अंगूर खट्टे नहीं कड़वे भी हो सकतें हैं योगी जी?

लखनऊ।कल उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था को लेकर उत्तर प्रदेश के यशस्वी मुख्यमंत्री श्रीमान योगी आदित्यनाथ जी का बयान पढ़ा, जिसमें उन्होंने कहा कि कानून व्यवस्था पर सवाल उठाने वालों के लिए अंगूर खट्टे हैं। उनकी साजिशों को जनता ने लोकसभा चुनाव में नकार दिया है, अब प्रदेश से पलायन नहीं हो सकता, कानून व्यवस्था में बदलाव हुआ है, मैं ईमानदारी से काम करने वाले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी से कहना चाहता हूं कि योगी जी कानून-व्यवस्था के गिरते स्तर को सही बताना आप जैसे सन्यासी के मुंह से शोभा नहीं देता। क्योंकि अन्य सरकारों की तरह आपसे सच्चाई नकारने की उम्मीद नहीं की जा सकती। क्या आपको नहीं पता कि जिसे उत्तर प्रदेश का राज्य मुख्यालय कहा जाता है वहां प्रतिदिन और प्रति रात कोई हत्या बलात्कार या चोरी डकैती होना आम बात हो गई है। और यदि उक्त में से कुछ न हो तो छेड़छाड़ या पुलिस प्रताड़ना अथवा किसी न किसी रूप में करोड़ों की ठगी उस कमी को पूरा कर देती है। जब मुख्यमंत्री उपमुख्यमंत्री डीजीपी सहित कानून के तमाम आला अधिकारियों की निवास स्थली यानी राज्य मुख्यालय का यह हाल है तो अन्य जिलों की स्थिति का अंदाजा लगाना शायद आपके बस में भी नहीं है। मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि कानून-व्यवस्था सही करने के आपके प्रयासों में कमी नहीं है मुठभेड़ों का खौफ प्रत्येक जिले के बदमाशों में पैर पसार रहा है ।लेकिन लोकसभा चुनाव के बाद अपराधों में तेजी से वृद्धि हुई है, इसे आपको बिना एक पल गंवाए स्वीकार कर लेना चाहिए। क्योंकि जब कोई सरकार अपनी कमी स्वीकार नहीं करेगी तो सुधार के प्रयास कैसे किए जाएंगे। मुख्यमंत्री जी जानते हैं सपा बसपा की सरकार में यही तो होता था जब खराब कानून-व्यवस्था तेजी से पैर पसारती थी और मुख्यमंत्रियों से सवाल किए जाते थे तो बढ़ते अपराधों को वह यह सोचकर छिपाने का प्रयास करते थे कि जैसे आधुनिक युग होने के बावजूद बिगड़ी कानून व्यवस्था का किसी को पता ही नहीं चलेगा। मेरे विचार से योगी जी आपको यह गलती नहीं करनी चाहिए। सही बात पक्ष कहे या विपक्ष मीडिया कहे या कोई अधिकारी आप उसे शालीनता से स्वीकार करें, ताकि अधिकारियों के कान ऐंठकर उसमें सुधार किया जा सके। जानते हैं योगी जी आज दिन प्रतिदिन मीडिया में सरकार का खौफ बढ़ता जा रहा है जिसे आपको निकाल फेंकना चाहिए, क्योंकि लोग सही बात नहीं बताएंगे तो सुधार कैसे होगा। यही हाल कानून व्यवस्था के अलावा अन्य विभागों का है जहां रिश्वतखोरी भ्रष्टाचार बदस्तूर जारी है और मीडिया कर्मी या अन्य लोग जानकारी होने के बावजूद आपसे यह सोचकर बता पा पा रहे हैं कि कहीं आप नाराज ना हो जाएं और कहने लगे कि मेरी सरकार को बदनाम कर रहा है। मुख्यमंत्री जी आप गांव गांव या शहर शहर सभी जगह नहीं जा सकते और ना ही सभी जगह की जानकारी रख सकते हैं।अधिकारी तो आपसे अपने जिले की खराब स्थिति बताने से रहा, अधिकारियों को डर रहता है कि कोई मुख्यमंत्री या उच्चाधिकारी से हमारे जिले की कमियां न बता दे, क्योंकि मुख्यमंत्री के संज्ञान में आया कि अमुक अधिकारी सरकार की नीतियों का पालन नहीं कर पा रहा है तो उसे हटाया जा सकता है या निलंबित किया जा सकता है। तो उसमें डर के मारे ही सही सुधार की संभावनाएं रहती हैं, लेकिन मुख्यमंत्री जी यदि खुद ही क्लीनचिट देंगे तो भला कौन अधिकारी अपनी कार्यशैली में सुधार लाएगा। मुझे याद है 15 साल पहले का वह समय जब अखबारों में खबर छपते ही नकारा अधिकारियों की सिट्टी पिट्टी गुम हो जाती थी। उन्हें डर रहता था कि यदि इस अखबार की कटिंग सरकार तक पहुंच गई या उच्चाधिकारी तक जा पहुंची तो तुम्हें कोई बचा नहीं पाएगा। आज की तारीख में कोई छोटी-मोटी खबर क्या पूरा अखबार ही क्यों न खामियों को लेकर छप जाए किसी के कान पर जूं नहीं रेंगती। इसलिए किसी के द्वारा आरोप लगाने से, आपका अंगूर खट्टे बताने का जवाब नहीं बनता, बल्कि आपको दुश्मन की बात पर भी भरोसा करके जांच कराकर कार्रवाई की बात करनी चाहिए। कानून व्यवस्था का तो घर बैठे पता चल जाता है। सवाल पलायन का नहीं सवाल कानून व्यवस्था का है लखनऊ में भले ही दस बीस वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक तैनात कर दो लेकिन राज्य मुख्यालय को अपराधों व अपराधियों से मुक्त कर डालो। यहां कब कहां चोरी हो जाए, कब कौन किसकी हत्या कर डाले किसी को नहीं पता। बस आखिर में आप से यह गुजारिश है कि अंगूर खट्टे नहीं कड़वे भी हो सकते हैं इसे स्वीकार करो ताकि समय रहते सुधार किया जा सके वरना सपा बसपा व आपकी सरकार में जनता को कोई फर्क नजर नहीं आएगा।

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