(ओमप्रकाश रावत) विंढमगंज-सोनभद्र- भारतीय इंटरमीडिएट कालेज के खेल मैदान से सटे छठ घाट से होकर गुजरने वाली सतत वाहिनी नदी के तट पर पितरश्राद्ध स्थानीय लोगों के द्वारा अर्पण, तर्पण और समर्पण की भाव के साथ पंडित राजू रंजन तिवारी के द्वारा प्रतिदिन सुबह से लेकर दोपहर 12:00 बजे तक कराया जा रहा है। छठ घाट पर पितर श्राद्ध करा रहे पंडित राजू रंजन तिवारी ने कहा कि श्राद्ध का अर्थ श्रद्धा पूर्वक किया हुआ वह संस्कार जिससे पितृ संतुष्टि प्राप्त करते हैं पितृ या पूर्वज ही हमें जीवन में आने वाली कठिन परिस्थितियों से उबरने में मदद करते हैं। भाद्रपद माह की पूर्णिमा से आश्विन माह की अमावस्या तक का

पक्ष महालय श्राद्ध पक्ष कहलाता है इस पक्ष में व्यक्ति की जिस तिथि को मृत्यु हुई है उस तिथि पर मृत व्यक्ति के पुत्र, पौत्र आदि उनका श्राद्ध कर्म करते हैं इस श्राद्ध कर्म में पितरों को कई प्रकार के मंत्रों के उच्चारण के पश्चात काला तिल,जौ,फुल,अक्षत को हाथ में कुश लेकर दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके तर्पण कराया जाता है और उनके मोक्ष प्राप्ति के लिए संकल्प भी कराया जाता है। हिंदू सनातन धर्म के शास्त्रों में यह वर्णित है कि एक बार गयासूर नाम के एक असुर ने घोर तपस्या करके भगवान से आशीर्वाद प्राप्त कर लिया भगवान से मिले आशीर्वाद का दुरुपयोग करके गयासुर ने देवताओं को ही परेशान करना शुरू कर दिया गयासुर के अत्याचार से समस्त देवताओं ने भगवान विष्णु की शरण ली और उनसे प्रार्थना की कि वे गयासुर से देवताओं व मनुष्य की रक्षा करें इस पर भगवान विष्णु ने अपनी गदा से गयासुर का वध कर दिया, बाद में भगवान विष्णु ने गयासुर के सर पर एक पत्थर रख कर उसे मोक्ष प्रदान किया। कहा जाता है कि गया शहर में स्थित विष्णुपद मंदिर में वह पत्थर आज भी मौजूद है भगवान विष्णु द्वारा गयासुर का वध किए जाने से उसे गया तीर्थ में मुक्तिदाता माना गया गया। प्राचीन कथा का उल्लेख के अनुसार लोग गया में भी जाकर अपने पितरों का गयावास कराते हैं तथा मृत्यु की तिथि पर पितरों को कई प्रकार के स्वादिष्ट पकवानों का भोग लगाया जाता है पकवान सर्वप्रथम कौवा, गाय, स्वान को शुद्ध जल के साथ खिलाने के पश्चात ही ब्राह्मणों को प्रसन्न चित्र मुद्रा में भोजन कराया जाना शास्त्रों में वर्णित किया गया जिससे पितर प्रसन्न होकर अपने वंश के ऊपर विपदा की घड़ी में सूक्ष्म रूप में आकर सहयोग प्रदान करते हैं।
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