जीवन मंत्र । जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से जानिए किस कारण से भगवान विष्णु ने देवी लक्ष्मी को दिया श्राप और कैसे मिली इससे मुक्ति
हिन्दू पुराणों में ऐसी कई पौराणिक कथाएं मिलती है जिनसे सभी मनुष्यों को कोई न कोई प्रेरणा अवश्य मिलती है. भगवान विष्णु से जुड़ी हुई कहानियां किसी न किसी रूप में आज वर्तमान में भी मनुष्यों को जीवन के प्रति सकरात्मक सोच रखने के लिए प्रेरित करती है. जैसा कि हम सभी जानते हैं कि भगवान विष्णु ने विभिन्न अवतार, मानव कल्याण के लिए रचे थे. भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी के अश्व रूप की ऐसी ही एक कहानी भागवत पुराण में मिलती है.एक बार भगवान विष्णु बैकुण्ठ लोक में लक्ष्मी के साथ विराजमान थे. उसी समय उच्चेः श्रवा नामक अश्व पर सवार होकर रेवंत का आगमन हुआ. उच्चेः श्रवा अश्व सभी लक्षणों से युक्त, देखने में अत्यंत सुन्दर था.
उसकी सुंदरता की तुलना किसी अन्य अश्व से नहीं की जा सकती थी. अतः लक्ष्मी जी उस अश्व के सौंदर्य को एकटक देखती रह गई. ये देखकर भगवान विष्णु द्वारा बार-बार झकझोरने पर भी लक्ष्मी एकटक अश्व को देखती रही. तब इसे अपनी अवहेलना समझकर भगवान विष्णु को क्रोध आ गया और खीझंकर लक्ष्मी को श्राप देते हुए कहा- ‘तुम इस अश्व के सौंदर्य में इतनी खोई हो कि मेरे द्वारा बार-बार झकझोरने पर भी तुम्हारा ध्यान इसी में लगा रहा, अतः तुम अश्वी (घोड़ी) हो जाओ.’जब लक्ष्मी का ध्यान भंग हुआ और शाप का पता चला तो वे क्षमा मांगती हुई समर्पित भाव से भगवान विष्णु की वंदना करने लगी- ‘मैं आपके वियोग में एक पल भी जीवित नहीं रह पाऊंगी, अतः आप मुझ पर कृपा करे एवं अपना शाप वापस ले ले.’
तब विष्णु ने अपने शाप में सुधार करते हुए कहा- ‘शाप तो पूरी तरह वापस नहीं लिया जा सकता. लेकिन हां, तुम्हारे अश्व रूप में पुत्र प्रसव के बाद तुम्हे इस योनि से मुक्ति मिलेगी और तुम पुनः मेरे पास वापस लौटोगी’.भगवान विष्णु के श्राप से अश्वी बनी हुई लक्ष्मी यमुना और तमसा नदी के संगम पर भगवान शिव की तपस्या करने लगी. लक्ष्मी के तप से प्रसन्न होकर शिव पार्वती के साथ आए. उन्होंने लक्ष्मी से तप करने का कारण पूछा तब लक्ष्मी ने अश्व हो जाने से संबंधित सारा वृतांत उन्हें सुना दिया और अपने उद्धार की उनसे प्रार्थना की.भगवान शिव ने उन्हें धीरज बंधाते हुए मनोकामना पूर्ति का वरदान दिया.इतना कहकर भगवान शिव अंतर्धान हो गए. कैलाश पहुंचकर भगवान शिव विचार करने लगे कि विष्णु को कैसे अश्व बनाकर लक्ष्मी के पास भेजा जाए.
अंत में, उन्होंने अपने एक गण-चित्ररूप को दूत बनाकर विष्णु के पास भेजा. चित्ररूप भगवान विष्णु के लोक में पहुंचे. भगवान शिव का दूत आया है, यह जानकर भगवान विष्णु ने दूत से सारा समाचार कहने को कहा. दूत ने भगवान शिव की सारी बातें उन्हें कह सुनाई.अंत में, भगवान विष्णु शिव का प्रस्ताव मानकर अश्व बनने के लिए तैयार हो गए. उन्होंने अश्व का रूप धारण किया और पहुंच गए यमुना और तपसा के संगम पर जहां लक्ष्मी अश्वी का रूप धारण कर तपस्या कर रही थी. भगवान विष्णु को अश्व रूप में आया देखकर लक्ष्मी काफी प्रसन्न हुई. दोनों एक साथ विचरण एवं रमण करने लगे. कुछ ही समय पश्चात अश्वी रूप धारी लक्ष्मी गर्भवती हो गई. अश्वी के गर्भ से एक सुन्दर बालक का जन्म हुआ. तत्पश्चात लक्ष्मी बैकुण्ठ लोक श्री हरि विष्णु के पास चली गई…