कुछ रीलें कटवा दीं। पर माओ तुरंत समझ गये कि फिल्म में कुछ दृश्य गायब हैं। उन्होंने तुरंत ही गायब दृश्यों के बारे में पूछताछ की तो उन्हें असली बात बतायी गयी। माओ के कहने पर वे रीलें दोबारा लगायीं गयीं और उन्होंने अंत तक पूरी फिल्म का आनंद उठाया।
विशेषज्ञों का कहना है माओ ने झांसी की रानी फिल्म कई बार और बड़े मनाेयोग से देखी होगी तभी वह फिल्म की रील काटे जाने को तुरंत भांप गये और पूछताछ करने लगे थे। उल्लेखनीय है कि रूस, ब्रिटेन, जापान, चीन सहित दुनिया के तमाम देशों के सैन्य इतिहास में रानी लक्ष्मीबाई के युद्धकौशल एवं पराक्रम को पढ़ाया जाता है।
झांसी के रहने वाले भारतीय जनता पार्टी के नेता एवं समाजसेवी डॉ. विजय खैरा ने कहा कि भारत एवं चीन के बीच सांस्कृतिक मेल बहुत गहरा है और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार चीन के साथ इसी संबंध को उभारने एवं बल देने के लिए प्रयास कर रही है। अगर चीन के राष्ट्रपति रानी लक्ष्मीबाई की झांसी में पधारें और झांसी के किले के प्राचीर की छाया में प्रधानमंत्री श्री मोदी के साथ बातचीत करें तो इसका बहुआयामी संदेश जाएगा।
डॉ. खैरा ने कहा कि 1857 के प्रथम स्वाधीनता संग्राम का साक्षी झांसी 162 साल बाद एक बार फिर दुनिया की दो सर्वाधिक आबादी वाली महाशक्तियों के मिलन का केन्द्र बनेगा और दुनिया में उसकी शोहरत बढ़ेगी। झांसी बुन्देलखंड का केन्द्र है जिसे कभी जैजाकभुक्ति कहा जाता था। चीनी यात्री ह्वेनसांग ने अपने यात्रा संस्मरणों में जैजाकभुक्ति का उल्लेख किया है। झांसी आज देश की बड़ी सैन्य छावनियों और रेलवे के बड़े केन्द्रों में से एक के रूप में जाना जाता है। मोदी सरकार ने इसे उत्तर भारत में बनने वाले डिफेंस कॉरीडोर का प्रमुख केन्द्र बनाने का फैसला किया है।