जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से ज्योतिष में अंगारक योग…

जीवन मंत्र । जानिये पंडित वीर विक्रम नारायण पांडेय जी से ज्योतिष में अंगारक योग…


जब कुंडली में राहु अथवा केतु में से किसी एक के साथ अथवा दृष्टि से मंगल ग्रह का संबंध बन जाए तो उस कुंडली में अंगारक योग का निर्माण होता है।

कुंडली में अंगारक योग के अशुभ फल तभी प्राप्त होते हैं जब इस योग का निर्माण करने वाले मंगल, राहु या केतु दोनों ही अशुभ स्थान में हों। इसके अलावा यदि कुंडली में मंगल तथा राहु-केतु में से कोई भी शुभ स्थान में है तो जातक के जीवन पर अधिक नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता। लाल किताब में अंगारक योग को पागल हाथी या बिगड़ा शेर का नाम दिया गया है।

अंगारक योग का जातक पर प्रभाव….

अंगारक योग, जैसा कि नाम से ही पता चल रहा है यह अग्नि का कारक है। कुंडली में इस योग के बनने पर जातक क्रोध और निर्णय न कर पाने के असमंजस में फंसा रहता है। अंगारक योग के कारण क्रोध, अग्निभय, दुर्घटना, रक्त से संबंधित रोग और स्किन की समस्याएं मुख्य रूप से होती हैं।

अंगारक योग की पहचान जातक के व्यवहार से ही की जा सकती है। इसके प्रभाव में जातक अत्यधिक क्रोध करने लगता है।वह अपना कोई भी निर्णय लेने में असक्षम होते हैं लेकिन यह जातक न्यायप्रिय होते हैं।स्वभाव से यह जातक सहयोगी होते हैं। इस योग के प्रभाव में जातक सरकारी पद पर नियुक्त अथवा प्रशासनिक अभिकर्ता बनता है।

अंगारक योग शुभ और अशुभ दोनों तरह का फल देने वाला होता है। कुंडली में इस योग के बनने पर जातक अपने परिश्रम से नाम और पैसा कमाता है। इस योग के प्रभाव में व्यक्ति के जीवन में कई उतार-चढ़ाव आते हैं।

अंगारक योग के संभावित नुकसान…..

अंगारक योग के कारण जातक का स्वभाव आक्रामक, हिंसक तथा नकारात्मक हो जाता है तथा इस योग के प्रभाव में जातक के अपने भाईयों, मित्रों तथा अन्य संबंधियों से अनबन रहती है। अंगारक योग होने से धन की कमी रहती है। इसके प्रभाव में जातक की दुर्घटना की संभावना होती है। वह रोगों से ग्रस्त रहता है एवं उसके शत्रु उन पर काले जादू का प्रयोग करते हैं। व्यापार और वैवाहिक जीवन पर भी अंगारक योग का बुरा प्रभाव पड़ता है।

कुंडली के पहले घर में राहु – मंगल अंगारक योग होने से पेट के रोग और शरीर पर चोट का निशान रहता है।
मंगल अग्नि तत्व प्रधान होता है लेकिन वह अंगार नही होता। राहु वायु तत्व प्रधान होता। जब राहु व् मंगल की युति होती है तो वायु से अग्नि का मिलान होता है जिससे अग्नि तेज हो जाती है।
मंगल (अग्नि) + राहु ( कोयला व् वायु ) = कोयले का अग्नि से धधकना =कोयले का अंगारे में परिवर्तन
यहाँ जातक में अग्नि तत्व की वृद्धि हो जाती है
“अति सर्वत्र वर्जते” इसलिए जातक में क्रोध की अभिमान की अधिकता हो जाती । विवेक की कमी हो जाती है। इसके कारण जातक दुसरो की भावनाओँ को समझ नही पाता है। रिश्ते बिगड़ लेता है। लेकिन भूमि अग्नि मशीनरी हार्डवेयर सम्बन्धी कार्यो से धन लाभ करता है।
स्वास्थ्य की दृष्टि से मंगल पित्त कारक व् राहु वात कारक प्रभाव रखते है। अतः शरीर में पित्त व् वात की अधिकता हो जाती है। जिससे एसिडिटी , उच्च रक्तचाप आदि रोग परेशान करते है।
इन्हें ठंडी प्रकृति की चीजे सेवन करनी चाहिए। ठंडा दूध , पानी , चावल ( चंद्र की चीजे ) सेवन करनी चाहिए।
लग्नानुसार मोती या ओपल धारण करना चाहिए।
चाँदी का कड़ा ,चैन धारण करना चाहिए।

नाड़ी ज्योतिष के अनुसार मंगल को मशीन व् राहु को गोल माना गया है। अतः जातक मशीनरी ,पहिये सम्बन्धी , कंप्यूटर हार्डवेयर, गाड़ी सम्बन्धी कार्य करता है।

ज्योतिष विज्ञान है। कई ज्योतिषी इस योग में मूंगा या गोमेद पहना देते है जो वैज्ञानिक दृष्टि से गलत है और इस योग का प्रभाव बढ़ जाता है

प्रथम भाव वा यु कहे लग्न भाव ,अब लग्न भाव अर्थात १ के साथ अगर १२ ( द्वादश) भाव जुड़ जाये तो जातक ज्यादातर खुद की ख़ुशी के लिए खर्च करता हे,ज्यादातर यह सम्बन्ध दिखावा में खर्च दिखाता हे, हा अगर १,८,१२ का सम्बन्ध हो तो बीमारी में खर्च बड़ता हे ।।।यहा राहु एवं शनि का सम्बन्ध या शक्तिशाली दृष्टी अति महत्व पूर्ण हे ,क्यू की तब यह युक्ति चिंतनीय बन जाती हे

शांति के सामान्य उपाय…..

इस योग के प्रभाव को कम करने के लिए मंगलवार के दिन व्रत रखने से लाभ होगा।

इसके अलावा भगवान शिव के पुत्र कुमार कार्तिकेय की आराधना करें।

हनुमान जी की आराधना करने से ये दोनों ग्रह पीड़ामुक्त होते हैं। यह एक उत्तम उपाय है।

राहु के बीज मंत्र का उच्चारण करना लाभकारी होगा।

मंगल और राहु की शांति के लिए निर्दिष्ट दान के साथ वैदिक मंत्रों के जप ओर दशांश हवन करना लाभकारी होता है।

आवारा कुत्‍तों को मीठी रोटी खिलाएं।

घर पर राहु ग्रह की शांति हेतु पूजा रखें।

चंद्रमा के रोहिणी नक्षत्र में देवी लक्ष्‍मी की पूजा करें।

जातक को मेडिटेशन से लाभ होगा एवं किसी भी प्रकार के विवाद से दूर रहें।

सत्‍संग का आयोजन करें और अपने गुरु को घर पर बुलाएं।

किसी धार्मिक स्‍थल जाकर भगवान की आराधना करें।

रोज़ शाम को घर के मंदिर एवं हनुमान मंदिर अथवा शिवालय में दीया जलाएं।

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