उद्योग के उत्पादन की खपत करती है शुद्धता मानक बाजार मांग के अनुसार होने चाहिए।
लखनऊ।ग्रामीण कुटीर उद्योग भारतीय उद्योग की आत्मा है ।उक्त बातें उमाशंकर पांडेय ने बतायी।श्री पांडेय ने बताया कि परंपरागत ग्रामीण उद्योगों को फिर से बुन्देलखण्ड मे खड़ा करने का शुभअवसर है ।हुनरमंद कामगार जिन्हें रोजगार चाहिए है। गांव में श्रम शक्ति मौजूद उन्हें जैसे हथकरघा, कपड़ा, मिट्टी के बर्तन, बांस बर्तन की मिट्टी के बर्तन लकड़ी के कृषि उपकरण, लोहे के कृषि उपकरण, चरखा कातना कर धागा बनाना, ग्रामीण उद्योग पर्यावरण के हिसाब से काफी अनुकूल है। पूजी प्रशिक्षण कम लागत है पढ़ा अनपढ़ सब कर सकते हैं अपने घर पर रहकर परिवार के साथ कृषि करते हुए पूरे परिवार के खाली समय का सदुपयोग हो सकता है।
बुनियादी सुविधा गांव में मौजूद है हथकरघा चरखा दोनों कृषि के बाद बड़ी विरासत है हैंडलूम तथा पारलू के वस्त्र निर्माण में कृषि के बाद सबसे ज्यादा रोजगार के अवसर हैं लोग महानगरों में लगे भी थे। मेरे गांव के तीन युवा उद्यमी 400 लूम कारीगरों को काम दिए थे ग्राम उद्योग सूक्ष्म ,लघु ,मध्यम ,सुविधा के अनुसार चुन सकते हैं वैदिक काल से कृषि तथा कुटीर उद्योग साथ चले हैं हमारे देश में लघु उद्योग और मझले उद्योग को सामाजिक स्तर पर सहयोग मिलता है। भारत सरकार की तथा राज्य सरकार की तमाम योजनाये इसमें सहयोग करती है जैसे प्रधानमंत्री स्वरोजगार योजना, मुख्यमंत्री स्वरोजगार, योजना डिजिटल इंडिया, स्टार्टअप इंडिया, न्यू इंडिया स्किल इंडिया, मुद्रा योजना तथा बैंकों की कई रोजगार योजनाएं हैं।
2001 की जनगणना के अनुसार भारत की 72% जनता गांव में रहती है जो कुटीर उद्योग के उत्पादन की खपत करती है शुद्धता मानक बाजार मांग के अनुसार होने चाहिए। हमारे गांव में 30 वर्ष पहले काफी बड़ी संख्या में लोग कपड़ा बुनाई का काम करते थे बांस की डलिया, मिट्टी के बर्तन, पत्थर के बर्तन, लोहे के ग्रामीण कृषि औजार, गांव में ही मिल जाते थे ग्रामीण कृषि यंत्र गांव में बनते थे। आज फिर बेरोजगारी दूर करने के लिए गांव को परंपरागत रोजगार देना होगा गांव का पलायन रोकने का यही तरीका पुरातन तथा उपयुक्त लगता है खासकर बुंदेलखंड के लिए उपयुक्त है बड़े उद्योग यहां लगेगे नहीं उसकी बात करना भी ठीक नहीं है।
आज खाना है, आज काम चाहिए जैसे भैंस पालन, गाय पालन, बकरी पालन, भेड़ पालन, बैल पालन, विभिन्न प्रकार की सब्जी उत्पादन गांव की मांग के अनुसार एक ही घर पर रहकर काम कर सकता है। साथ ही थोड़ी बहुत कृषि भी पशुपालन भी बाल काटना, कपड़े धोना, सिलाई, आटा चक्की, तेल स्पेलर, छोटी राइस मिल, चावल मशीन, गुड बनाना, ईटा बनाना, शुद्ध सब्जियों की मांग है जैसे आलू, बैगन, प्याज मिर्च, लौकी, तरोई करेला धनिया मिर्च हल्दी अदरक, जीरा, लहसुन मेथी, आदि इसी प्रकार शुद्ध तेल, दूध, खाद्यान्न, अनाजों की आवश्यकता है जो कृषि किसानों गांव से जुड़े दालें भी परंपरागत लोहार, बढ़ई जैसे जानकार कुशल कारीगर थे हुनरमंद थे। उन्हें फिर से गांव में सम्मान सहित उनके रोजगार को स्थापित करना होगा हमारा गांव सबको उसकी योग्यता के अनुसार रोजगार काम देने में सक्षम है ईमानदारी से बैंकों को उद्योग विभाग को सरकारी योजनाओं को क्रियान्वित करने वाली एजेंसियों को आपस में तालमेल कर परंपरागत ग्रामीण कुटीर उद्योगों को फिर से लगना पड़ेगा। जैसे 50 साल पहले जमीन पर काम हो रहा था वर्तमान परिस्थिति में 90% कार्य कागज पर पिछले 20 साल में हुआ है पुरानी कुटीर सरकारी योजनाएं कहां स्थापित हूंई कब स्थापित हुई कहां चल रही हैं ढूंढना मुश्किल है।
ग्रामीण कुटीर उद्योग के नाम पर पैसा भी खूब खाया गया है इस विषय पर चर्चा करना ठीक नहीं है अभी अगर ईमानदारी से रोजगार की दिशा में काम किया गया होता तो बेरोजगारो को रोजगार के लिए महानगरों की ओर पलायन ना किए होते कोरोना जैसी महामारी बीमारी के कारण फिर से लोग वापस गांव आ गए हैं। उन्हें परिवार पालने के लिए जीवन के लिए रोजगार चाहिए फिर गांव हरा भरा हो सकता है।
बुंदेलखंड के जिलों में लगभग एक समान उद्योग परंपरागत बड़े पैमाने पर चल रहे थे जिनमें पान की खेती, पीतल के बर्तन, तांबे के बर्तन, फूल के बर्तन, सोने चांदी के जेवर का काम, वस्त्र निर्माण, बैलगाड़ी निर्माण, सहित लगभग 700 ग्रामीण रोजगार परंपरागत तरीके से उपलब्ध है। अपनी योग्यता के अनुसार व्यक्ति स्वयं चुन सकता है स्वयं वह कौन सा रोजगार करना चाहता है यह उस पर निर्भर है जो अपना रोजगार नहीं कर सकता उसे मनरेगा महात्मा गांधी रोजगार योजना के अंतर्गत ग्राम पंचायतों से काम मिल सकता है। काम कई ग्राम पंचायतों में शुरू भी है।
मनरेगा एक बहुत अच्छी स्वरोजगार योजना है लेकिन पिछले 20 सालों में मैंने देखा है ग्राम प्रधानों और सरकारी बाबू ने मिलकर एक तालाब को कई बार खुदवाय, एक कुएं को कई बार बनाया, एक सड़क को कई बार बनाया, गांव के कंक्रीट रास्ते को कई बार बनाया, नाली भी कई बार बन चुकी हर 5 साल में चुनाव होना है। गांव का क्षेत्रफल तो उतना ही है ना गांव का व्यक्ति डर और भय के कारण ना तो शिकायत कर सकता है और ना ही न्याय की बात कर सकता है यह विषय अभी चर्चा का नहीं है।
एक अवसर है बुंदेलखंड के गांव को खड़ा करने के लिए मैंने जो देखा आपके साथ साझा कर रहा हूं कुछ गलत हो तो क्षमा करें ठीक लगे तो साझा करें। महात्मा गांधी जी ने, आचार्य विनोबा जी ने, दीनदयाल उपाध्याय जी ने, नाना जी ने सदैव कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देने का प्रयास किया है तथा सफल प्रयोग किए हैं यही तो गांधीजी का ग्राम स्वराज्य है। कुटीर उद्योग से ही आत्मनिर्भरता आएगी गांव आत्मनिर्भर होंगे समाज आत्मनिर्भर होगा।सौजन्य से उमाशंकर पांडेय की वाल से लिया गया है।