दिल्ली।वर्ष 2020-21 से लेकर वर्ष 2025-26 तक के लिए अपनी सिफारिशों को अंतिम रूप देने के लिए वित्त आयोग ने आज केन्द्रीय ग्रामीण विकास, कृषि एवं किसान कल्याण और पंचायती राज मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के नेतृत्व वाले पंचायती राज मंत्रालय (एमओपीआर) के साथ एक विस्तृत बैठक की। वित्त आयोग की ओर से चर्चा इसके अध्यक्ष श्री एन. के. सिंह के नेतृत्व में की गई।
15वें वित्त आयोग के विचारार्थ विषयों में इसे ‘राज्य के वित्त आयोग द्वारा की गई सिफारिशों के आधार पर राज्य में पंचायतों और नगरपालिकाओं के संसाधनों के पूरक के तौर पर काम आने के लिए संबंधित राज्य के समेकित कोष को बढ़ाने के लिए आवश्यक उपायों’ की सिफारिश करने की जिम्मेवारी सौंपी गई है। आयोग ने इस मुद्दे पर विचार किया था और वर्ष 2020-21 के लिए अपनी रिपोर्ट में स्थानीय निकायों के लिए अपनी सिफारिश प्रस्तुत की थी तथा इसके साथ ही अपनी शेष अनुदान अवधि के लिए एक व्यापक रोडमैप का संकेत भी दिया था। उल्लेखनीय है कि इस अवधि के लिए आरएलबी को 60,750 करोड़ रुपये दो किस्तों में आवंटित किए गए थे: 50% मूल अनुदान के रूप में और 50% अंतिम अनुदान के रूप में।
पंचायती राज मंत्रालय ने अब प्रस्तुत किया है कि 15वां वित्त आयोग 2021-2026 की संशोधित अवधि के लिए पंचायती राज संस्थानों (पीआरआई) के लिए अपने अनुदान को 10 लाख करोड़ रुपये के स्तर पर रखने पर विचार कर सकता है। इसने अनुरोध किया है कि 2020-21 के लिए 15वें वित्त आयोग की अंतरिम रिपोर्ट के प्रावधानों के अनुरूप अनुदान अवधि के प्रारंभिक 4 वर्षों अर्थात 2021-25 के लिए पीआरआई को अनुदान अंतरण को बुनियादी सेवाएं सुनिश्चित करने के लिए 50% मुक्त राशि के रूप में और पेयजल आपूर्ति एवं स्वच्छता के लिए 50% सहबद्ध राशि के रूप में रखा जा सकता है। इसके बाद ग्रामीण निकायों में पेयजल आपूर्ति और स्वच्छता में अनुमानित प्रगतिशील परिपूर्णता स्तरों को ध्यान में रखते हुए इसे वर्ष 2025-26 के लिए पेयजल आपूर्ति एवं स्वच्छता के लिए 25% सहबद्ध राशि के रूप में और 75% को मुक्त राशि के रूप में रखा जा सकता है। मुक्त अनुदानों में से पीआरआई को आउटसोर्सिंग के विभिन्न तरीकों, अनुबंध या स्व-सहभागिता के माध्यम से बुनियादी सेवाएं मुहैया कराने की अनुमति दी जा सकती है। वे विभिन्न राजस्व/आवर्ती व्यय जैसे कि परिचालन, रखरखाव, पारिश्रमिक भुगतान, इंटरनेट एवं टेलीफोन व्यय, ईंधन खर्च, किराया, आपदाओं के दौरान आकस्मिक व्यय, इत्यादि के लिए भी अनुदान का उपयोग कर सकते हैं। इसने पांच साल की अवधि 2021-26 के लिए 12,000 करोड़ रुपये के अनुदान की अतिरिक्त आवश्यकता को भी रेखांकित किया है, ताकि राज्यों को उन सभी ग्राम पंचायतों में समयबद्ध तरीके से ग्राम पंचायत भवन बनाने के लिए सक्षम बनाया जा सके जहां इस तरह के भवन नहीं हैं। इसके अलावा ग्रामीण क्षेत्रों के समग्र विकास के लिए एक आवश्यक ग्रामीण अवसंरचना के रूप में सभी ग्राम पंचायतों में बहुउद्देश्यीय सामुदायिक हॉल/केंद्र बनाने की जरूरत को महसूस किया गया है।
आज की चर्चाएं निम्नलिखित पर केंद्रित रहीं:
निधि के राज्य-वार अंतरण की स्थिति, संविधान की ग्यारहवीं अनुसूची में निहित 29 कार्यों के संदर्भ में आरएलबी के कार्य एवं पदाधिकारी और क्या यह प्रगति समय के साथ वित्त आयोग (एफसी) के अनुदानों की बढ़ी हुई हिस्सेदारी के अनुरूप है।
राज्य वित्त आयोग (एसएफसी) के गठन की स्थिति, नवीनतम एसएफसी की प्रमुख सिफारिशें और कार्यान्वयन, राज्य के भीतर एफसी और एसएफसी के वितरण के लिए राज्य-वार मापदंड।
राज्यों द्वारा एक संपत्ति कर बोर्ड का गठन।
वर्ष 2011-12 से ही आरएलबी द्वारा सृजित ‘स्वयं के संसाधनों’ का राज्य-वार पैटर्न और आरएलबी के राजस्व पर जीएसटी का प्रभाव।
राज्यों को कार्य-प्रदर्शन अनुदान जारी करना।
उन राज्यों का विवरण जिसमें आरएलबी ने शर्तों को पूरा किया है और कार्य-प्रदर्शन अनुदान (पीजी) प्राप्त करने में सक्षम रहा है।
उन राज्यों की पहचान जो शर्तों का पालन करने के बाद पीजी प्राप्त करके काफी लाभान्वित हुए हैं जिससे स्थानीय निकायों के कामकाज में स्थायी सुधार हुआ।
1 जून 2020 को व्यय विभाग ने पंद्रहवें वित्त आयोग की रिपोर्ट के अध्याय 5 (स्थानीय निकाय अनुदान) में निहित ग्रामीण स्थानीय निकाय (आरएलबी) अनुदानों पर सिफारिशों के कार्यान्वयन के लिए परिचालन दिशा-निर्देश जारी किए थे। वित्त मंत्रालय ने एफसी 2020-21 रिपोर्ट में वर्णित व्यापक सिद्धांतों के आधार पर 17 जून, 2020 को ग्रामीण स्थानीय निकायों को 15177 करोड़ रुपये (60750 करोड़ रुपये का 25%) की पहली किस्त जारी की थी। अधिसूचना में यह भी कहा गया कि राज्य सरकारें 90% जनसंख्या भार और 10% क्षेत्र भार वाले सभी वंचित क्षेत्रों को राशि वितरित करेंगी।
वित्त आयोग ने मंत्री और उनकी टीम को अपनी ओर से पूर्ण सहयोग का आश्वासन दिया है।