जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से शुक्रवार को किए जाने वाले संतोषी माता के व्रत का विशेष महत्व

जीवन मंत्र । जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से शुक्रवार को किए जाने वाले संतोषी माता के व्रत का विशेष महत्व

हिंदू धर्म में शुक्रवार को किए जाने वाले संतोषी माता के व्रत का विशेष महत्व है। संतोषी माता को हिंदू धर्म में सुख, शांति और वैभव का प्रतीक माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, माता संतोषी भगवान श्रीगणेश की पुत्री हैं। कहा जाता है कि माता संतोषी की पूजा करने से जीवन में संतोष का प्रवाह होता है। माता संतोषी की पूजा करने से धन और विवाह संबंधी समस्याएं भी दूर होने की मान्यता है।शुक्रवार को रखा जाने वाले माता संतोषी का व्रत शुक्ल पक्ष के प्रथम शुक्रवार से शुरू किया जाता है। सुख-सौभाग्य की प्राप्ति के लिए माता संतोषी के 16 शुक्रवार तक व्रत किए जाने का विधान है।

संतोषी मां के व्रत में क्या खाया जाता है?
संतोषी माता का व्रत करने वाले स्त्री-पुरुष को खट्टी चीज का सेवन और स्पर्श नहीं करना चाहिए। माता संतोषी को भोग लगाने वाला प्रसाद गुड़ व चने व्रती को भी खाने चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से माता रानी की कृपा हमेशा बनी रहती है।

मां संतोषी को कौन-सा फूल प्रिय है?
मां संतोषी के स्वरूप को मां दुर्गा के सबसे शांत, कोमल रूपों में से एक माना जाता हैं। संतोषी माता कमल के फूल में विराजमान हैं। ऐसे में माता संतोषी की पूजा के दौरान उन्हें कमल का पुष्प अर्पित करना चाहिए।

पूजा करने की विधि:
माता संतोषी के 16 शुक्रवार तक व्रत किए जाने का विधान है।
सूर्योदय से पहले उठकर घर की सफाई आदि कर लें।
स्नान करने के बाद घर में पवित्र स्थान पर माता संतोषी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
अब माता संतोषी के संमुख एक कलश जल भर कर रखें।
कलश के ऊपर एक कटोरा भर कर गुड़ व चना रखें।
माता के सामने एक घी का दीपक जलाएं।
माता को अक्षत, फ़ूल, सुगन्धित गंध, नारियल, लाल वस्त्र या चुनरी अर्पित करें।
माता संतोषी को गुड़ व चने का भोग लगाए।
अब माता रानी की आरती उतारें।

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