दैदीप्यमान नक्षत्र महाराणा प्रताप- अम्बरीष जी

महाराणा प्रताप की जयंती पर भेंट वार्ता

सोनभद्र(मिथिलेश प्रसाद द्विवेदी)। विश्व हिन्दू परिषद के केंद्रीय मंत्री अम्बरीष जी ने रविवार को एक विशेष भेंटवार्ता के दौरान महाराणा प्रताप जयंती के दिन महाराणा के व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि नीले घोड़े चेतक पर आरूढ़ भारत माता के शौर्याकाश के दैदीप्यमान नक्षत्र महाराणा प्रताप जब अकबर की विराट शाही सेना में कुल कलंक, देशद्रोही मान सिंह को तलाश रहे थे तो उनके मन में किंचित यह भाव नहीं था कि जिनको आज उनके पक्ष से देश और धर्म के रक्षा के इस युद्ध में खड़ा होना चाहिये था वे शत्रु पक्ष में खड़े हैं और जिनसे सहायता की अपेक्षा नहीं की थी वे शस्त्र सज्जित साथ खड़े हैं। उन्होंने यह भी कहा कि यह वह कालखण्ड था, जिनके ऊपर देश और धर्म की रक्षा का दायित्व था वे सुविधा प्राप्ति और प्राण भय से अकबर के दरबार में ऊँचा आसन कैसे प्राप्त हो इस होड़ में लगे थे। अकबर जैसा क्रूरकर्मा और धूर्त शासक सर्वधर्म समभाव का पाखण्ड कर देश का मान भंग कर रहा था, यहाँ के राजे राजवाड़े अकबर की कृपा कटाक्ष में ही अपनी धन्यता का अनुभव कर रहे थे, सीता और द्रोपदी के इस देश में मानसिंह जैसे निर्लज्जों ने घर की आन तक को अकबर के हरम में पहुँचा दिया था, ऐसी विषम परिस्थिति में वीरों की भूमि राजस्थान से मेवाड़ाधिपति महाराणा प्रताप ने दिल्ली दरबार के गर्व से तनी हुयी गर्दन को  चुनौती दी।उन्होंने आगे कहा कि महाराणा की लड़ाई वैभव और राज्य के लिये नहीं देश और धर्म के आन, बान, शान और सम्मान की लड़ाई थी। इस धर्म युद्ध में जब उनके अपनों ने प्राणभय से मुख मोड़ लिया तो देशभक्त भीलों और स्वाभिमानी राजपूतों ने उनका साथ दिया, भामाशाह का धन, प्रजा की श्रद्धा और सैनिकों का समर्पण ही महाराणा की पूँजी बने। श्री अम्बरीष ने कहा कि हल्दीघाटी के जगत प्रसिद्ध युद्ध में अपनी छोटी सी ही,लेकिन शौर्य की जीवित जागृत प्रतीक सेना के  साथ चेतक पर सवार, भाले से सुसज्जित, गर्वोन्नत मस्तक, राणा का यह अद्भुत स्वरूप देवताओं को भी चमत्कृत कर देने वाला था। आज भारत माता के इस यशस्वी पुत्र की  जयंती हम उल्लासपूर्वक मना रहे हैं महाराणा का वंशज होना और उनकी परंपरा का वाहक होना दोनों अलग बात है महाराणा की परंपरा यानि घास की रोटी खाना स्वीकार , निर्जन वन में हिंसक जीवों के पड़ोस में जीवन जीना स्वीकार, महलों का आरामदायक जीवन छोड़ना स्वीकार, स्वजनों को कष्ट में रखना स्वीकार लेकिन वैभव संपन्न, देशद्रोही मानसिंह  के साथ भोजन करना स्वीकार नहीं। सत्य, स्वाभिमान देशभक्ति धर्मरक्षा के पथ पर चलने का निश्चय कर लिया तो विरोध कौन कर रहा है समर्थन कौन कर रहा है इसकी चिंता नहीं। महाराणा की जयंती के दिन हम संकल्प लेते हैं एक लम्बी लड़ाई हमें लड़नी है जाति मत पंथ भाषा से ऊपर उठकर हिन्दु समाज को हिन्दु के नाते खड़ा करने के लिये, इस लड़ाई हमें इसकी चिंता किये बिना लड़नी है कि हमारा साथ कौन देता है, हमें इसकी भी चिंता नहीं करनी है कि लड़ाई में हमारे सामने कौन है। मोह से मुक्त होकर इस धर्म युद्ध को सतत जारी रखते हुये हम विजय प्राप्त करेंगे ऐसा दृढ़ विश्वास हमारा बना रहे यही राम जी से प्रार्थना है।

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