नई दिल्ली. उमंग और उत्साह का पर्व बैसाखी…जो हर साल बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है। हर साल बैसाखी 13 या 14 अप्रैल को मनाई जाती है। बैसाखी के समान ही और भी पर्व अलग अलग राज्यों में भी मनाए जाते हैं लेकिन रीति रिवाजों और क्षेत्रीय असामनता के चलते हर जगह ये पर्व अलग अलग नाम से मनाया जाता है। लेकिन हर जगह ये पर्व जुड़ा है फसलों से। हर जगह इस पर्व को मनाने के पीछे अलग अलग कहानियां और किवदंतियां हैं। बैसाखी यूं तो पूरे उत्तर भारत में ही धूमधाम से मनाई जाती है लेकिन पंजाब और हरियाणा में इसकी रौनक कुछ और ही होती है। बैसाखी का पर्व कृषि से जुड़ा है और ये दोनों ही राज्य कृषि प्रधान है। यहां नई फसल के कटने की खुशी में ये पर्व मनाया जाता है। लेकिन कृषि से अलग बैसाखी के पीछे कई और मान्यताएं भी जुड़ी हैं।
इसी दिन हुई खालसा पंथ की स्थापना
कहा जाता है कि साल 1699 में बैसाखी के दिन ही सिखों के 10वें और अंतिम गुरु गोबिंद सिंह ने आनंदपुर साहिब में खालसा पंथ की नींव रखी थी। ताकि मुगल शासकों के अत्याचारों से मुक्ति मिल सके।
आर्य समाज की इसी दिन हुई थी स्थापना
वही साल 1875 में इसी दिन स्वामी दयानंद सरस्वती ने आर्य समाज की स्थापना की थी।
भगवान बुद्ध को इसी दिन हुई ज्ञान की प्राप्ति
बौद्ध समुदाय के लोगों का मानना है कि इसी दिन भगवान बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति भी हुई थी।
हर राज्य में नाम है अलग
पंजाब और हरियाणा में जहां इस पर्व को बैसाखी के नाम से जाना जाता है तो वही असम में इसे बिहू कहा जाता है। इस दिन असम में खेतिहर लोग फसल काटकर इस दिन को मनाते हैं। बंगाल में इसे पोइला बैसाख के नाम से जानते हैं जो बंगालियों का नया साल भी होता है। केरल में इस पर्व को विशु कहा जाता है। कहते हैं बैसाखी के दिन ही सूर्य मेष राशि में संक्रमण करता है यही कारण है कि इसे मेष संक्रांति के नाम से भी जाना जाता है।
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