शिमला ।
हिमाचल प्रदेश के पूर्व सीएम शांता कुमार की ईमानदारी के उनके विरोधी भी कायल हैं। मोदी सरकार को एक और मौका मिलने के प्रति आश्वस्त शांता चुनाव न लड़ने की घोषणा कर चुके हैं। उन्होंने हिमांशु मिश्र से विस्तार से बातचीत की।
★ पिछले व इस चुनाव में क्या अंतर देखते हैं?
तब कांग्रेस को हटाना बड़ा मुद्दा था। लोगों को नरेंद्र मोदी का करिश्माई व्यक्तित्व और विकास का गुजरात मॉडल पसंद आया। इस बार हमें उपलब्धियों की बदौलत पुराना प्रदर्शन दोहराना है।
उपलब्धियों के कारण लोग हाथों-हाथ लेंगे?
दर्जनों योजनाएं ऐसी हैं जिसका सीधा लाभ पहली बार गरीब के दरवाजे तक मजबूती से पहुंचा है।
★ मतलब सभी समस्याएं खत्म हो गईं?
पहली बार विकास को सामाजिक न्याय से जोड़ा गया। हालांकि ग्लोबल हंगर इंडेक्स के अनुसार देश में 20 करोड़ से ज्यादा लोग हैं, जिन्हें भरपेट खाना नहीं मिलता। सरकार ने विषमता कम करने में बेहतरीन काम किया है।
पार्टी ने चुनाव लड़ने के लिए 75 साल की उम्र सीमा तय कर रखी है, तो दिक्कत क्या है?
नए चेहरों को आना चाहिए। मगर पुराने चेहरों के लिए भी सम्मानजनक रास्ता हो। जहां तक टिकट का सवाल है, तो यह नेतृत्व का फैसला है। देश में मुस्लिम आक्रांता, अंग्रेज आए तो उनके सेवक अधिकतर 25 से 35 साल के युवा थे। उस दौर में भी 80 साल के वीर कुंवरसिंह हाथ कटने के बावजूद अंग्रेजों से लोहा लेकर अमर हो गए… मेरा मानना है कि सेवा में उम्र ही मानक नहीं होती।
★ इस बार भाजपा की बुजुर्ग सेना बाहर है, क्या आपको इसका मलाल है?
मैं पिछला चुनाव नहीं लड़ना चाहता था। राजनाथजी ने बाध्य कर दिया। इस बार भी मैंने पहले ही चुनाव नहीं लड़ने की घोषणा कर दी। आडवाणी जी का जहां तक सवाल है तो उन्हें चुनाव न लड़ाने के लिए पार्टी बेहतर रास्ता अपना सकती थी। टिकट की घोषणा के बाद मैं उनसे मिलने गया था। उनकी आंखों में आंसू थे। मुझे यह दृश्य बहुत पीड़ादायक लगा।
आडवाणी जी ने कुछ कहा नहीं?
आडवाणी जी वैसे भी कम बोलते हैं। मैं उनसे मिला तो पर बोले कुछ नहीं। मगर उनकी आंखों में आंसू थे, जो बहुत कुछ कह रहे थे।
★आप लगभग पांच दशक से राजनीति में, आपको किस चीज से बेचैनी होती है?
राजनीति का तेजी से अवमूल्यन हुआ है। हालात यह हैं कि नेताओं की मंडी सजी हुई है। टिकट ही निष्ठा का पैमाना बन गया है। जब राजनीति इस स्तर तक पहुंच जाए तो मन में सवाल उठता है कि क्या शहीदों के सपनों का भारत ऐसा ही बनेगा?