जीवन मंत्र । जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से अंगारकी, तिलचतुर्थी महात्म्य, विधि एवं कथा

जीवन मंत्र । जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से  अंगारकी, तिलचतुर्थी महात्म्य, विधि एवं कथा

(अंगारकी) तिलचतुर्थी महात्म्य, विधि एवं कथा

प्रत्येक चंद्र माह में दो चतुर्थीया पड़ती हैं। हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार चतुर्थी भगवान गणेश की तिथि है। शुक्ल पक्ष के दौरान अमावस्या या अमावस्या के बाद की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी के रूप में जाना जाता है और कृष्ण पक्ष के दौरान पूर्णिमा या पूर्णिमा के बाद पड़ने वाले चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी के रूप में जाना जाता है। इस वर्ष माघ मास में पड़ने वाली संकष्टि चतुर्थी मंगलवार को पड़ने के कारण इसका महत्त्व अधिक बढ़ गया है।

संतानों को सभी कष्टों से मुक्ति दिलाने वाली संकष्टी गणेशचतुर्थी का व्रत माघ कृष्णपक्ष चतुर्थी 10 जनवरी, मंगलवार को मनाया जाएगा। मन के स्वामी चंद्रमा और बुद्धि के स्वामी गणेश जी के संयोग के परिणामस्वरुप इस चतुर्थी व्रत के करने से मानसिक शांति, कार्य में सफलता, प्रतिष्ठा में वृद्धि और घर की नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है। इस दिन किया गया व्रत और पूजा- पाठ और दान परिवार में सुख-शांति लेकर आता है। इस दिन इन उपायों को करने से रिद्धि-सिद्धि के दाता गणेशजी आप पर प्रसन्न होंगे।

भगवान श्री गणेश जी को चतुर्थी तिथि का अधिष्ठाता माना जाता है तथा ज्योतिष शात्र के अनुसार इसी दिन भगवान गणेश जी का अवतरण हुआ था इसी कारण चतुर्थी भगवान गणेश जी को अत्यंत प्रिय रही है. इस वर्ष अंगारकी संकष्टी तिल चतुर्थी चतुर्थी व्रत कृष्णपक्ष की चंद्रोदय व्यापिनी चतुर्थी को भगवान गणेश जी की पूजा का विशेष नियम बताया गया है. विघ्नहर्ता भगवान गणेश समस्त संकटों का हरण करने वाले होते हैं. इनकी पूजा और व्रत करने से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं।

गणेश तिल चतुर्थी का व्रत भारतीय पञ्चाङ्ग के अनुसार माघ मास में कृष एवं शुक्ल दोनों ही पक्ष की चतुर्थी को रखा जाता है. इस दिन तिल दान करने का अधिक महत्व होता है. इस दिन गणेश भगवान को तिल के लड्डुओं का भोग लगाया जाता है. भगवान गणेश का स्थान सभी देवी-देवताओं में सर्वोपरि है. गणेश जी को सभी संकटों को दूर करने वाला तथा विघ्नहर्ता माना जाता है. जो भगवान गणेश की पूजा-अर्चना नियमित रूप से करते हैं उनके घर में सुख व समृद्धि बढ़ती है.

गणेश तिल चतुर्थी व्रत विधि

सुबह स्नान आदि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए. उसके उपरान्त एक स्वच्छ आसन पर बैठकर भगवान गणेश की पूजा करनी चाहिए. पूजा के दौरान भगवान गणेश की धूप-दीप आदि से आराधना करनी चाहिए. विधिवत तरीके से भगवान गणेश की पूजा करनी चाहिए. फल,फूल, अक्षत, रौली,मौली, पंचामृत से स्नान आदि कराने के पश्चात भगवान गणेश को तिल से बनी वस्तुओं या तिल तथा गुड़ से बने लड्डुओं का भोग लगाना चाहिए.

इस दिन व्रत रखने वाले व्यक्ति को लाल वस्त्र धारण करने चाहिए. पूजा करते समय पूर्व अथवा उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठना चाहिए. विधिवत तरीके से भगवान गणेश की पूजा करने के बाद उसी समय गणेश जी के मंत्र

“उँ गणेशाय नम:”

का 1008 बार जाप करना चाहिए. इसी के साथ गणेश गायत्री मंत्र –

एकदंताय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्।।
महाकर्णाय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्।।
गजाननाय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्।।

का जाप करते हुए पूजन करना चाहिए। संध्या समय में कथा सुनने के पश्चात गणेश जी की आरती करनी चाहिए. इससे आपको मानसिक शान्ति मिलने के साथ आपके घर-परिवार के सुख व समृद्धि में वृद्धि होगी.

गणेश तिल चतुर्थी व्रत दान

इस दिन जो व्यक्ति भगवान गणेश का तिल चतुर्थी का व्रत रखते हैं और जो व्यक्ति व्रत नहीं रखते हैं वह सभी अपनी सामर्थ्य के अनुसार गरीब लोगों को दान कर सकते हैं. इस दिन गरीब लोगों को गर्म वस्त्र, कम्बल, कपडे़ आदि दान कर सकते हैं. भगवान गणेश को तिल तथा गुड़ के लड्डुओं का भोग लगाने के बाद प्रसाद को गरीब लोगों में बांटना चाहिए. लड्डुओं के अतिरिक्त अन्य खाद्य वस्तुओं को भी गरीब लोगों में बांटा जा सकता है।

इस दिन दान का भी विशेष महत्व धर्म ग्रंथों में दिया गया है जिसके अनुसार जो व्यक्ति व्रत के साथ-साथ दान भी करता है उसकी हर मनोकामना पूरी होती है. माघ मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को रखा जाने वाला व्रत गणेश तिल चतुर्थी के नाम से जाना जाता है. इस दिन संध्या समय में गणेश चतुर्थी की व्रत कथा को सुना जाता है कथा अनुसार भगवान शिव ने गणेश जी को आशीर्वाद दिया कि चतुर्थी के दिन जो तुम्हारा पूजन करेगा और रात्रि में चन्द्रमा को अर्ध्य देगा उसके तीनों ताप – दैहिक ताप, दैविक ताप तथा भौतिक ताप दूर होगें. व्यक्ति को सभी प्रकार के दु:खों से मुक्ति मिलेगी व सभी प्रकार के भौतिक सुखों की प्राप्ति होगी.

अंगारक चतुर्थी’ महात्म्य कथा

‘अंगारक चतुर्थी’ की महात्म्य कथा गणेश पुराण के उपासना खंड के 60वें अध्याय में वर्णित है। वह कथा अत्यंत संक्षेप में इस प्रकार है।

पृथ्वीदेवी ने महामुनि भरद्वाज के जपापुष्प तुल्य अरुण पुत्र का पालन किया। 7 वर्ष के बाद उन्होंने उसे महर्षि के पास पहुंचा दिया। महर्षि ने अत्यंत प्रसन्न होकर अपने पुत्र का आलिंगन किया और उसका सविधि उपनयन कराकर उसे वेद-शास्त्रादि का अध्ययन कराया। फिर उन्होंने अपने प्रिय पुत्र को गणपति मंत्र देकर उसे गणेश जी को प्रसन्न करने के लिए आराधना करने की आज्ञा दी।

मुनि पुत्र ने अपने पिता के चरणों में प्रणाम किया और फिर पुण्यसलिला गंगा जी के तट पर जाकर वह परम प्रभु श्री गणेश जी का ध्यान करते हुए भक्तिपूर्वक उनके मंत्र का जप करने लगा। वह बालक निराहार रहकर एक सहस्र वर्ष तक गणेश जी के ध्यान के साथ उनका मंत्र जपता रहा।

माघ कृष्ण चतुर्थी को चंद्रउदय होने पर दिव्य वस्त्रधारी अष्टभुज चंद्ररभाल प्रसन्न होकर प्रकट हुए। उन्होंने अनेक शस्त्र धारण कर रखे थे। वे विविध अलंकारों से विभूषित अनेक सूर्यों से भी अधिक दीप्तिमान थे। भगवान गणेश के मंगलमय अद्भुत स्वरूप का दर्शन कर तपस्वी मुनि पुत्र ने प्रेम गद्गद कंठ से उनका स्तवन किया।

वरद प्रभु बोले- ‘मुनिकुमार! मैं तुम्हारे धैर्यपूर्ण कठोर तप एवं स्तवन से पूर्ण प्रसन्न हूं। तुम इच्छित वर मांगो। मैं उसे अवश्य पूर्ण करूंगा।’

प्रसन्न पृथ्वीपुत्र ने अत्यंत विनयपूर्वक निवेदन किया- ‘प्रभो! आज आपके दुर्लभ दर्शन कर मैं कृतार्थ हो गया। मेरी माता पर्वतमालिनी पृथ्वी, मेरे पिता, मेरा तप, मेरे नेत्र, मेरी वाणी, मेरा जीवन और जन्म सभी सफल हुए। दयामय! मैं स्वर्ग में निवास कर देवताओं के साथ अमृतपान करना चाहता हूं। मेरा नाम तीनों लोकों में कल्याण करने वाला ‘मंगल’ प्रख्यात हो।’

पृथ्वीनंदन ने आगे कहा- ‘करुणामूर्ति प्रभो! मुझे आपका भुवनपावन दर्शन आज माघ कृष्ण चतुर्थी को हुआ है अतएव यह चतुर्थी नित्य पुण्य देने वाली एवं संकटहारिणी हो। सुरेश्वर! इस दिन जो भी व्रत करे, आपकी कृपा से उसकी समस्त कामनाएं पूर्ण हो जाया करें।’

सद्य:सिद्धिप्रदाता देव-देव गजमुख ने वर प्रदान कर दिया- ‘मेदिनीनंदन! तुम देवताओं के साथ सुधापान करोगे। तुम्हारा ‘मंगल’ नाम सर्वत्र विख्यात होगा। तुम धरणी के पुत्र हो और तुम्हारा रंग लाल है, अत: तुम्हारा एक नाम ‘अंगारक’ भी प्रसिद्ध होगा और यह तिथि ‘अंगारक चतुर्थी’ के नाम से प्रख्यात होगी। पृथ्वी पर जो मनुष्य इस दिन मेरा व्रत करेंगे, उन्हें एक वर्षपर्यंत चतुर्थी व्रत करने का फल प्राप्त होगा। निश्चय ही उनके किसी कार्य में कभी विघ्न उपस्थित नहीं होगा।’

परम प्रभु गणेश ने मंगल को वर देते हुए आगे कहा- ‘तुमने सर्वोत्तम व्रत किया है, इस कारण तुम अवंती नगर में परंतप नामक नरपाल होकर सुख प्राप्त करोगे। इस व्रत की अद्भुत महिमा है। इसके कीर्तन मात्र से मनुष्य की समस्त कामनाओं की पूर्ति होगी।’ ऐसा कहकर गजमुख अंतर्ध्यान हो गए।

मंगल ने एक भव्य मंदिर बनवाकर उसमें दशभुज गणेश की प्रतिमा स्थापित कराई। उसका नामकरण किया ‘मंगलमूर्ति’। वह श्री गणेश विग्रह समस्त कामनाओं को पूर्ण करने वाला, अनुष्ठान, पूजन और दर्शन करने से सबके लिए मोक्षप्रद होगा।

पृथ्वी पुत्र ने मंगलवारी चतुर्थी के दिन व्रत करके श्री गणेश जी की आराधना की। उसका एक अत्यंत आश्चर्यजनक फल यह हुआ कि वे सशरीर स्वर्ग चले गए। उन्होंने सुर समुदाय के साथ अमृतपान किया और वह परम पावनी तिथि ‘अंगारक चतुर्थी’ के नाम से प्रख्यात हुई। यह पुत्र-पौत्रादि एवं समृद्धि प्रदान कर समस्त कामनाओं को पूर्ण करती है।

परम कारुणिक गणेश जी को अंतरहृदय की विशुद्ध प्रीति अभीष्ट है। श्रद्धा और भक्तिपूर्वक त्रयतापनिवारक दयानिधान मोदकप्रिय सर्वेश्वर गजमुख कपित्थ, जम्बू और वन्य फलों से ही नहीं, दूर्वा के 2 दलों से भी प्रसन्न हो जाते हैं और मुदित होकर समस्त कामनाओं की पूर्ति तो करते हैं।

पूजा की विधि

जिस स्थान पर पूजा करनी है उस स्थान को गंगाजल से शुद्ध करना चाहिए। पूजा के लिए ईशान दिशा का होना शुभ माना गया है। गणेश जी की प्रतिमा और चौथ माता के चित्र को स्थापित करना चाहिए।

भगवान श्री गणेश जी पूजा में दूर्वा का उपयोग अत्यंत आवश्यक होता है। इसका मुख्य कारण है की दुर्वा(घास) भगवान को अत्यंत प्रिय है।

भगवान गणेश के सम्मुख ऊँ गं गणपतयै नम: का मंत्र बोलते हुए दुर्वा अर्पित करनी चाहिए।

इसके बाद आसन पर बैठकर भगवान श्रीगणेश का पूजन करना चाहिए।

कपूर, घी के दीपक से आरती करनी चाहिए।

भगवान को भोग लगाना चाहिए. तिल और गुड़ से बने लड्डुओं का भोग लगाना चाहिए और उस प्रसाद को सभी में बांटना चाहिए।

व्रत में फलाहार का सेवन करते हुए संध्या समय गणेश जी की पुन: पूजा अर्चना करनी चाहिए. पूजा के पश्चात ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए उसके बाद स्वयं भोजन ग्रहण करना चाहिए।

इस दिन दान का भी विशेष शुभ फल मिलता है। इसलिए इस दिन गर्म कपड़े, कंबल, गुड़, तिल इत्यादि वस्तुओं का दान करना चाहिए. इस प्रकार विधिवत भगवान श्रीगणेश का पूजन करने से घर-परिवार में सुख-समृद्धि में निरंतर वृद्धि होती है।

षोडशोपचार पूजा विधि

इस व्रत की शुरुआत सूर्योदय से पूर्व या सूर्योदय काल से ही करनी चाहिए। सूर्यास्त से पहले ही गणेश तिल चतुर्थी व्रत कथा-पूजा होती है। पूजा में तिल का प्रयोग अनिवार्य है। तिल के साथ गुड़, गन्ने और मूली का उपयोग करना चाहिए। इस दिन मूली भूलकर भी नहीं खानी चाहिए कहा जाता है कि मूली खाने धन -धान्य की हानि होती है। इस व्रत में चंद्रोदय के समय चन्द्रमा को तिल, गुड़ आदि का अर्घ्य देना चाहिए। साथ ही संकटहारी गणेश एवं चतुर्थी माता को तिल, गुड़, मूली आदि से अर्घ्य देना चाहिए।

अर्घ्य देने के उपरांत ही व्रत समाप्त करना चाहिए। इस दिन निर्जला व्रत का भी विधान है माताएं निर्जला व्रत अपने पुत्र के दीर्घायु के लिए अवश्य ही करती है। इस दिन तिल का प्रसाद खाना चाहिए। गणेश जी को दूर्वा तथा लड्डू अत्यंत प्रिय है अत: गणेश जी पूजा में दूर्वा और लड्डू जरूर चढ़ाना चाहिए।

पूजन सामग्री (वृहद् पूजन के लिए )

शुद्ध जल, दूध, दही, शहद, घी, चीनी, पंचामृत, वस्त्र,जनेऊ,मधुपर्क,सुगंध,लाल चन्दन,रोली,सिन्दूर,अक्षत(चावल),फूल,माला,बेलपत्र,दूब,शमीपत्र,गुलाल,आभूषण,सुगन्धित तेल,धूपबत्ती,दीपक,प्रसाद,फल,गंगाजल,पान,सुपारी,रूई,कपूर।

विधि- गणेश जी की मूर्ती सामने रखकर और श्रद्धा पूर्वक उस पर पुष्प छोड़े यदि मूर्ती न हो तो सुपारी पर मौली लपेटकर चावल पर स्थापित करें -और आवाहन करें –

गजाननं भूतगणादिसेवितम कपित्थजम्बू फल चारू भक्षणं |
उमासुतम शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वर पादपंकजम ||
आगच्छ भगवन्देव स्थाने चात्र स्थिरो भव|
यावत्पूजा करिष्यामि तावत्वं सन्निधौ भव ||

और अब प्रतिष्ठा (प्राण प्रतिष्ठा) करें –

अस्यैप्राणाः प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणा क्षरन्तु च |
अस्यै देवत्वमर्चार्यम मामेहती च कश्चन ||
आसन-रम्यं सुशोभनं दिव्यं सर्व सौख्यंकर शुभम |
आसनं च मया दत्तं गृहाण परमेश्वरः ||

पाद्य (पैर धुलना)

उष्णोदकं निर्मलं च सर्व सौगंध्य संयुत्तम |
पादप्रक्षालनार्थाय दत्तं ते प्रतिगह्यताम ||

अर्घ्य(हाथ धुलना )-

अर्घ्य गृहाण देवेश गंध पुष्पाक्षतै 😐
करुणाम कुरु में देव गृहणार्ध्य नमोस्तुते ||

आचमन

सर्वतीर्थ समायुक्तं सुगन्धि निर्मलं जलं |
आचम्यताम मया दत्तं गृहीत्वा परमेश्वरः ||

स्नान

गंगा सरस्वती रेवा पयोष्णी नर्मदाजलै:|
स्नापितोSसी मया देव तथा शांति कुरुश्वमे ||

दूध् से स्नान

कामधेनुसमुत्पन्नं सर्वेषां जीवन परम |
पावनं यज्ञ हेतुश्च पयः स्नानार्थं समर्पितं ||

दही से स्नान

पयस्तु समुदभूतं मधुराम्लं शक्तिप्रभं |
दध्यानीतं मया देव स्नानार्थं प्रतिगृह्यतां ||

घी से स्नान

नवनीत समुत्पन्नं सर्व संतोषकारकं |
घृतं तुभ्यं प्रदास्यामि स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम ||

शहद से स्नान

तरु पुष्प समुदभूतं सुस्वादु मधुरं मधुः |
तेजः पुष्टिकरं दिव्यं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम ||

शर्करा (चीनी) से स्नान

इक्षुसार समुदभूता शंकरा पुष्टिकार्कम |
मलापहारिका दिव्या स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम ||

पंचामृत से स्नान

पयोदधिघृतं चैव मधु च शर्करायुतं |
पंचामृतं मयानीतं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम ||

शुध्दोदक (शुद्ध जल ) से स्नान

मंदाकिन्यास्त यध्दारि सर्वपापहरं शुभम |
तदिधं कल्पितं देव स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम ||

वस्त्र

सर्वभूषाधिके सौम्ये लोक लज्जा निवारणे|
मयोपपादिते तुभ्यं वाससी प्रतिगृह्यतां ||

उपवस्त्र (कपडे का टुकड़ा )

सुजातो ज्योतिषा सह्शर्म वरुथमासदत्सव : |
वासोअस्तेविश्वरूपवं संव्ययस्वविभावसो ||

यज्ञोपवीत

नवभिस्तन्तुभिर्युक्त त्रिगुण देवतामयम |
उपवीतं मया दत्तं गृहाणं परमेश्वर : ||

मधुपर्क

कस्य कन्स्येनपिहितो दधिमध्वा ज्यसन्युतः |
मधुपर्को मयानीतः पूजार्थ् प्रतिगृह्यतां ||

गन्ध

श्रीखण्डचन्दनं दिव्यँ गन्धाढयं सुमनोहरम |
विलेपनं सुरश्रेष्ठ चन्दनं प्रतिगृह्यतां ||

रक्त(लाल )चन्दन

रक्त चन्दन समिश्रं पारिजातसमुदभवम |
मया दत्तं गृहाणाश चन्दनं गन्धसंयुम ||

रोली

कुमकुम कामनादिव्यं कामनाकामसंभवाम |
कुम्कुमेनार्चितो देव गृहाण परमेश्वर्: ||

सिन्दूर

सिन्दूरं शोभनं रक्तं सौभाग्यं सुखवर्धनम् ||
शुभदं कामदं चैव सिन्दूरं प्रतिगृह्यतां ||

अक्षत

अक्षताश्च सुरश्रेष्ठं कुम्कुमाक्तः सुशोभितः |
माया निवेदिता भक्त्या गृहाण परमेश्वरः ||

पुष्प

पुष्पैर्नांनाविधेर्दिव्यै: कुमुदैरथ चम्पकै: |
पूजार्थ नीयते तुभ्यं पुष्पाणि प्रतिगृह्यतां ||

पुष्प माला

माल्यादीनि सुगन्धिनी मालत्यादीनि वै प्रभो |
मयानीतानि पुष्पाणि गृहाण परमेश्वर: ||

बेल का पत्र

त्रिशाखैर्विल्वपत्रैश्च अच्छिद्रै: कोमलै :शुभै : |
तव पूजां करिष्यामि गृहाण परमेश्वर : ||

दूर्वा

त्वं दूर्वेSमृतजन्मानि वन्दितासि सुरैरपि |
सौभाग्यं संततिं देहि सर्वकार्यकरो भव ||

दूर्वाकर

दूर्वाकुरान सुहरिता नमृतान मंगलप्रदाम |
आनीतांस्तव पूजार्थ गृहाण गणनायक:||

शमीपत्र

शमी शमय ये पापं शमी लाहित कष्टका |
धारिण्यर्जुनवाणानां रामस्य प्रियवादिनी ||

अबीर गुलाल

अबीरं च गुलालं च चोवा चन्दन्मेव च |
अबीरेणर्चितो देव क्षत: शान्ति प्रयच्छमे ||

आभूषण

अलंकारान्महा दव्यान्नानारत्न विनिर्मितान |
गृहाण देवदेवेश प्रसीद परमेश्वर: ||

सुगंध तेल

चम्पकाशोक वकु ल मालती मीगरादिभि: |
वासितं स्निग्धता हेतु तेलं चारु प्रगृह्यतां ||

धूप

वनस्पतिरसोदभूतो गन्धढयो गंध उत्तम : |
आघ्रेय सर्वदेवानां धूपोSयं प्रतिगृह्यतां ||

दीप

आज्यं च वर्तिसंयुक्तं वहिन्ना योजितं मया |
दीपं गृहाण देवेश त्रैलोक्यतिमिरापहम ||

नैवेद्य

शर्कराघृत संयुक्तं मधुरं स्वादुचोत्तमम |
उपहार समायुक्तं नैवेद्यं प्रतिगृह्यतां ||

मध्येपानीय

अतितृप्तिकरं तोयं सुगन्धि च पिबेच्छ्या |
त्वयि तृप्ते जगतृप्तं नित्यतृप्ते महात्मनि ||

ऋतुफल

नारिकेलफलं जम्बूफलं नारंगमुत्तमम |
कुष्माण्डं पुरतो भक्त्या कल्पितं
प्रतिगृह्यतां ||

आचमन

गंगाजलं समानीतां सुवर्णकलशे स्थितन |
आचमम्यतां सुरश्रेष्ठ शुद्धमाचनीयकम ||

अखंड ऋतुफल

इदं फलं मयादेव स्थापितं पुरतस्तव |
तेन मे सफलावाप्तिर्भवेज्जन्मनि जन्मनि ||

ताम्बूल पूंगीफलं

पूंगीफलम महद्दिश्यं नागवल्लीदलैर्युतम |
एलादि चूर्णादि संयुक्तं ताम्बूलं प्रतिगृह्यतां ||

दक्षिणा(दान)

हिरण्यगर्भ गर्भस्थं हेमबीजं विभावसो: |
अनन्तपुण्यफलदमत : शान्ति प्रयच्छ मे ||

आरती

चंद्रादित्यो च धरणी विद्युद्ग्निंस्तर्थव च |
त्वमेव सर्वज्योतीष आर्तिक्यं प्रतिगृह्यताम ||

पुष्पांजलि

नानासुगन्धिपुष्पाणि यथाकालोदभवानि च |
पुष्पांजलिर्मया दत्तो गृहाण परमेश्वर: ||

प्रार्थना

रक्ष रक्ष गणाध्यक्ष रक्ष त्रैलोक्य रक्षक:
भक्तानामभयं कर्ता त्राता भव भवार्णवात ||
अनया पूजया गणपति: प्रीयतां न मम कहकर प्रणाम कर आरती के लिए खड़े हो जाये।

अर्घ्य अर्पित करने की विधि

तिथि की अधिष्ठात्री देवी तथा रोहिणीपति चंद्रमा को शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गणेश-पूजन के पश्चात अर्घ्य प्रदान करना चाहिए। गणेश पुराण के अनुसार, चंद्रोदय काल में गणेश के लिए तीन, तिथि के लिए तीन और चंद्रमा के लिए सात अर्घ्य प्रदान करना चाहिए। इस व्रत में तृतीया तिथि से युक्त चतुर्थी तिथि ग्राह्य है। तृतीया के स्वामी गौरी माता और चतुर्थी के स्वामी श्रीगणेश जी हैं। व्रत तोड़ने के बाद महिलाओं का शकरकंदी खाने की परंपरा भी है।

पानी के छींटें से बचें

सकट चौथ व्रत के दिन जब आप चांद के अर्घ्य दे रही हों उस दौरान महिलाओं को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि चांद को अर्पित किए जा रहे जल के छींटें आपके पैर या शरीर पर बिलकुल न पड़ें।

पौराणिक कथा

चतुर्थी व्रत से सबंधित कथा भगवान श्री गणेश जी के जन्म से संबंधित है तो कुछ कथाएं भगगवान के भक्त पर की जाने वाली असीम कृपा को दर्शाती है. इसी में एक कथा इस प्रकार है. शिवपुराण में बताया गया है कि शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि पर गणेशजी का जन्म हुआ था. इस कारण चतुर्थी तिथि को जन्म तिथि के रुप में मनाया जाता है. इस दिन गणेशजी के लिए विशेष पूजा-पाठ का आयोजन होता है. मान्यता के अनुसार एक बार माता पार्वती स्नान के लिए जब जाने वाली होती हैं तो वह अपनी मैल से एक बच्चे का निर्माण करती हैं और उस बालक को द्वारा पर पहरा देने को कहती हैं.
उस समय भगवान शिव जब अंदर जाने लगते हैं तो द्वार पर खड़े बालक, शिवजी को पार्वती से मिलने से रोक देते है. बालक माता पार्वती की आज्ञा का पालन कर रहे होते हैं. जब शिवजी को बालक ने रोका तो शिवजी क्रोधित हो गए और अपने त्रिशूल से उस बालक का सिर धड़ से अलग कर देते हैं. जब पार्वती को ये बात मालूम हुई तो वह बहुत क्रोधित होती हैं. वह शिवजी से बालक को पुन: जीवित करने के लिए कहती हैं. तब भगवान शिव ने उस बालक के धड़ पर हाथी का सिर लगा कर उसे जीवित कर देते हैं. उस समय बालक को गणेश नाम प्राप्त होता है. वह बालक माता पार्वती और भगवन शिव का पुत्र कहलाते हैं।

कथा 2

एक अन्य कथा के अनुसार भगवान शिव और माता पार्वती एक बार नदी किनारे बैठे हुए थे। उसी दौरान माता पार्वती को चौपड़ खेलने का मन हुआ। लेकिन उस समय वहां माता और भगवान शिव के अलावा कोई और मौजूद नहीं था, लेकिन खेल में हार-जीत का फैसला करने के लिए एक व्यक्ति की जरुरत थी। इस विचार के बाद दोनों ने एक मिट्टी की मूर्ति बनाकर उसमें जान डाल दी और उससे कहा कि खेल में कौन जीता इसका फैसला तुम करना। खेल के शुरु होते ही माता पार्वती विजय हुई और इस प्रकार तीन से चार बार उन्हीं की जीत हुई। लेकिन एक बार गलती से बालक ने भगवान शिव का विजयी के रुप में नाम ले लिया। जिसके कारण माता पार्वती क्रोधित हो गई और उस बालक को लंगड़ा बना दिया। बालक उनसे क्षमा मांगता है और कहता है कि उससे भूल हो गई उसे माफ कर दें। माता कहती हैं कि श्राप वापस नहीं हो सकता लेकिन एक उपाय करके इससे मुक्ति पा सकते हो। माता पार्वती कहती हैं कि इस स्थान पर चतुर्थी के दिन कुछ कन्याएं पूजा करने आती हैं, तुम उनसे व्रत की विधि पूछना और उस व्रत को श्रद्धापूर्वक करना।

चतुर्थी के दिन कन्याएं वहां आती हैं और बालक उनसे व्रत की विधि पूछता और उसके बाद विधिवत व्रत करने से वो भगवान गणेश को प्रसन्न कर लेता है। भगवान गणेश उसे दर्शन देकर उससे इच्छा पूछते हैं तो वो कहता है कि वो भगवान शिव और माता पार्वती के पास जाना चाहता है। भगवान गणेश उसकी इच्छा पूरी करते हैं और वो बालक भगवान शिव के पास पहुंच जाता है। लेकिन वहां सिर्फ भगवान शिव होते हैं क्योंकि माता पार्वती भगवान शिव से रुठ कर कैलाश छोड़कर चली जाती हैं। भगवान शिव उससे पूछते हैं कि वो यहां कैसे आया तो बालक बताता है कि भगवान गणेश के पूजन से उसे ये वरदान प्राप्त हुआ है। इसके बाद भगवान शिव भी माता पार्वती को मनाने के लिए ये व्रत रखते हैं। इसके बाद माता पार्वती का मन अचानक बदल जाता है और वो वापस कैलाश लौट आती हैं। इस कथा के अनुसार भगवान गणेश का संकष्टी के दिन व्रत करने से हर मनोकामना पूर्ण होती है और संकट दूर होते हैं।

तिल चतुर्थी व्रत दान

इस दिन जो व्यक्ति भगवान गणेश का तिल चतुर्थी का व्रत रखते हैं और जो व्यक्ति व्रत नहीं रखते हैं वह सभी अपनी सामर्थ्य के अनुसार गरीब लोगों को दान कर सकते हैं. इस दिन गरीब लोगों को गर्म वस्त्र, कम्बल, कपडे़ आदि दान कर सकते हैं. भगवान गणेश को तिल तथा गुड़ के लड्डुओं का भोग लगाने के बाद प्रसाद को गरीब लोगों में बांटना चाहिए. लड्डुओं के अतिरिक्त अन्य खाद्य वस्तुओं को भी गरीब लोगों में बांटा जा सकता है.
इस दिन दान का भी विशेष महत्व धर्म ग्रंथों में दिया गया है जिसके अनुसार जो व्यक्ति व्रत के साथ-साथ दान भी करता है उसकी हर मनोकामना पूरी होती है. माघ मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को रखा जाने वाला व्रत गणेश तिल चतुर्थी के नाम से जाना जाता है. इस दिन संध्या समय में गणेश चतुर्थी की व्रत कथा को सुना जाता है कथा अनुसार भगवान शिव ने गणेश जी को आशीर्वाद दिया कि चतुर्थी के दिन जो तुम्हारा पूजन करेगा और रात्रि में चन्द्रमा को अर्ध्य देगा उसके तीनों ताप – दैहिक ताप, दैविक ताप तथा भौतिक ताप दूर होगें. व्यक्ति को सभी प्रकार के दु:खों से मुक्ति मिलेगी व सभी प्रकार के भौतिक सुखों की प्राप्ति होगी।

वरद विनायक तिल चतुर्थी पूजा मुहूर्त

चतुर्थी तिथि आरंभ – 10 जनवरी 2023 सोमवार दिन 12 बजकर 10 मिनट से।

चतुर्थी तिथि समाप्त – 11 जनवरी 2023 मंगलवार दिन 02 बजकर 31 मिनट पर।

चंद्रोदय का समय: 10 जनवरी, रात्रि लगभग 08:40 बजे होगा।

चर और लाभ की चौघडी में पूजन श्रेष्ठ है।

गणेश जी की आरती

जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।।

एकदंत, दयावन्त, चार भुजाधारी,
माथे सिन्दूर सोहे, मूस की सवारी।
पान चढ़े, फूल चढ़े और चढ़े मेवा,
लड्डुअन का भोग लगे, सन्त करें सेवा।। ..
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश, देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।।
अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया,
बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया।
‘सूर’ श्याम शरण आए, सफल कीजे सेवा।।
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा ..
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।
दीनन की लाज रखो, शंभु सुतकारी।
कामना को पूर्ण करो जय बलिहारी।

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