
औरंगाबाद। हिंदी साहित्य को संजीवनी प्रदान करने वाली साहित्यिक परिचर्चा ‘बतकही’ की 21 वीं कड़ी का आयोजन रविवार को सत्येन्द्र नगर स्थित डॉ सिद्धेश्वर प्रसाद सिंह के आवास पर किया गया। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉक्टर महेंद्र पांडेय तथा संचालन धनंजय जयपुरी ने किया। कार्यक्रम के प्रायोजक के रूप में अनुज बेचैन ने अपनी भागीदारी निभाई। इस श्रृंखला में सुप्रसिद्ध कहानीकार राजेंद्र यादव की कहानी ‘जहां लक्ष्मी कैद है’ का वाचन शिक्षक उज्ज्वल रंजन ने किया । तत्पश्चात कहानी पर वक्ताओं द्वारा समीक्षात्मक टिप्पणियां प्रस्तुत की गयीं। वक्तव्य प्रारंभ करते हुए प्रधानाध्यापक चंद्रशेखर प्रसाद साहू ने कहा कि कहानी ‘जहां लक्ष्मी कैद है’ नई कहानी की आधार कहानी है। इसके रचनाकार राजेंद्र यादव कहानीकार के साथ- साथ उपन्यासकार एवं वरिष्ठ आलोचक भी थे। इन्होंने कई समीक्षा निबंध भी लिखे।सेवानिवृत्त अध्यापक शिवनारायण सिंह ने कहा कि इस कहानी में यथार्थ की झलक मिलती है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद मध्यम वर्गीय परिवार जिस कुंठा और अंतर्द्वंद में जी रहा था उसका मार्मिक चित्रण कहानीकार के द्वारा व्यापक रूप से किया गया है ।
सुख्यात चिकित्सक डॉ रामाशीष सिंह ने कहा कि काम- भावना नैसर्गिक और जन्मजात होती है । काम भावना को दमन करने से कुंठा की उत्पत्ति होती है।
डॉ सुरेंद्र प्रसाद मिश्र के अनुसार इस कहानी में कहानीकार यह दिखाने की कोशिश करता है कि मध्यमवर्गीय परिवार कुंठा और निराशा में इस तरह कमजोर हो चुका है कि वह साहसिक निर्णय नहीं ले पाता है।
हिंदी के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉक्टर सिद्धेश्वर प्रसाद सिंह ने कहा कि इस कहानी में यह दिखलाया गया है कि एक पिता दकियानूसी विचारों के भ्रम में है कि बेटी के आगमन के पश्चात घर- परिवार में जो धन-संपत्ति की समृद्धि आई है , उसके विवाह के पश्चात उस संपत्ति का क्षरण हो जाएगा और वह कंगाल हो जाएगा।
डॉक्टर शिवपूजन सिंह ने कहा की इस कहानी में दो प्रकार की लक्ष्मी कैद दिखाई देती हैं- एक वह जो एक अविवाहित युवती है जिसकी उम्र 25 साल से अधिक हो चुकी है और वह दकियानूसी विचारों में फंसे पिता के द्वारा परिवार में ही कैद है और दूसरी लक्ष्मी अकूत संपत्ति है जो पिता की कंजूसी के कारण उसके कारागार में कैद है। डॉक्टर हनुमान राम ने कहा कि साहित्य समाज का दर्पण होता है। रचनाकार अपने समाज में आसपास घटित हो रही घटनाओं का सरसरी निगाहों से अवलोकन करता है और उसे अपनी रचना में उतारने का प्रयास भी करता है।डॉक्टर शिव शंकर सिंह ने कहा इस कहानी में विवाह की समस्या को उठाया गया है कई रचनाकारों ने भी अपनी अपनी रचनाओं में विवाह में आने वाली बाधाओं और अड़चनों को व्यापक फलक पर उठाने की कोशिश की है।
अध्यक्षीय उद्बोधन करते हुए डॉक्टर महेंद्र पांडेय ने कहा कि इस कहानी में एक पुत्री का शोषण अपने पिता द्वारा कैसे निर्मम तरीके से किया जाता है यह दिखाने की कोशिश की गई है। आज भी समाज में कहीं-कहीं ऐसी परिस्थितियां देखने को मिलती हैं जहां काफी उम्र तक बेटियों की शादी नहीं हो पाती है।
समीक्षा के अंत में अनुज बेचैन ने आगत साहित्य सेवियों को धन्यवाद ज्ञापित किया। बालिका ॠतंभरा (चिंकी) ने भी आगत अतिथियों के प्रति आभार प्रकट किया। कार्यक्रम में डॉक्टर अरुण मिश्र,चंदन कुमार पाठक ,अर्जुन प्रसाद सिंह ,धर्मेंद्र कुमार सिंह, देवेंद्र दत्त मिश्र, जनार्दन मिश्र जलज, अधिवक्ता योगेश मिश्रा,पुरूषोत्तम पाठक ,कृष्णदेव् पांडेय, सुरेश पाठक ,जय प्रकाश सिंह ,शिवदेव पांडेयआदि उपस्थित थे।
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