टीबी सिंह
लखनऊ ।उत्तर प्रदेश में प्रशासनिक अफसरों के बीच वेतन संरक्षण भत्ते की कटौती को लेकर मामला गर्म है. अफसरों का कहना है कि आर्थिक मोर्चे पर बदहाली से जूझ रही योगी सरकार को निजात दिलाने का जिम्मा शासन के जिस वित्त विभाग पर है लगता है वह हड़बड़ाहट में है. और इसीलिए सरकार के राजनीतिक नफे नुकसान को दरकिनार कर पहले कर्मचारियों के वेतन भत्ते में कटौती करने के बाद अब प्रशासन की रीढ़ समझे जाने वाले प्रमोटी अफसरों को मिलने वाले वेतन संरक्षण के लाभ को खत्म करने की कवायद में जुटा है।
सियासी पंडितों का कहना है कि सूबे में बड़ी संख्या में होने की वजह से अपनी धमक रखने वाले कर्मचारियों के भत्तों में कटौती के बाद अब पीसीएस व पीपीएस से प्रमोटी अफसरों के वेतन संरक्षण भत्ते की कटौती की कवायद सरकार को आर्थिक रूप से सहयोग भले करे परन्तु सियासी रूप से नुकसानदेय साबित हो सकता है।
बताते चलें कि प्रमोशन के बाद वेतन संरक्षण भत्ता पीसीएस व पीपीएस प्रमोटी अफसरों जोकि 8700 व 10000 पे स्केल पर थे उनको मिलता रहा है. बाद में पीसीएस से प्रमोटी अफसर अनिता चटर्जी जोकि 8900 के पे स्केल से रिटायर हो गईं थी इस भत्ते को लेकर कोर्ट चलीं गयीं. कोर्ट के फैसले के बाद इसी योगी सरकार में श्रीमती चटर्जी को वेतन संरक्षण भत्ता के भुगतान का आदेश दिया गया और कोर्ट में मुख्य सचिव की तरफ से इस सन्दर्भ में एक शपथ पत्र भी दाखिल किया गया।
सूत्रों से मिल रही जानकारी के मुताबिक अपर मुख्य सचिव वित्त के विशेष प्रयासों और कोशिशों के बाद मुख्यमंत्री द्वारा इसके सम्बंध में करीब 2 महीने पहले एक कमेटी गठित कर दी गयी।गठित कमेटी का अध्यक्ष मुख्य सचिव को बनाया गया तथा अपर मुख्य सचिव गृह व प्रमुख सचिव न्याय इसके सदस्य बनाये गए. अफसरों का तो यह भी कहना है कि सीएम के 2-3 बार इस फ़ाइल को टर्न डाउन करने के बाद फिर इस मामले में मुख्य सचिव की अध्यक्षता में कमेटी बनाई गई. जानकार बताते हैं कि प्रमोशन पाए अफसरों को इस फंड का पूरा भुगतान राज्य सरकार द्वारा वहन किया जाता है. फिर भी इस मामले में केंद्र से भी पत्र व्यवहार किये जाने की जानकारी है।
फिलहाल वित्त विभाग के इस कदम से प्रमोटी आईएएस व आईपीएस अफसरों के बीच सुगबुगाहट तेज हो गयी है। उनका कहना है कि जिस सबन्ध में सरकार कोर्ट में शपथ पत्र दे चुकी हो और कोर्ट के आदेश पर 8700 पे स्केल तथा 10000 पे स्केल के अलावा 8900 पे स्केल वाले को भी यह भत्ता देना पड़ा हो, उसी सरकार में अफसरों द्वारा वेतन संरक्षण भत्ते की कटौती की यह कवायद किसी भी तरह से न सरकार और न ही अधिकारियों के हित में है। अफसरों का कहना है कि इसमें सरकार के खिलाफ किसी सियासी साजिश से इनकार नहीं किया जा सकता। अब देखना यह होगा कि ऐसे में गठित कमेटी क्या रिपोर्ट देती है और सरकार उसपर क्या निर्णय लेती है। क्या सरकार अपने ही फैसले को बदलेगी या फिर इस टकराव का कोई और रास्ता निकालती है।