मेघालय की खासी जनजाति: यहां महिलाएं हर फैसले लेती हैं, पैतृक संपत्ति पर भी बेटियों का पूरा हक

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शिलॉन्ग से वेरेटे लुकास पोहती. मेघालय के खासी और जयंतिया हिल्स इलाके में रहने वाला खासी समुदाय मातृसत्तात्मक व्यवस्थाओं के लिए जाना जाता है। इस समुदाय में फैसले घर की महिलाएं ही करती हैं। बच्चों को उपनाम भी मां के नाम पर दिया जाता है। पैतृक संपत्ति पर बेटियों, खासकर सबसे छोटी बेटी का हक होता है। महिला दिवस पर भास्कर प्लस ऐप आपको इस समुदाय की खासियत के बारे में बता रहा है।

खासी जनजाति के लोग मुख्य तौर पर मेघालय के खासी और जयंतिया हिल्स पर बसे हुए हैं। असम, मणिपुर, पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश के कुछ हिस्सों में भी इनकी अच्छी तादाद है। कहा जाता है कि ये लोग म्यांमार के प्रवासी हैं। सदियों पहले म्यांमार से आकर इन लोगों ने मेघालय समेत पूर्वोत्तर भारत के क्षेत्रों में अपनी बस्तियां बसाईं। मेघालय में इनकी संख्या करीब 15 लाख है।

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परंपराएं : शादी के बाद पुरुष ससुराल में रहते हैं

  • खासी समुदाय में घर-परिवार और समाज को संभालने की जिम्मेदारी महिलाओं की होती है।
  • यहां शादी के बाद महिलाएं नहीं, बल्कि पुरुषों को ससुराल जाना होता है।यहां दहेज प्रथा नहीं होती।
  • संपत्ति भी बेटे की बजाय परिवार की सबसे छोटी बेटी के नाम की जाती है।
  • माता-पिता का ख्याल रखने के लिए छोटी बेटी मायके में ही अपने पति के साथ रहती है।
  • छोटी बेटी कोखाडूह/रप यूंग/रप स्नी के नाम से जाना जाता है।अगर खाडूह अपना धर्म बदल लेती है तो उनसे परिवार की देखभाल करने की जिम्मेदारी छीन ली जाती है।
  • बेटियों के जन्म लेने पर यहां जश्न मनाया जाता है, जबकि बेटे के जन्म पर उतनी खुशी नहीं होती।
  • हर परिवार चाहता है कि उनके घर में बेटी पैदा हो, ताकि वंशावली चलती रहे और परिवार को उसका संरक्षक मिलता रहे।
  • बच्चों के उपनाम मां के नाम पर होते हैं। बच्चों की जिम्मेदारी भी महिलाएं ही उठाती हैं, पुरुषों का बच्चों पर उतना अधिकार नहीं होता।
  • एक अपवाद : खासी समुदाय की परंपरागत बैठक, जिन्हें दरबार कहा जाता है, उनमें महिलाएं शामिल नहीं होतीं। इनमें केवल पुरुष सदस्य होते हैं, जो समाज से जुड़े राजनीतिक मुद्दों पर चर्चा करते हें और जरूरी फैसले लेते हैं।

धर्म और भाषा
खासी जनजाति के लोग एनिमिस्टिक (जीवात्मा) होते हैं। ये लोग हर जीवित-अजीवित वस्तु में आत्मा होने के सिद्धांत को मानते हैं। हालांकि अब इस समुदाय के कई लोगों ने ईसाई धर्म को अपनाया है। कुछ संख्या में इस समुदाय के लोग हिंदू और मुस्लिम धर्म को भी अपनाए हुए हैं। इस समुदाय के लोगों की भाषा खासी ही है, जो कि एक ऑस्ट्रो-एशियाटिक भाषा है। यह मौन-खेमर भाषाओं में से ही एक है।

पुरुष युद्ध लड़ने जाते थे, तब शुरू हुई महिला प्रधान व्यवस्था
समुदाय के लोग बताते हैं कि प्राचीन समय में पुरुष युद्ध के लिए लंबे समय तक घर से दूर रहते थे। ऐसे में परिवार और समाज की देखरेख का जिम्मा महिलाएं संभालती थीं। तभी से यहां महिला प्रधान सिस्टम का चलन है। कुछ लोगों का यह भी कहना है कि खासी समुदाय में पहले महिलाएं बहुविवाह करती थीं। इसलिए बच्चे का सरनेम उसे जन्म देने वाली मां के नाम पर ही रख दिया जाता था।

जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा है संगीत
खासी लोगों के जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा संगीत है। इस समुदाय के लोग ड्रम्स, गिटार, बांसुरी और लकड़ी से बने अलग-अलग तरह के पाइप जैसे वाद्य यंत्रों को बड़े शौक से बजाते हैं। इन लोगों को नाचने का भी बहुत शौक होता है। खासी समुदाय के लोग बेहद नर्म और अच्छे स्वभाव के होते हैं। यहां हर मुलाकात पर सुपारी भेंट करने का रिवाज भी है। यह दोस्ती के प्रतीक के तौर पर दी जाती है।

पारंपरिक वेशभूषा
वैसे तो अब खासी समुदाय में महिला और पुरुष, देश के अन्य हिस्सों की तरह ही मॉडर्न कपड़े पहनते हैं लेकिन इनकी पारंपरिक वेशभूषा अलग है। पुरुष बिना कॉलर वाले लम्बे स्लीवलेस कोट पहनते हैं। महिलाएं अलग-अलग कपड़ों के टुकड़ों से बनी ड्रेस पहनती हैं। इन्हें ज्वैलरी का भी बहुत शौक होता है। ये कान में लंबी बालियां, कमर में सोने की चेन और सिर पर चांगी या सोने का ताज भी पहनती हैं।

मूल भोजन चावल
खासी जनजाति का मूल भोजन चावल हैं। ये लोग चावल के साथ मछली, मांस और सब्जियां खाते हैं। उत्सवों के समय चावल से बनी बीयर पी जाती है। नॉन्गक्रेम सबसे बड़ा त्यौहार होता है। पांच दिन के यह धार्मिक उत्सव नवंबर महीने में आता है। शाद-सुक मिनसियम एक अन्य बड़ा त्यौहार है, जो तीन दिन तक चलता है।

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