गणेश शंकर विद्यार्थी एक निर्भीक पत्रकार थे ! स्वाधीनता आंदोलन में जेल की हुई थी सज़ा

शाहगंज-सोनभद्र (सर्वेश श्रीवास्तव)- मिडिया फोरम आफ इंडिया न्यास की ओर से सोमवार को वर्चुअल प्लेटफार्म पर स्वाधीनता संग्राम सेनानी रहे अमर पत्रकार गणेश शंकर विद्यार्थी की 130 वी जयंती परविचार गोष्ठी आयोजित की गई। संस्था के निदेशक मिथिलेश प्रसाद द्विवेदी की सदारत में विचार व्यक्त किए गए संयोजक राकेश शरण मिश्र ने कहा गणेश शंकर विद्यार्थी का जन्म 26 अक्टूबर 1890 को इलाहाबाद ( प्रयागराज ) के अतर सुइया मुहल्ले में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम जयनारायण था जो फतेपुर यूपी के हथगांव के निवासी थे। 25 मार्च 1931 को कानपुर में दंगाइयों के हत्थे चढ़ गए। इसके पूर्व उनका पत्रकारित और स्वाधीनता आंदोलन का योगदान उन्हें अजर अमर बना चुका था। पत्रकार भोलानाथ मिश्र ने कहा गणेश शंकर विद्यार्थी एक निडर और निष्पक्ष पत्रकार, समाज सेवी तथा स्वतंत्रता सेनानी थे। भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में वे कुल अलग अलग समयों में 5 साल तक जेल में रहे। 1926 से 1929 तक वे यूनाइटेड प्रोविंस के विधानसभा सदस्य भी चुने गए थे लेकिन 1929 में त्यागपत्र दे कर आंदोलन को धार देने में जुट गए थे। न्यास के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष मिथिलेश प्रसाद द्विवेदी ने कहा कि पहले वे ‘कर्मयोगी’ और स्वराज से जुड़े जिससे प्रभावित हो कर महाबीर प्रसाद द्विवेदी ने सरस्वती में उन्हें उप संपादक पद का प्रस्ताव दिया लेकिन वे ‘अभ्युदय’ में काम करना स्वीकार किया। सन 1913 में कानपुर में ‘प्रताप’ निकाले। 1920 में प्रताप का दैनिक संस्करण निकाले। इसके पूर्व 1916 में उनकी मुलाकात महात्मा गांधी जी से हुई 1917-18 में होमरूल आंदोलन में सक्रिय हो गए तथा 1920 में दो साल की सज़ा हुई। सन 1924 में पत्रकारिता की लेकर दो साल की सज़ा हुई तो जेल से छूटने पर चुनावी राजनीति में आए।

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