वरिष्ठ पत्रकार विजय शंकर चतुर्वेदी की खास रिपोर्ट
*क्यों असफल प्रेमी है सोनभद्र*
*नर्मदा ने क्यों दिया शाप, क्यों भटकता रहा विन्ध्य क्षेत्र में सोन*
बहुत ही प्राणमयी है पुराणगाथा सोन की, ‘ सोनभद्र की सम्पूर्ण सांस्कृतिक विरासत का आधार सोन नद है, इतिहास के तमाम उतार चढावों को समेटे इस जलपुरुष को अमरकंटक की हरीतिमा से निकाल कर पूर्वांचल की ओर जिसने भेजा, वह बड़ा ही मनमौजी और प्रतिगामी स्वभाव का रहा होगा, अन्यथा शोण नद को इतने परिवर्तनों से होकर न निकलना पड़ता। अमरकंटक की ऊंचाईयां और सानिध्य नर्मदा का, कितना सुखकर अतीत था शोणनद का।
पुराणगाथाओं का अभिशप्त शोण, नर्मदा ने कितनी मनुहार की इस जलपुरुष की, चरणों में लोटकर, लिपटकर मनाना चाहा अपने प्राणप्रिय को, पर शोण अविचलित , ध्यानमग्न योगी की तरह रहा उतना ही तटस्थ, उतना ही निस्पृह। आखिर रूठी प्राणप्रिया नर्मदा चली गयी सुदूर पश्चिम । अकेला शोणभद्र पूरब की ओर चल पड़ा पूरब की ओर। शोण को अगस्त्य का वरदान जो प्राप्त था कि वह विन्ध्य पर्वत की हरितिमा और उल्लास का साक्षी रहेगा।
नेह की यह डोर इन उपत्यकाओं से बांधे रही सोन को ।
विन्ध्य और कैमूर की पहाड़ियों की प्रीति ने यह साथ निभाया । शोण इन्ही पहाड़ियों की प्यास के बीच तब तक चलता रहा जब तक पाटलिपुत्र तक नहीं पहुंचा। अगस्त्य का शाप जो था कि जब तक वह गंगा के चरण नहीं छुएगा, नर्मदा की प्रीति डोर उसे पहाड़ियों में भटकायेगी और वह प्यासा रहेगा ।’
( पुस्तक – शोणभद्राय ते नमः, पृष्ठ-13, लेखक – डॉ मूलशंकर शर्मा)
लोककथाओं और गीतोँ में भी नर्मदा और सोन के प्रेम के किस्से भरे पड़े हैं,नर्मदा ने अपनी दासी जोहिला को संदेशवाहक बना कर सोन के पास भेजा, गलतफहमी में सोन जोहिला को ही नर्मदा समझ बैठे, नर्मदा को जब यह जानकारी हुई तो वे पूरब न जाकर पश्चिम अरब सागर में मिलगयीं।
नदियों सोन, नर्मदा और जोहिला की यह प्रेमगाथा विचार, अध्धयन, भौगोलिक और पर्यावर्णीय अध्धयन को प्रेरित करती है।