पीड़ितों को न्याय दिलाने एवं उनके अधिकारों की सुरक्षा में बाधा बन रही दूरी।

ओमप्रकाश मिश्रा

राजगढ़ – मीरजापुर जनपद का पूर्वी सीमा क्षेत्र प्रशासनिक चूक तथा लापरवाही के चलते लोगों को न्याय दिलाने एवं अधिकारों की सुरक्षा में असफल साबित हो रहा है। इस क्षेत्र के दर्जनों गांव मीरजापुर जनपद के अहरौरा थानान्तर्गत आते हैं और कुछ गांव मड़िहान थानान्तर्गत राजगढ़ पुलिस चौकी क्षेत्र में हैं। मड़िहान थानान्तर्गत राजगढ़ पुलिस चौकी इस क्षेत्र से महज 10 किलोमीटर की परिधि में आता है जबकि अहरौरा थाना इस क्षेत्र से तकरीबन 30 से 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। ऐसे में मीरजापुर जनपद के दो थानों के मध्य करीब दर्जनों गांवों के लोगों को अपने अधिकारों की सुरक्षा एवं जानमाल के सुरक्षा की गुहार लगाने के लिए लम्बी दूरी तय करनी पड़ती है। जानकारी के लिए बता दें कि मीरजापुर जनपद के मुख्यालय से करीब 60 किलोमीटर दूर सीमा क्षेत्र जो नक्सल प्रभावित क्षेत्र भी रहा है और सोनभद्र जनपद से सटा हुआ है इस क्षेत्र में विकास के लिए सरकार ने खूब पैसे खर्च किए लेकिन जनता के बीच उन पैसों का सही इस्तेमाल नहीं किया गया जिसके कारण इस क्षेत्र में शिक्षा चिकित्सा एवं प्रशासनिक लाभ के लिए लोगों को दर दर भटकना पड़ता है। जबकि उत्तर प्रदेश की पूर्ववर्ती सरकारों ने नक्सल उन्मूलन के लिए मीरजापुर जनपद को नक्सल प्रभावित जिले की सूची में शामिल कर बड़े पैमाने पर बजट जारी किया और जंगल से सटे गांवों के समुचित विकास का खाका तैयार किया लेकिन अधिकारियों एवं क्षेत्रीय दलालों की मीलीभगत के कारण जिले का पूर्वी छोर अत्याधुनिक सुविधाओं का सपना ही देखता रह गया। आज भी इस क्षेत्र के करीब दो दर्जन से अधिक गांव अच्छी शिक्षा चिकित्सा एवं न्याय के लिए दूसरे का सहारा ढूंढते हैं। अगर इस क्षेत्र में अपराध एवं आपराधिक घटनाओं की बात करें तो तमाम ऐसी घटनाएं देखने व सुनने में आती हैं जो पुलिस रिकॉर्ड में दर्ज ही नहीं हो पाते। और मामले को दबा दिया जाता है। इस क्षेत्र के लोग गरीबी अशिक्षा बेरोजगारी से जूझ रहे हैं। खेतीबाड़ी भी प्राकृतिक आपदाओं के कारण गरीबी का मुख्य कारण बन गया है। ऐसे में वर्तमान सरकार की नीतियां भी इस क्षेत्र में बेईमानी साबित हो रही हैं। लेकिन इस देश के संविधान के मुताबिक गरीब अमीर सबके लिए कानून बनाया गया है और सबको न्याय मिलना चाहिए लेकिन गरीब असहाय दलितों आदिवासियों को अपने शोषण होने का न्याय मांगना टेढ़ी खीर साबित हो रहा है।

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