धर्म डेस्क।देवी पुराण में 51 शक्तिपीठों का ही जिक्र है, लेकिन कुछ स्थानीय मान्यताएं अलग कहानी कहती हैं। छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा के दंतेश्वरी माता मंदिर को 52वां शक्तिपीठ भी गिना जाता है। मान्यता है कि यहां देवी सती का दांत गिरा था। इसी पर इस इलाके का नाम दंतेवाड़ा पड़ा। इस मंदिर को लेकर कई तरह की कहानियां और किवदंतियां यहां प्रसिद्ध हैं।
मंदिर का निर्माण 14वीं सदी में चालुक्य राजाओं ने दक्षिण भारतीय वास्तुकला से बनावाया था। यहां देवी की षष्टभुजी काले रंग की मूर्ति स्थापित है। छह भुजाओं में देवी ने दाएं हाथ में शंख, खड्ग, त्रिशूल और बांए हाथ में घटी, पद्घ और राक्षस के बाल धारण किए हुए हैं। मंदिर में देवी के चरण चिन्ह भी मौजूद हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, काकतीय वंश के राजा अन्नम देव और बस्तर राज परिवार की यह कुल देवी है। कहते हैं जब अन्नम देव नाम के राजा देवी के दर्शन करने यहां आए तब देवी दंतेश्वरी ने उन्हें दर्शन देकर वरदान दिया था कि जहां तक वह जाएगा, वहां तक देवी उसके साथ चलेगी और उसका राज्य होगा। साथ ही देवी ने राजा से पीछे मुड़कर न देखने की शर्त रखी।
राजा कई दिनों तक बस्तर क्षेत्र में चलता रहा और देवी उसके पीछे जाती रही। जब शंकनी-डंकनी नदी के पास पहुंचे तो नदी पार करते समय राजा को देवी के पायल की आवाज सुनाई नहीं दी। तब राजा पीछे मुड़कर देखा और देवी वहीं ठहर गईं। इसके बाद राजा ने वहां मंदिर निर्माण कर नियमित पूजा-आराधना करने लगा।मंदिर के प्रवेश द्वार के सामने एक गरूड़ स्तंभ है। जिसे श्रद्धालु पीठ की ओर से बांहों में भरने की कोशिश करते हैं। मान्यता है कि जिसकी बांहों में स्तंभ समा जाता है, उसकी मनोकामना जरूर पूरी होती है।