जीवन मंत्र । जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से विवाह के समय मुहूर्त का प्रभाव––
प्रायः सम्भव नही होता है कि किसी विशेष कार्य के अवसर पर मुहूर्त के सभी 6 अंग शुभ ही मिल जायें अतः परिस्थितियों के अनुसार समझौता करना ही पड़ता है-
1- विवाह मुहूर्त के समय गोचर का ब्रहस्पति वर या कन्या की कुंडली मे लग्न या चन्द्र से अष्टम नही होना चाहिए।
2- विवाह मुहूर्त पंचक में नही होना चाहिए।
3-वह मुहूर्त जिसमे शुक्र या मंगल अष्टम पड़ते हो छोड़ देना चाहिए।
4-वर या वधू का जन्म लग्न, विवाह मुहूर्त कुंडली के अष्टम भाव में नही होना चाहिए।
5- यदि विवाह के समय सभी शुभ मुहूर्त न मिल रहे हों तो वही मुहूर्त लेना चाहिए जिसमें कम दोष हों।
6- मुहूर्त कुंडली में ब्रहस्पति का शुभ व सबल होना बहुत आवश्यक होता है बशर्ते अष्टम भाव में न हो ।
इस प्रकार अनेक प्रकार से देख कर ही विवाह मुहूर्त का निर्धारण करना चाहिए । प्रायः सभी नक्षत्र शुभ ही होते है किंतु कुछ नक्षत्रों में विवाह शुभ परिणाम नही देता है----
1- पुनर्वसु नक्षत्र में विवाह हो तो दोनों में से एक अस्वस्थ्य ही रहेगा।
2- अश्विनी, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिष नक्षत्र में विवाह होने से दोनों में मधुर सम्बन्ध नही रह जाते हैं।
3- प्रायः पुष्य नक्षत्र में विवाह शुभ नही होता है।
4-गण्डान्त में विवाह शुभ नही माना जाता है।
विवाह मुहूर्त कुंडली में लग्न व् लग्नेश निर्बल या पाप प्रभाव में नही होना चाहिए।
उपरोक्त को ध्यान में रखते हुए ही विवाह मुहूर्त का निर्धारण करना चाहिए