उत्पादन निगम के निदेशक कार्मिक पर सरकार मेहरबान  दो आरोप पत्र पाने के बाद भी नहीं मिली सजा

लखनऊ । ईमानदार मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के मंसूबों और मेहनत पर पलीता लगाने का काम जिस तरह से कानपुर प्रकरण में पुलिस का रहा है उसी तरह ऊर्जा विभाग के उत्पादन निगम में भी मुख्यमंत्री के मेहनत और उनकी प्राथमिकताओं की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं।शुचिता और जीरो टालरेंस के दावे वाली योगी सरकार में चार्जशीटेड और वित्तीय अनियमितता का आरोपी बिजली उत्पादन निगम का निदेशक कार्मिक संजय तिवारी शान से विभाग में नीतियां निर्धारित करने का काम कर रहा है। प्रदेश को रौशन करने वाली सबसे बड़ी संस्था के शीर्ष पदों में से एक पर काबिज संजय तिवारी ओबरा बिजलीघर फुंकवाने में इंजीनियरिंग सेवा से रिटायरमेंट के दिन 28 फरवरी 2019 को चार्जशीट पा गया। उससे भी गंभीर एक दूसरे मामले में संजय तिवारी के निदेशक पद पर चयन से पहले से लम्बित वित्तीय अनियमितता की फाइल को तिवारी द्वारा खुद ही छिपाया जाना और लम्बित वित्तीय प्रकरण के बाद भी जोड़ जुगत के बल पर निदेशक कार्मिक का पद हथियाने में कामयाब हो जाना योगिराज में आश्चर्यचकित करने वाला है। अब उसी लंबित वित्तीय मामले में संजय तिवारी को करीब तीन साल बीत जाने के बाद दिनांक 25 अप्रैल 2020 को पत्रांक संख्या 535-मा०सं०-05/उनिलि/2020-4(09)/मा०सं०-05/2019 के द्वारा आरोप पत्र दिया गया है। इतने के बावजूद भी संजय तिवारी के मामले को प्रबंधन व सरकार द्वारा प्रक्रिया में उलझा कर उसको अक्टूबर 2020 में सम्मान पूर्वक रिटायर किये जाने की जमीन तैयार किया जा रहा है।

प्रबंधन और सरकार के इस रवैये को लेकर सवाल कई हैं।संजय तिवारी जैसा दो दो मामलों में दोष सिद्ध आरोपी कैसे कुर्सी पर बैठा है? संजय तिवारी को उसके इंजीनियरिंग सेवा से रिटायरमेंट के दिन ही चार्जशीट क्यों दी गयी ? जांच और सजा के नाम पर देरी कर मामले को लटकाने का काम किसने किया शासन या प्रबंधन ने और आज जब उसको दो गंभीर मामलों में चार्जशीट दी जा चुकी है तो पद से हटाने में देरी की क्या वजह है ? ऊर्जा विभाग के उत्पादन निगम में निदेशक कार्मिक पद पर तैनात संजय तिवारी के मामले में प्रबंधन की सुस्ती या कहिये संरक्षण और सरकार के जिम्मेदारों की नजरंदाजी से दो गंभीर मामलों में आरोप पत्र पाने के बाद भी संजय तिवरी निदेशक कार्मिक जैसे महत्वपूर्ण पद पर बैठ निगम के अधिकारीयों व कर्मचारियों पर अनुशासनात्मक कार्यवाही व उनके ट्रांसफर, पोस्टिंग जैसे महत्वपूर्ण काम कर रहा है।

25 फरवरी को शासन के अनुसचिव आनंद त्रिपाठी के पत्र के बाद जागे प्रबंधन ने आखिर क्यों 29 फरवरी 2019 को ही ओबरा अग्निकांड में संजय तिवारी को चार्जशीट दिया इसके पहले इस गंभीर मामले को जबरदस्ती प्रक्रिया का हवाला देकर क्यों उलझाया गया ? क्या मामले को लम्बा खींचकर संजय तिवारी को माला पहना रिटायर करने का खेल किया गया।निदेशक पद पर गलत तरीके से हुयी नियुक्ति और दो गंभीर मामलों में चार्जशीट मिलने के बाद भी संजय तिवारी को मिल रहा है प्रबंधन का संरक्षण, खिलाड़ी संजय तिवारी के हर आवेदन को प्रबंधन तवज्जो दे रहा है. आरोप पत्र देने वाले अधिकारी को 26 फरवरी 2020 को बदलने और एक महीने में रिपोर्ट देने की बात कहने के बाद भी अभी तक रिपोर्ट दाखिल कर सजा का निर्धारण नहीं किया जा सका है जोकि इस बात को समझने के लिए काफी है कि ओबरा अग्निकांड में आरोप सिद्ध होने के बाद भी उसको इंजीनियरिंग सेवा से रिटायर होने का मौका दिया गया तो अब उसको निदेशक के पद से माला पहनाकर विदा किये जाने की तैयारी है।

संजय तिवारी के दो मामले जिसमें मिल चुका है आरोप पत्र, पर महीनों बीतने के बाद भी नहीं हो सकी कार्यवाही

ओबरा में परियोजना प्रबंधक पद पर रहने के दौरान प्राथमिकता का अतिक्रमण कर भुगतान किये जाने और परियोजना पर परिचालन एवं अनुरक्षण मद में दायित्वों का अनावश्यक सृजन किये जाने के सम्बन्ध में

संजय तिवारी की निदेशक पद पर नियुक्ति से पहले ओबरा तापीय परियोजना में वर्ष 2016-17 में प्राथमिकता का अतिक्रमण कर भुगतान किये जाने और परियोजना पर परिचालन एवं अनुरक्षण मद में दायित्वों का अनावश्यक सृजन किये जाने सम्बन्धी गंभीर वित्तीय अनियमित्ताओं की प्रथिमिकी जांच चार्टर्ड एकाउंटेंट फर्म मेसर्स जमुना शुक्ला एसोसिएट्स द्वारा कराई गयी थी।जिसकी जाँच रिपोर्ट संजय तिवारी के निदेशक पद पर नियुक्ति से पहले ही उक्त फर्म द्वारा दी जा चुकी थी । उक्त प्रकरण में भी संजय तिवारी को आरोप पत्र दिनांक 25 अप्रैल 2020 को जिसकी पत्रांक संख्या 535-मा०सं०-05/उनिलि/2020-4(09)/मा०सं०-05/2019 है, के द्वारा दिया जा चुका है.

निदेशक कार्मिक बनाये जाने के पहले वर्ष 2010-11 के परियोजना प्रबंधक के वित्तीय प्रबंधन के आदेश का अनुपालन ओबरा परियोजना में प्रबंधक रहे संजय तिवारी द्वारा ठीक ढंग से नहीं किया जा रहा था और ओबरा परियोजना के CGM पद पर रहने के दौरान संजय तिवारी पर वित्तीय अनियमतता का आरोप लगा था. जिसकी तत्कालीन CMD कामरान रिजवी ने 09 अगस्त 2017 को पत्रांक संख्या 330/UPRVUNL/CGM द्वारा चार्टर्ड एकाउंटेंट फर्म मेसर्स जमुना शुक्ला एंड एसोसिएटस, वाराणसी को ओबरा परियोजना की 01.04.2016 से 30.06.2017 अवधि तक का स्पेशल आडिट कराए जाने का आदेश सौंपा था. और इस कार्य के सुपरविजन के लिए विभाग के ही 2 अधिकारियों एस0के0 वर्मा अधीक्षण अभियंता, उ0नि0लि0 शक्ति भवन विस्तार और रवीश कुमार वरिष्ठ लेखाधिकारी, पनकी तापीय परियोजना की एक समिति गठित कर दिया गया था।

चार्टर्ड एकाउंटेंट फर्म द्वारा तय अवधि में किये गये आडिट की रिपोर्ट निदेशक वित्त को सौंपा गया था. सूत्र बताते हैं कि फर्म की रिपोर्ट को निदेशक वित्त द्वारा संजय तिवारी पर कार्यवाही हेतु CMD को भेज दिया, जिसको CMD ने निदेशक कार्मिक को कार्यवाही हेतु भेज दिया।इसी बीच निदेशक कार्मिक के पद पर संजय तिवारी का चयन हुआ और चयन में उसके द्वारा इस जांच और कार्यवाही के तथ्यों को छिपाया गया. जानकारों के अनुसार चार्टर्ड एकाउंटेंट फर्म मेसर्स जमुना शुक्ला एंड एसोसिएटस, वाराणसी की रिपोर्ट की फाईल को निदेशक कार्मिक बनने के बाद संजय तिवारी द्वारा खुद की आलमारी में छिपा कर रखा गया था

2. 14 अक्टूबर 2018 को ओबरा परियोजना में हुए अग्निकांड में आरोप पत्र पा चुके संजय तिवारी पर करीब एक साल बीतने के बाद भी नहीं हो सकी कार्यवाही।

अक्टूबर 2018 में ओबरा परियोजना में लगी आग जिसने करीब 500 करोड़ के सरकारी धन को स्वाहा कर दिया और जिसकी वजह से आज भी करीब 11 करोड़ रूपये प्रतिमाह की दर से सरकारी राजस्व का नुकसान हो रहा है में दोष सिद्ध आरोपी, चार्जशीट लेने में हीला-हवाली,कोर्ट तक का सहारा लेने के बाद भी प्रबंधन ने आरोप पत्र काफी मशक्कत के बाद दे तो दिया लेकिन करीब एक साल बीत जाने के बाद भी सजा देने के मामले में प्रबंधन मेहरबान दिख रहा है।

ओबरा अग्निकांड मामले में बनाई गयी जांच कमेटी द्वारा दोषसिद्ध आरोपी बने संजय तिवारी को हाईकोर्ट का भी सहारा नहीं मिला. उसको 17 दिसम्बर 2019 को पुनः चार्जशीट देने की कोशिश कमेटी द्वारा किया गया तो उसने तमाम बहाने बना लेने से मना किया और कार्मिक के मुखिया पद पर बैठा अपने अधीनस्थों से अपशब्दों तक का प्रयोग शुरू कर दिया. अंत में आफिस में उसके रहने के बावजूद प्रबंधन उसको चार्जशीट देने में नाकामयाब रहा मजबूर होकर फिर स्पीड पोस्ट के माध्यम से भेजा. कोर्ट से निराश होने के बाद संजय तिवारी ने नया पैंतरा बदला और अपने बचे कार्यकाल के 10 महीनों को निकालने के लिए उसने जांच कमेटी पर ही सवाल उठा दिया। जिसके सम्बन्ध में उसने 2 पत्र भी प्रबंध निदेशक से लेकर चेयरमैन तक दिया. जिसके बाद जांच कमेटी के सदस्य को भी बदला गया फिर भी अभी तक संजय तिवारी पर कार्यवाही नहीं की जा सकी है। इस तरह एक आरोपी को तरजीह देकर मामले को लम्बा खींचने से प्रबंधन व सरकार पर ऊँगली उठना लाजमी है।

आखिर जिस अफसर की नियुक्ति ही गलत हुई हो, वह वित्तीय अनियमितता जैसे मामले की थर्ड पार्टी आडिट में दोषी साबित हुआ हो और उत्पादन निगम की ओबरा जैसी महत्वपूर्ण यूनिट के जलने का जिम्मेदार एक उच्च जांच कमेटी ने ठहराया हो और एक अन्य मामले में भी आरोप पत्र पा चुका हो फिर भी इतनी ढिलाई प्रबंधन यह जानते हुये कर रहा है कि उसकी नियुक्ति भी गलत हुई है. अब इसके लिए जिम्मेदार कौन शासन या फिर प्रबंधन यह पता लगाना सरकार का काम है लेकिन इससे एक बात जरूर साबित होती है कि अफसरशाही का यह दांवपेच मुख्यमंत्री योगी के मंसूबों को ठेंगा दिखाने वाला है और निकट भविष्य में सियासी रूप से भी नुकसान दे सकता है।

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