काशी की संस्कृति और काशी के घाटों को जानने का सुनहरा मौका “घाट वॉक”

– “घाट वॉक” की दूसरी सालगिरह पर घाटों पर होंगे विविध आयोजन

गंगा प्रेमियों संग साधु-संतों का होगा समागम
-विभिन्न क्षेत्रो में विशिष्ट योगदान देने वाली प्रतिभाएं होंगी सम्मानित

वाराणसी। देश-दुनिया से आने पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र काशी के घाट केवल दर्शनीय स्थल ही नहीं एक जीवन यात्रा भी है। काशी को नजदीक से जानने का सबसे सरल व सुगम माध्यम हैं ये घाट। वो घाट जहां कबीर, रैदास और तुलसी ने अपना ठिकाना बनाया और दुनिया को वो अप्रतिम कृति दी जो सदियों बाद आज भी भारत और भारतीयता को जानने का माध्यम हैं, हजारों लोगों की आजीविका का साधन हैं। ये वही घाट हैं जो काशी के सौंदर्य में चार चांद लगाते हैं। ये लघु भारत का रूप हैं। इन्हीं घाटों पर घूमने-टहलने और काशी को नजदीक से जानने के लिए दो साल पहले शुरू हुआ था “घाट वॉक”। अब इस “घाट वॉक” की दूसरी सालगिरह मनाई जा रही है आने वाले रविवार को।

दरअसल ये घाट महज प्रस्तर सोपानों की श्रृंखला नहीं, ये काशी और भारतीय संस्कृति की जीवंत कहानी है। लघु भारत का रूप है। बनारसीपन की पहचान है। यहां हर वर्ग मिलेगा, हर जाति, धर्म के लोग मिलेंगे। युवा, प्रौढ, वृद्ध, महिला-पुरुष सभी का आगमन होता है। कोई धार्मिक रीतियों के तहत पहुंचता है तो कोई सुबह-ए-बनारस का लुत्फ उठाने। अनेक तरह की बोली मिलेगी। अनेक संस्कृतियों का संगम देखने को मिलेगा। यह अद्भुत संगम स्थली है। इन घाटों का वर्णन करने को शब्द कम पड़ जाएंगे।

इन सबको सजोने और संवारने के उद्देश्य से ही दो साल पहले गंगा प्रेमी, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के सर सुंदरलाल अस्पताल के पूर्व एमएस, जाने माने न्यूरोलॉजिस्ट ने दो साल पहले “घाट वॉक” शुरू किया। शुरूआत भले अकेले हुई हो पर धीरे-धीरे लोग जुटने लगे और अब तो इन घाटों पर रोजाना शाम को मोबाइल महफिल जमती है। इसमें हर वर्ग के लोग शामिल होते है, यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर, राजनेता, व्यापारी, महाश्मशान के डोम राजा का भी सानिध्य मिलता है तो गंगा पुत्र नाविकों का समूह भी। जाग उठता है बनारसीपन। वही हंसी ठट्ठा, दिल्लगी वो सब कुछ मिलता है जो एक स्वस्थ जीवन के लिए जरूरी है।

ऐसे में घाटवॉक के कल्पनाकर व बीएचयू के ख्यात न्यूरोलॉजिस्ट प्रो. विजयनाथ मिश्र ने लोगों का आह्वाहन करते हुए बताया कि घाट वॉक की सालगिरह का कार्यक्रम रविवार 19 जनवरी की दोपहरी 1.30 बजे तुलसीघाट से होगा, जो बबुआ पांडेय घाट, पंचगंगा घाट व प्रह्लाद घाट होते राजघाट तक जाएगा। इस दौरान घाटों पर विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किए जाएंगे। प्रो. मिश्र ने बताया कि तुलसीघाट से शुरू इस कार्यक्रम में विशिष्टजनों के वक्तव्य के साथ ही काव्य पाठ, पूर्वांचल का मशहूर लोकनृत्य व वृद्धजनों और महिलाओं के सम्मान समारोह भी आयोजित किए जायेंगे। उन्होने बताया की राजघाट पर कार्यक्रम की समाप्ति के बाद पुनः बजड़े द्वारा यात्रा तुलसीघाट पहुंचेगी।

अंतर्राष्ट्रीय एथलीट नीलू मिश्रा ने ‘खेलो इंडिया-फिट रहो इंडिया’ का नारा देते हुए कार्यक्रम में अधिक से अधिक संख्या में खासकर महिलाओं के सम्मिलित होने पर जोर दिया है। उन्होंने कहा है कि काशीवासियों की आत्मा है घाट। प्रो. विजयनाथ मिश्र द्वारा लोगों के स्वास्थ्य को ध्यान में रखकर उठाया गया यह कदम सराहनीय है। सभी को इसमें सहयोग करना चाहिए। इससे न सिर्फ हम शारीरिक बल्कि मानसिक रूप से भी स्वास्थ्य रहेंगे। उन्होंने सभी से कार्यक्रम में उपस्थित होने की अपील भी की। कार्यक्रम के संयोजक प्रो. श्रीप्रकाश शुक्ल ने काशी के ह्रदय से महसूस करने और काशी को समझने लिए न केवल आम जनता से बल्कि उन छात्रों से भी जुड़ने की अपील की है, जो काशी पर शोध कर रहे हैं।

*कार्यक्रम विवरण*

तुलसीघाट : कविता पाठ (श्रीप्रकाश शुक्ल, इंदीवर पांडेय, प्रकाश उदय)
स्वागत – प्रो. विजयनाथ मिश्र
संचालन- उदयपाल
समय – 1.30 बजे

बबुआ पांडेय घाट : महिला सम्मान व विमर्श
वक्तव्य – प्रो. मजुला चतुर्वेदी, मानती शर्मा, डॉ. शारदा सिंह, तनु शुक्ला
संचालन – अंकिता श्रीवास्तव
समय – 2. 30 बजे

पंचगंगा घाट : पूर्वांचल का मशहूर लोकनृत्य ‘फारा’ नृत्य
सेक्सोफोन, बांसुरी,पियानो- विदेशी कलाकारों द्वारा
संचालन – गोविन्द सिंह/संदीप सैनी
समय – 03.00 बजे

प्रह्लाद घाट : वृद्ध जनजीवन एवं गहराती चिंताए (परामर्श सत्र)
वृद्धजनों का सम्मान
वक्तव्य- प्रो. अरविन्द जोशी, सुधीर त्रिपाठी, रमा गुरु
संचालन- डॉ. संदीप त्रिपाठी
समय- 03.45 बजे

*समापन- राजघाट*
अनुभूति एवं अभिव्यक्ति
विशेष उपस्थिति – प्रो. राजेश्वर आचार्य, डॉ. दयाशंकर मिश्र ‘दयालु’, डॉ. मनीष अरोड़ा, अफाक अहमद खान
संचालन – जंतलेश्वर यादव
समय-4.30 बजे

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