जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से महादेव और शनि की कथा….

जीवन मंत्र । जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से महादेव और शनि की कथा….



हिन्दू धर्म गर्न्थो और शास्त्रों में भगवान् शिवजी को शनिदेव का गुरु बताया गया है, तथा शनिदेव को न्याय करने और किसी को दण्डित करने की शक्ति भगवान् शिवजी के आशीर्वाद द्वारा ही प्राप्त हुई है, अर्थात शनिदेव किसी को भी उनके कर्मो के अनुसार उनके साथ न्याय कर सकते है और उन्हें दण्डित कर सकते है, चाहे वे देवता हो या असुर, मनुष्य हो या कोई जानवर।

शास्त्रों के अनुसार सूर्यदेव एवम् देवी छाया के पुत्र शनिदेव को क्रूर ग्रह की संज्ञा दी गयी है, शनिदेव बचपन में बहुत ही उद्ण्डत थे तथा पिता सूर्य देव ने उनकी इस उदंडता से परेशान होकर भगवान् शिवजी को अपने पुत्र शनि को सही मार्ग दिखाने को कहा, भगवान् शिवजी के लाख समझाने पर भी जब शनिदेव की उदंडता में कोई परिवर्तन नहीं आया।

एक दिन भगवान् शिवजी ने शनिदेव को सबक सिखाने के लिए उन पर प्रहार किया जिससे शनिदेव मूर्छित हो गये, पिता सूर्यदेव के कहने पर भगवान् शिवजी ने शनिदेव की मूर्छा तोड़ी तथा शनिदेव को अपना शिष्य बना लिया और उन्हें दण्डाधिकारी का आशीर्वाद दिया, इस प्रकार शनिदेव न्यायधीश के समान न्याय एवं दण्ड के कार्य में भगवान् शिवजी का सहयोग करने लगे।

शास्त्रों के अनुसार एक दिन शनिदेव कैलाश पर्वत पर अपने गुरु भगवान् भोलेनाथ से भेट करने के बाद कहा- प्रभु! कल में आपकी राशि में प्रवेश करने वाला हूंँ, अर्थात मेरी वक्रदृष्टि आप पर पड़ने वाली है, भगवान् शिवजी ने जब यह सूना तो वे आश्चर्य में पड गयें, तथा शनिदेव से बोले की तुम्हारी वक्रदृष्टि कितने समय के लिये मुझ पर रहेगी?

शनिदेव ने शिवजी से कहा की कल मेरी वक्रदृष्टि आप पर सवा प्रहर तक रहेगी, अगले दिन प्रातः शिवजी ने सोचा की आज मुझ पर शनि की दृष्टि पड़ने वाली है, अतः मुझे कुछ ऐसा करना होगा की आज के दिन शनि मुझे देख ही ना पाये? तब भगवान् शिवजी कुछ सोचते हुये मृत्यु लोक अर्थात धरती में प्रकट हुये तथा उन्होंने अपना भेष बदलकर हाथी का रूप धारण कर लिया।

सज्जनों! पुरे दिन भोलेनाथ हाथी का रूप धारण कर धरती पर इधर-उधर विचरण करते रहे, जब शाम हुई तो भगवान् शिवजी ने सोचा की अब शनि मेरे ग्रह से जाने वाला है, अतः मुझे मेरे वास्तविक स्वरूप में आ जाना चाहियें, भगवान् शिवजी अपना वास्तविक रूप धारण कर कैलाश पर्वत पर लोट आयें, भोलेनाथ प्रसन्न मुद्रा में कैलाश पर्वत पहुँचे तो वहाँ पर पहले से ही मौजूद शनिदेव शिवजी की प्रतीक्षा कर रहे थे।

शनिदेव को देखते है शिवजी बोले, हे शनिदेव! देखो तुम्हारी वक्रदृष्टि का मुझ पर कोई प्रभाव नहीं हुआ, तथा आज में सारे दिन तुम से सुरक्षित रहा, भगवान् भोलेनाथ की बात को सुन शनिदेव मुस्कराते हुये बोले- प्रभु! मेरी दृष्टि से ना तो कोई देव बच पाये है और नहीं कोई दानव, यहाँ तक की आप पर भी आज पुरे दिन मेरे वर्क का दृष्टि प्रभाव रहा।

भगवान् शिवजी आश्चर्यचकित होते हुये शनिदेव से पूछा कि यह कैसे सम्भव है? मैं तुम्हें मिला ही नहीं, तो वक्रदृष्टि का सवाल ही नहीं? शनिदेव बड़ी शालीनता से मुस्कराते हुए शिवजी से बोले- प्रभु मेरे वक्र दृष्टि के कारण ही आपको आज सारे दिन देव-योनि से पशु योनि में जाना पड़ा इस प्रकार आप मेरी वक्रदृष्टि के पात्र बने।

यह सुनकर भगवान् भोलेनाथ ने शनिदेव से प्रसन्न होकर उन्हें गले से लगा लिया तथा पुरे कैलाश पर्वत में शनिदेव का जयकारा गूजने लगा, भाई-बहनों! शनिदेव के प्रकोप से भगवान् भी नहीं बच सकते तो हम कलयुगी मानव की बिसात ही क्या है? इसलिये सत्यता को जीवन में अपनाओं, पवित्रता को चरित्र में धारण करों, शुचिता को व्यवहार में लाओ।

अगर शनिदेव की वक्रदृष्टि हमारे ऊपर आ भी गयीं तो कुछ पलों की ही होगी साढ़े साती नहीं, न्याय के देवता श्री शनि महाराज पूरा लेखा-जोखा रखते हैं, अतः पाप से बचो व अन्याय का साथ न दो, समस्त जीवों पर दया का भाव रखों, भगवान् भोलेनाथ के साथ शनि महाराज आपकी रक्षा करें, आज के पावन दिवस की पावन सुप्रभात् आप सभी को मंगलमय् हों।

जय शनिदेव!
जय महादेव!

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