जीवन मंत्र । जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से भगवान ने अब छठे वर्ष में प्रवेश किया।

एक दिन भगवान मैया से बोले – ‘मैया…अब हम बड़े हो गये हैं।
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मैया ने कहा- अच्छा लाला…तुम बड़े हो गये तो बताओ क्या करे?
भगवान ने कहा – मैया अब हम बछड़े नहीं चरायेगे, अब हम गाये चरायेगे।
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मैया ने कहा – ठीक है। बाबा से पूँछ लेना…झट से भगवान बाबा से पूंछने गये।
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बाबा ने कहा – लाला…, तुम अभी बहुत छोटे हो,
अभी बछड़े ही चराओ।
भगवान बोले- बाबा मै तो गाये ही चराऊँगा।
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जब लाला नहीं माने तो बाबा ने कहा -ठीक है लाला,.. जाओ पंडित जी को बुला लाओ, वे गौ-चारण का मुहूर्त देखकर बता देगे।
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भगवान झट से पंडितजी के पास गए और बोले पंडितजी…. बाबा ने बुलाया है। गौचारण का मुहूर्त देखना है आप आज ही का मुहूर्त निकल दीजियेगा,
यदि आप ऐसा करोगे तो मैं आप को बहुत सारा माखन दूँगा।
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पंडितजी घर आ गए पंचाग खोल कर बार-बार अंगुलियों पर
गिनते,.. बाबा ने पूँछा -पंडित जी क्या बात है?
आप बार-बार क्या गिन रहे है ?
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पंडित जी ने कहा – क्या बताये,..नंदबाबाजी, केवल आज ही का मुहूर्त निकल रहा है इसके बाद तो एक वर्ष तक कोई मुहूर्त है ही नहीं।
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बाबा ने गौ चारण की स्वीकृति दे दी।
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भगवान जिस समय, जो काम करे, वही मुहूर्त बन जाता है।
उसी दिन भगवान ने गौचारण शुरू किया वह शुभ दिन कार्तिक-माह का “गोपा-अष्टमी” का दिन था।
माता यशोदा जी ने लाला का श्रृंगार कर दिया और जैसे ही पैरों में जूतियाँ पहनाने लगी तो बाल कृष्ण ने मना कर दिया और कहने लगे मैया !
यदि मेरी गौ जूते नही पहनती तो मै कैसे पहन सकता हूँ।
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यदि पहना सकती हो तो सारी गौओं को जूतियाँ पहना दो।
फिर मैं भी पहन लूंगा और भगवान जब तक वृंदावन में रहे कभी भगवान ने पैरों में जूतियाँ नहीं पहनी।
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अब भगवान अपने सखाओं के साथ गौए चराते हुए वृन्दावन में जाते और अपने चरणों से वृन्दावन को अत्यंत पावन करते।
यह वन गौओ के लिए हरी हरी घास से युक्त एवं रंग- बिरंगे पुष्पों की खान हो रहा था,
आगे आगे गौएँ उनके पीछे-पीछे बाँसुरी बजाते हुए श्यामसुन्दर तदन्तर बलराम और फिर श्रीकृष्ण के यश का गान करते हुए ग्वालबाल।
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इस प्रकार विहार करने के लिए उन्होंने उस वन में प्रवेश किया। और तब से भगवान गौ चरण लीला करने लगे।
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हे गोपाल !
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