वृक्ष हमारे जीवन का सबसे बड़ा आधार- संजय शुक्ला

सोनभद्र(सर्वेश श्रीवास्तव)- 2 फरवरी को ग्राम केवटा में सबरी माई की कुटिया के प्रांगण में स्वर्गीय डॉक्टर अजय कुमार शुक्ल के स्मृति में उनके विचार के अनुरूप वृक्षारोपण कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ। स्वर्गीय शुक्ल के विचार थे कि आइए अपने से शुरू करें और उनके लिए जो संत, मनीषी एवं विभूतियो के साथ-साथ विश्व कोविड-19 की महामारी से जूझ रहे हैं या फिर इस महामारी के दुष्प्रभाव से स्वर्गवासी ऐसे लोगों के स्मृति में श्रद्धांजलि स्वरूप वृक्ष लगाये। उक्त कार्यक्रम को संबोधित करते हुए संजय शुक्ला ने कहा कि वृक्ष हमारे जीवन का सबसे बड़ा आधार होते है वृक्षों से हमे न केवल स्थूल लाभ मिलते है बल्कि विभिन्न प्रकार के सूक्ष्म लाभ भी मिलते है। इंसान को जिंदा रहने के लिए तीन प्रमुख चीजें चाहिए होती हैं,अन्न ,जल,और वायु ईश्वर ने हमे जल और वायु उपहार के रूप में मुफ्त प्रदान की है केवल एक अन्न हमे उपजाना पड़ता है और उसी की पूर्ति में हम इंसान पूरे जीवन भटकते रहते है। हर प्रकार के अच्छे बुरे काम केवल पेट भरने के लिए हमारे द्वारा किए जाते हैं जबकि ईश्वर के द्वारा इस अन्न उपजाने की प्रक्रिया में एक दाना बीज बोने पर हमें कई गुना प्रतिफल के रूप में अनाज मिलता है अगर कहीं अनाज की तरह ही जल और हवा भी उपजानी पड़ती तो हमारा क्या हाल होता यह सोचने की बात है। हमें पर्याप्त मात्रा में वृक्षारोपण करना चाहिए। सेवा समर्पण संस्थान संबद्ध अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम के जिला कार्यसमिति सदस्य आलोक चतुर्वेदी ने कहा कि अब, जब हमें जल और हवा दोनों मुफ्त मिली है तो उनका संरक्षण करना हमारा दायित्व बनता है जबकि हम इसके विपरीत दोनो का भरपूर मात्रा में दोहन करते हुए बेफजूल बर्बाद करते है हवा और जल दोनों के संरक्षण के लिए वृक्षों की अहम भूमिका होती है क्योंकि जब पेड़ होंगे तभी हवा और वर्षा संभव है वृक्ष हमारी जमीन के क्षरण को भी रोकते है। एक पेड़ जब से जीवन धारण करता है तब से हवा ,छाया , इमारती लकड़ी ,औषधि,पुष्प,और सूख जाने के बाद ईंधन में जलने के लिए लकड़ी प्रदान करता है अर्थात पेड़ का पूरा जीवन दूसरों के लिए समर्पित होता है ।इसीलिए कहा गया है ”वृक्ष कबहु नहिं फल भखै——————–परमारथ के कारने साधुन धरा शरीर।” वृक्षों से हमें बहुत बड़ी सीख मिल सकती है। इसी के अंतर्गत एक वाकया प्रस्तुत है-“एक बार एक बच्चा आम के पेड़ से कच्चे आम तोड़ने की कोशिश कर रहा था वह कंकड़ उठाकर पेड़ को मारता और निशाना चूकने से फल न टूटकर कंकड़ वापस जमीन पर आ गिरता ,बच्चा बार बार यही प्रक्रिया दुहरा रहा था इस बीच कुछ फल उसे प्राप्त भी हो गए ,लेकिन तभी वहां का राजा उसी रास्ते से होकर निकला अबोध बालक अपनी उसी धुन में व्यस्त रहा और अचानक कंकड़ पेड़ से टकराकर सीधा राजा के मस्तक पर जा लगा । फिर क्या था बालक डरकर वहां से अपने घर भाग गया और जाकर पूरा वाक्या अपने पिता को बताया । घटना को सुनकर पिता की सांसें जहाँ की तहाँ थम गई सारी रात अमंगल की आशंका में पूरा परिवार सोया नहीं किसी तरह भगवान भाष्कर ने अपनी प्रथम प्रातः कालीन किरणावलियों को प्रस्फुटित किया लेकिन उस बालक के घर में तो मानो चिर कालीन अंधरे ने साम्राज्य जमा लिया हो सभी ब्याकुल थे, कि राजा क्या सजा देगा।इसी उहापोह में वह समय भी आ गया राज्य का एक सिपाही बालक के साथ उसके पिता को भी बुलाने के लिए आ गया सारे मुहल्ले वाले जमा होकर राजा का निर्णय सुनने के लिए राजसभा के एकत्रित हो गए और दण्ड का इंतजार बेसब्री से करने लगे। तभी राजा ने अपना निर्णय सुनते हुए कहा-यह एक अबोध बालक है जो अपने लक्ष्य अर्थात कच्चे आम प्राप्त करने में तल्लीन था मेरा उधर से गुजरना उसके द्वारा देखा नही गया और वह पेड़ जो कितनी बार कंकड़ की चोट खाकर भी बालक को आम देता रहा हम क्या उस पेड़ से भी जड़ हो गए जो इस नासमझ बालक को दंड देगे यह कहाँ तक उचित है और मेरा आदेश है कि इस बालक की अपने कार्य के प्रति निष्ठा और लगाव को देखते हुए ढेर सारा धन पारितोषिक के रूप में दिया जाय साथ ही सभी साम्राज्य वासियों को पेड़ से सीख लेने की सलाह दी जाती है । इसीलिए हमें भी वृक्षों के रक्षा करनी चाहिए अगर अपना भविष्य खतरे से सुरक्षित करना है तो संकल्प लेना होगा कि पेड़ नही कटने देगे। काशी से आए बृजेश सिंह ने वृक्षों के महत्व बताते हुए कहा कि प्राचीन काल से ही प्रकृति हमारे लिए पूजनीय रही है। हमारे वेद, पुराण , उपनिषद सभी इस तथ्य के प्रमाण हैं कि हमने सदैव प्रकृति को देवी मान कर इसकी पूजा की है। पीपल, तुलसी नीम,बर्ड,आदि की पूजा आज भी अनेक जन्म – समुदायों द्वारा की जाती है।महा कवि रसखान और तुलसीदास ने भी अपने काव्य में पेड़ों का वर्णन किया है। अशोक महान ने भी लोक हितार्थ अनेकानेक पेड़ लगवाए।पेड़ हमारे लिए कितनी उपयोगी है, यदि हम इस प्रश्न पर गंभीरता से विचार करें तो पाएंगे कि वृक्ष हमारे लिए उपयोगी ही नहीं बल्कि हमारे जीवन का आधार भी है। हम आम, अमरूद, अनार , संतरा, केला आदि जितने भी फल खाते हैं, वह कहां से आते हैं? यह सब हमें वृक्षों से ही प्राप्त होते हैं। जरा सोचो यदि यह वृक्ष ना होते तो हमें इतने मीठे, रसीले ,पोस्टिगा तथा स्वादिष्ट फल कौन देगा?वृक्ष हमें घनी शीतल छाया भी प्रदान करते हैं। हम इन पेड़ पौधों से भातीं भातीं के सुगंधित फूल भी भी प्राप्त करते है। इनकी सुगंध से हम प्रसन्न होते हैं। जरा सोचिए! फल- फूलों के बिना यह संसार कितना नीरस असुंदर तथा सुना सुना लगेगा। हमारे विद्यालय, दफ्तरों और घरों की मेज, कुर्सियां, दरवाजे, खिड़किया तथा अन्य फर्नीचर बनाने के लिए लकड़ी कहां से आती है? यह भी वृक्षों की कृपा से ही प्राप्त होती है। बलिया से आए कपिंद्र तिवारी ने कहा कि पेड़ यह अन्य पशु पक्षियों का रहने का निवास स्थान हैं कई सारे पक्षी इन पेड़ों पर अपना घोसला बनाकर रहते हैं मनुष्य की तरह रहने के लिए पक्षियों घर चाहिए इसलिए वन ही पक्षियों का घर होता हैं। पेड़ मिट्टी को बहुत मजबूत पकड़कर रखते हैं और बाढ़ जैसी आपदा को आने से रोकते हैं। प्रयाग से आए सुनील जैन ने कहा कि यह भारत की भूमि है जो श्रद्धा का केंद्र है इसीलिए देवताओं ने भी वृक्षों के प्रति श्रद्धा का भाव केंद्रित किया क्योंकि वह हर चीज समाज के लिए उपयोगी होती है जो श्रद्धा का केंद्र होती है। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रही इंदु पांडे ने अपने अध्यक्षिय भाषण में कहा कि जनपद सोनभद्र पूर्व से ही पर्यावरण की दृष्टि से परिपूर्ण रहा है यह भारत का एकलौता ऐसा जनपद है जो देश के 4 राज्यों से विंध्य पर्वत की श्रृंखलाओं में गुप्तकाशी के रूप में जाना जाता है यहां का आदिवासी बनवासी गिरी वासी समाज सदैव से पर्यावरण के प्रति जागरूक रहा है यही तो कारण है जिसके वजह से यहां का हर आदिवासी समाज के उप जातियों का कोई न कोई वृक्ष अपना पूजनीय रहा है धन्य है यह समाज और धन्य धरा यहां की जहां आज हम सब इस प्रकार के अलौकिक कार्यक्रम में सम्मिलित हो रहे हैं।कार्यक्रम में मुख्य रूप से विनोद शंकर पांडे, विजय शंकर पांडे, वरिष्ठ समाजसेवी आशुतोष शुक्ला, वरिष्ठ समाजसेवी अरविंद पांडे ,दिलीप कुमार, काशी हिंदू विश्वविद्यालय के छात्र हरि दर्शन, मुकेश, तथा वासुदेव कोल, शिवकुमार, मनीष ,पंकज बाजपेई, अमरेश, गुलाब कोल, अशोक कोल, रामबली कोल, कोलदहकी गायकी के गायक मंत्री जी, प्रीतम गिरी चिरौंजी कोल, बीरबल ,नंदलाल भारती ,धनुषधारी कोल, राजमणि के साथ-साथ तमाम लोग उपस्थित रहे।

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