मीरजापुर।मध्य प्रदेश उत्तर प्रदेश के बॉर्डर पर बसे रीवा जिला अंतर्गत हनुमना स्थित श्री रामानुज आयुर्वेदिक औषधालय सीधी रोड हनुमना द्वारा श्वास, दमा, स्थमा, स्नोफीलिया एवं पुरानी खांसी की वह चमत्कारी दवा जिसके एक ही खुराक दवा सेवन और परहेज मात्र से भगवत कृपा से उपरोक्त बीमारियां सदा के लिए दूर हो जाती है 13 अक्टूबर रविवार को शरद पूर्णिमा के शुभ मुहूर्त में निःशुल्क वितरित की जाएगी। उल्लेखनीय है कि यह चमत्कारी विंध्य में जनसंघ के संस्थापक तथा लोकतंत्र सेनानी नाड़ी विशेषज्ञ औषधालय के संस्थापक सरयू प्रसाद वैद्य को उनके सदगुरुदेव अनंत श्री विभूषित पूज्यपाद बैकुंठ वासी स्वामी माधवाचार्यजी महाराज के चरण कमलों के कृपा से प्रसाद स्वरूप शोषित पीड़ित मानवता के कल्याणार्थ पर्याप्त है।जिसे श्रीबैद्य तकरीबन 60वर्षो से शरद पूर्णिमा के शुभ मुहूर्त में प्रतिवर्ष नि: शुल्क वितरित करते चले आ रहे हैं। जिसे सेवन करने के लिए मरीज को स्वयं हनुमाना चलकर आना पड़ता है क्योंकि इस दवा में एक ऐसी जड़ी का स्वरस डाला जाता है जो शरद पूर्णिमा के शुभ मुहूर्त में ही उखाड़ी जाती है।जिसके सेवन से प्रतिवर्ष देश की अनेक प्रांतों से आने वाले भारी संख्या में श्वास, दमा, स्थमा , स्नोफीलिया तथा पुरानी खांसी से पीड़ित मरीज इस भयंकर बीमारी से छुटकारा प्राप्त कर सुखी में जीवन का आनंद लेते हैं। इसके अतिरिक्त श्री वैद्य लकवा पोलियो मिर्गी बांझपन, सफेद दाग ,गलतकुष्ठ, साइटिका गठियाबात, पथरी को शीघ्र गलाकर गिरा देना, नपुंसकता नामर्दी आदि समस्त रोगों की चिकित्सा में अभ्यस्त एवं सिद्धहस्त हैं। जिनकी चिकित्सा से अनेकानेक असाध्य व भयंकर रोगों से पीड़ित मरीजों ने पूर्ण स्वास्थ्य हो सुखमय जीवन का आनंद लेते हुए यह सिद्ध कर दिया है कि “आयुर्वेद ही जगत में एक ऐसी चिकित्सा पद्धति है जो रूग्ण मानव शरीर के रोगों को समूल नष्ट कर पुनः स्वास्थ्य व सजीव शरीर प्रदान करती है। क्योंकि रोग पाचन क्रिया आयुर्वेद में ही है विश्व के अन्य चिकित्सा पद्धति में नहीं।” एडवोकेट वंशमणि प्रसाद तिवारी कहते हैं कि मेरे बड़े भैया जो मरणासन्न थे आशा की किरण छूट चुकी थी लेकिन बैद्यजी की चिकित्सा ने ऐसा चमत्कार किया कि आज भी वे पूर्ण स्वस्थ है इतना ही नहीं मेरे बड़े पिता श्री राम सजीवन तिवारी की पुत्री गुलाब देवी जो भोपाल में ब्याही थी तथा बांझपन की शिकार थी उसे भी श्रीबैद्य की चिकित्सा से जहां तीन तीन संताने हुई वही वैद्य जी ने चिकित्सा के पूर्व ही नब्ज टटोलकर ही बता दिया था कि पहली संतान होकर 6 माह बाद मर जावेगी और ठीक छ : माह बाद पहली संतान की मौत हो गई थी। श्रीमती सरला देवी पति स्वर्गीय हीरालाल केसरवानी कहती है कि मेरी पुत्री बेबी जो वर्तमान में व्योहारी में ब्याही हुई है एकबार प्वाइजन के असर से तकरीबन अंतिम श्वास गिन रही थी तभी वैद्य जी ने अपनी चिकित्सा से उसके शरीर में प्राण फूंकने का काम किया था। हमारे घर में घरेलू चिकित्सक रहे हैं हमारे दो पुत्रों को भी इसी प्रकार मरणासन्न अवस्था से जीवनदान दिया था। वैद्य जी के पड़ोसी सुमन जायसवाल जो वर्तमान में उत्तर प्रदेश के भदोही मैं ब्याही हुई है बताती है कि मेरे माता के 21 गर्भ नष्ट होने के बाद वैध जी के चिकित्सा से उनकी संतानें जीवित होने लगी जिसमें से मैं पहली संतान हूं। हनुमना नगर परिषद के वार्ड क्रमांक 8 ग्राम सगरा निवासी राजेश्वरी प्रसाद मिश्रा बताते हैं कि मेरी मां जो आज से तकरीबन 40 वर्ष पूर्व डॉक्टरों ने मृत घोषित कर दिया था तब नाड़ी विशेषज्ञ श्रीवैद्य को बुलाया गया नाड़ी देखते ही उन्होंने मेरी मां के शरीर में स्पंदन किया पाकर तुरंत ही अपनी चिकित्सा के द्वारा उसको जीवन दान दिया था जो आज 90 वर्ष की अवस्था में भी स्वस्थ है इसके अतिरिक्त सन 1962 में देवसर निवासी रामाधार पाठक की चिता सज चुकी थी लेकिन वैद्य जी के उत्कृष्ट नाड़ी ज्ञान के कारण जब उन्हें बुलाया गया तो देखा कि उनके नाड़ी में स्पंदन क्रिया है और उन्होंने तत्काल चितापर से उतरवाकर उनकी चिकित्सा की तथा जीवन दान देकर और स्वस्थ कर दिया जिनकी मृत्यु अभी 4 वर्षों पूर्व हुई है। ऐसे अनेक उदाहरण वैद्य जी की चिकित्सा के हैं। शरद पूर्णिमा के दिन अर्थात तेरा अक्टूबर रविवार को शाम तक रोगी जन अपना पंजीयन और सुधार हनुमाना में अवश्य करा लेवें।