वरिष्ठ पत्रकार विजय शंकर चतुर्वेदी की खास रिपोर्ट
जब शिव हुए क्वारन्टीन

सोनभद्र।एक सप्ताह तक आइसोलेट रहे हिमालय से आने के बाद
‘शिव जी द्वारा कोई प्रतिक्रिया न देने पर चित्रंगदा (प्रशिक्षक) ने विनम्रतापूर्वक बोला कि ये अस्थायी निवास हैं, लेकिन जो वास्तविक घर होंगे इससे कई गुना ज्यादा आरामदेह होंगे, आप लोगों को यहां सिर्फ क़वारन्टीन के लिए रखा गया है जो सात दिन से ज्यादा नहीं होगा ।
अरे ! नहीं, अस्थाई आवास ही कल्पना के बाहर हैं, मौसी क्या कहती हो, वीरभद्र (शिव के बचपन के मित्र) की माँ से शिव ने प्रश्न किया और चित्रांगदा की तरफ मुख़ातिब होकर यह प्रश्न किया- ‘यह क्वारन्टीन क्यों’
नंदी (मेल्हुआ सेना के सेनापति) ने हस्तक्षेप किया, और बोले – शिव यह क्वारन्टीन एक एहितयात उपाय है, हमारे यहां मेल्हुआ में ज्यादा बीमारी नहीं होती, लेकिन आगन्तुक कभी कभी नई बीमारियों के साथ आते हैं,

इसलिए चिकित्सक सात दिनों तक इन्हें अपने देखरेख में रखते हैं व परीक्षण कर समुचित इलाज भी करते हैं।
आयुर्वती ( चिकित्सकों की प्रमुख) का एक दिशा निर्देश है कि आपको साफ सफाई व उपायों का कड़ाई से अनुपालन करना है ।’
(पृष्ठ- 15-16, पुस्तक- मेल्हुआ,लेखक- अमिश, प्रकाशन वर्ष- 2010 )
मेरा विचार – यद्यपि यह पुस्तक कल्पना के आधार पर लिखी गयी है लेकिन प्रत्येक लेखन के आधार का यथार्थ और परंपराओं से इतर नहीं होता, बहुत नए मानक भी नहीं गढ़े जाते हैं, भारतीय संस्कृति में साफ सफाई और कीटाणुओं से दूर रहने के अनगिनत उपाय आज भी प्रचलित हैं,
जब भी हम अपनी मौलिकता और संस्कृति से दूर जाते हैं, संकट का सामना करना पड़ता है।
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